तुलसी भगवान विष्णु की पत्नी हैं ! भगवान विष्णु को तुलसी लक्ष्मी जी से भी अधिक प्रिय हैं ! माता तुलसी और भगवान विष्णु का विवाह देव उठनी एकादशी के दिन हुआ था ! जो भी भक्त तुलसी और विष्णु के विवाह में Shri Tulasi Chalisa और तुलसी आरती करता है ! उसके सारे पाप मिट जाते हैं !
Shri Tulasi Mata Ka Chalisa in Hindi
श्री तुलसी चालीसा हिंदी में
माँ तुलसी चालीसा, तुलसी चालीसा, तुलसी माता का चालीसा
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श्री तुलसी माता का चालीसा
Shri Tulasi Chalisa
II दोहा II
जय जय तुलसी भगवती,
सत्यवती सुखदानी I
नमो नमो हरि प्रेयसी,
श्री वृन्दा गुन खानी II (१)
श्री हरि शीश बिरजिनी,
देहु अमर वर अम्ब I
जनहित हे वृन्दावनी,
अब न करहु विलम्ब II (२)
II चौपाई II
धन्य धन्य श्री तलसी माता I
महिमा अगम सदा श्रुति गाता II (१)
हरि के प्राणहु से तुम प्यारी I
हरीहीँ हेतु कीन्हो तप भारी II (२)
जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो I
तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो II (३)
हे भगवन्त कन्त मम होहू I
दीन जानी जनि छाडाहू छोहु II (४)
सुनी लक्ष्मी तुलसी की बानी I
दीन्हो श्राप कध पर आनी II (५)
उस अयोग्य वर मांगन हारी I
होहू विटप तुम जड़ तनु धारी II (६)
सुनी तुलसी हीँ श्रप्यो तेहिं ठामा I
करहु वास तुहू नीचन धामा II (७)
दियो वचन हरि तब तत्काला I
सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला II (८)
समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा I
पुजिहौ आस वचन सत मोरा II (९)
तब गोकुल मह गोप सुदामा I
तासु भई तुलसी तू बामा II (१०)
कृष्ण रास लीला के माही I
राधे शक्यो प्रेम लखी नाही II (११)
दियो श्राप तुलसिह तत्काला I
नर लोकही तुम जन्महु बाला II (१२)
यो गोप वह दानव राजा I
शङ्ख चुड नामक शिर ताजा II (१३)
तुलसी भई तासु की नारी I
परम सती गुण रूप अगारी II (१४)
अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ I
कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ II (१५)
वृन्दा नाम भयो तुलसी को I
असुर जलन्धर नाम पति को II (१६)
करि अति द्वन्द अतुल बलधामा I
लीन्हा शंकर से संग्राम II (१७)
जब निज सैन्य सहित शिव हारे I
मरही न तब हर हरिही पुकारे II (१८)
पतिव्रता वृन्दा थी नारी I
कोऊ न सके पतिहि संहारी II (१९)
तब जलन्धर ही भेष बनाई I
वृन्दा ढिग हरि पहुच्यो जाई II (२०)
शिव हित लही करि कपट प्रसंगा I
कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा II (२१)
भयो जलन्धर कर संहारा I
सुनी उर शोक उपारा II (२२)
तिही क्षण दियो कपट हरि टारी I
लखी वृन्दा दुःख गिरा उचारी II (२३)
जलन्धर जस हत्यो अभीता I
सोई रावन तस हरिही सीता II (२४)
अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा I
धर्म खण्डी मम पतिहि संहारा II (२५)
यही कारण लही श्राप हमारा I
होवे तनु पाषाण तुम्हारा II (२६)
सुनी हरि तुरतहि वचन उचारे I
दियो श्राप बिना विचारे II (२७)
लख्यो न निज करतूती पति को I
छलन चह्यो जब पारवती को II (२८)
जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा I
जग मह तुलसी विटप अनूपा II (२९)
धग्व रूप हम शालिग्रामा I
नदी गण्डकी बीच ललामा II (३०)
जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं I
सब सुख भोगी परम पद पईहै II (३१)
बिनु तुलसी हरि जलत शरीरा I
अतिशय उठत शीश उर पीरा II (३२)
जो तुलसी दल हरि शिर धारत I
सो सहस्त्र घट अमृत डारत II (३३)
तुलसी हरि मन रञ्जनी हारी I
रोग दोष दुःख भंजनी हारी II (३४)
प्रेम सहित हरि भजन निरन्तर I
तुलसी राधा में नाही अन्तर II (३५)
व्यन्जन हो छप्पनहु प्रकारा I
बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा II (३६)
सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही I
लहत मुक्ति जन संशय नाही II (३७)
कवि सुन्दर इक हरि गुण गावत I
तुलसिहि निकट सहसगुण पावत II (३८)
बसत निकट दुर्बासा धामा I
जो प्रयास ते पूर्व ललामा II (३९)
पाठ करहि जो नित नर नारी,
होही सुख भाषहि त्रिपुरारी II (४०)
॥दोहा॥
तुलसी चालीसा पढ़ही,
तुलसी तरु ग्रह धारी I
दीपदान करि पुत्र फल,
पावही बन्ध्यहु नारी II (१)
सकल दुःख दरिद्र हरि,
हार ह्वै परम प्रसन्न I
आशिय धन जन लड़हि,
ग्रह बसही पूर्णा अत्र II (२)
लाही अभिमत फल जगत,
मह लाही पूर्ण सब काम I
जेई दल अर्पही तुलसी तंह,
सहस बसही हरीराम II (३)
तुलसी महिमा नाम लख,
तुलसी सूत सुखराम I
मानस चालीस रच्यो,
जग महं तुलसीदास II (४)
II इति श्री तुलसी चालीसा सम्पूर्ण II
रामा तुलसी और श्यामा तुलसी दो प्रकार की तुलसी होती हैं ! रामा तुलसी के पत्ते हरे और श्यामा तुलसी के पत्ते थोड़े काले होते हैं ! तुलसी की माला पहना शुभ माना जाता हैं ! घर के आँगन में तुलसी का पोधा जरुर लगाना चाहिए ! आयुर्वेद में तुलसी के पत्तो का बड़ा महत्व हैं !
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