स्वास्तिक के चिन्ह को मंगल प्रतीक माना जाता हैं ! क्या धार्मिक महत्व है Swastika का ! यही आपको आज यहां बताने वाले हैं ! स्वास्तिक शब्द में ‘सु’ और ‘अस्ति’ का मिश्रण हैं ! यहां ‘सु’ अर्थ का है शुभ और ‘अस्ति’ का अर्थ है होना ! अर्थात स्वास्तिक का मौलिक अर्थ होता है “शुभ हो” “कल्याण हो” ! हिन्दू धर्म में स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर ही किसी भी शुभ कार्य को आरंभ किया जाता हैं ! ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से कार्य में सफल मिलती हैं ! यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले स्वास्तिक बनाना अति आवश्यक हैं !
हम स्वास्तिक क्यों बनाते हैं, क्या धार्मिक महत्व हैं स्वास्तिक का आईए जानते हैं ! हम इसके बारे में ! स्वास्तिक कागणेश पुराण में कहा गया हैं कि स्वस्तिक भगवान श्री गणेश का ही प्रारूप हैं ! सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार हिंदू धर्म में कोई भी मांगलिक या धार्मिक कार्य शुरू करने से पहले Swastika को भगवान श्री गणेश का प्रतीक मानकर शुरू करते हैं ! क्योंकि सनातन धर्म में भगवान श्री गणेश को प्रथम देव के रूप में मानते हैं ! जब भी कोई मांगलिक कार्य शुरू किया जाता है तो भगवान गणेश को स्वास्तिक के रूप में मानकर पूजा की शुरुआत की जाती हैं ! हिंदू धर्म में स्वास्तिक के की स्थापना करने के बाद ही मंगलकार्यों की शुरुआत की जाती हैं !
Swastika हमेशा पवित्र जगह पर ही बनाना चाहिए ! कभी भी अपवित्र जगह पर स्वास्तिक नहीं बनाया जाता हैं ! क्योंकि स्वास्तिक भगवान गणेश का प्रतीक चिन्ह होता हैं ! स्वास्तिक कभी भी लंबा छोटा नहीं बनाना चाहिए ! स्वस्तिक का चिन्ह एकदम सीधा और देखने में सुंदर लगे ऐसा बनाना चाहिए ! घर में कभी भी उल्टा स्वस्तिक नहीं बनाना चाहिए ! कभी-कभी परिवार में किसी सदस्य के जीवन में विवाहित परेशानी आती है तो उसे दूर करने के लिए हल्दी का स्वास्थ्य बनाना चाहिए ! कभी-कभी परिवार में किसी सदस्य के जीवन में विवाहित परेशानी आती हैं ! तो उसे दूर करने के लिए हल्दी का Swastika बनाना चाहिए !
लाल रंग का सर्वाधिक उपयोग भारतीय संस्कृति में मांगलिक अवसर पर सिन्दूर, रोली या कुमकुम के रूप में किया जाता हैं ! क्योंकि लाल रंग शौर्य एवं विजय का प्रतीक माना जाता हैं ! लाल रंग प्रेम, रोमांच व साहस को भी दर्शाता हैं ! धार्मिक महत्व के अलावा वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाल रंग को सही माना जाता हैं !
लाल रंग व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक स्तर को शीघ्र प्रभावित करता हैं ! यह रंग बहुत ही शक्तिशाली व मौलिक हैं ! हमारे ब्रह्मांड के सौर मण्डल में मौजूद ग्रहों में से एक मंगल ग्रह का रंग भी लाल हैं ! यह एक ऐसा ग्रह है, जिसे साहस, पराक्रम, बल व शक्ति के लिए जाना जाता हैं ! यही कुछ कारण हैं जो Swastika बनाते समय केवल लाल रंग के उपयोग की ही सलाह देते हैं !
स्वास्तिक चार प्रकार की रेखाओ से बनता हैं, जिसमें सभी रेखाओ का आकार एक समान होता हैं ! चारो रेखाएं, पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण की ओर होती हैं ! हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह रेखाएं चार वेदों -: ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक हैं ! इसके अलावा इन चार रेखाओं की चार पुरुषार्थ, चार आश्रम, चार लोक और चार देवों यानी कि भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश और गणेश से भी तुलना की गई हैं !
यह चार रेखाएं सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा के चार सिरों को भी दर्शाती हैं ! तो मध्य में स्थित बिंदु भगवान विष्णु की नाभि को दर्शाता है, जिसमें से भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं ! इसके अलावा यह मध्य भाग संसार के एक धुर से शुरू होने की ओर भी इशारा करता हैं !
क्या धार्मिक महत्व है स्वास्तिक का ! क्यों स्वास्तिक की चारो रेखाएं एक घड़ी की दिशा में चलती हैं ! क्योंकी इसको सही दिशा में चलने का प्रतीक माना जाता हैं ! यदि स्वास्तिक के आसपास एक गोलाकार रेखा खींच दी जाए, तो यह सूर्य भगवान का चिन्ह माना जाता हैं ! वह सूर्य देव जो समस्त संसार को अपनी ऊर्जा से रोशनी प्रदान करते हैं !
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भारत में और भी कई धर्म हैं जो शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक के चिन्ह को इस्तेमाल करना जरूरी समझते हैं ! क्या धार्मिक महत्व हैं स्वास्तिक का विदेशों में
हिन्दू धर्म के अलावा Swastika का और भी कई धर्मों में महत्व हैं ! बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक मानते हैं ! यह भगवान बुद्ध के पग चिन्हों को दिखाता हैं ! स्वास्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों पर भी अंकित हैं ! इसलिए बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को इसे इतना पवित्र माना जाता हैं !
हिन्दू धर्म में स्वास्तिक के प्रयोग को सबसे उच्च माना गया हैं ! लेकिन हिन्दू धर्म से भी ऊपर यदि Swastika को कहीं मान्यता हासिल की हैं, तो वह हैं जैन धर्म ! हिन्दू धर्म से कहीं ज्यादा महत्व स्वास्तिक का जैन धर्म में हैं ! जैन धर्म में यह सातवं जिन का प्रतीक हैं , जिसे सब तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं ! श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं !
सिंधु घाटी की खुदाई के दौरान स्वास्तिक के प्रतीक चिन्ह भी मिले थे ! माना जाता है की हड़प्पा सभ्यता के लोग सूर्य पूजा को महत्व देते थे ! हड़प्पा सभ्यता के लोगों का व्यापारिक संबंध ईरान से भी था ! जेंद अवेस्ता में भी सूर्य उपासना का महत्व दर्शाया गया हैं ! प्राचीन फारस में स्वास्तिक की पूजा का चलन सूर्योपासना से जोड़ा गया था ! जो एक काबिल-ए-गौर तथ्य हैं !
यहां हम विश्व भर में मौजूद हिन्दू मूल के उन लोगों की बात नहीं कर रहे जो भारत से दूर रह कर भी शुभ कार्यों में स्वास्तिक को इस्तेमाल कर अपने संस्कारों की छवि विश्व भर में फैला रहे हैं ! बल्कि असल में Swastika का इस्तेमाल भारत से बाहर भी होता है ! विश्व भर में स्वास्तिक को विभिन्न मान्यताओं एवं धर्मों के हिसाब से महत्वपूर्ण माना गया है ! यहां हम कुछ जानकारी स्वास्तिक के बारे में विश्व स्तर पर भी जाने की कोशिश करेंगे !
नेपाल भी एक हिंदू राष्ट्र है ! यहां की लगभग 95 पर्सेंट जनसंख्या हिंदू हैं ! जो सनातन धर्म को मानती है ! जहां पर मांगलिक कार्यों में स्वास्तिक का प्रयोग किया जाता हैं ! अखंड भारत में कभी नेपाल भी भारत का हिस्सा हुआ करता था ! समय उपरांत वह भारत से अलग हो गया ! लेकिन आज भी भारत और नेपाल की संस्कृति में कोई ज्यादा फर्क नहीं हैं !
एक अध्ययन के मुताबिक जर्मनी में Swastika का इस्तेमाल किया जाता हैं ! जर्मन भाषा और संस्कृत में समानताएं,लेकिन करीब 1930 के आसपास इसकी लोकप्रियता में कुछ ठहराव आ गया था ! यह वह समय था जब जर्मनी की सत्ता में नाज़ियों का उदय हुआ था ! उस समय किए गए एक शोध में बेहद दिलचस्प बात सामने निकल कर आई ! शोधकर्ताओं ने माना कि जर्मन भाषा और संस्कृत में कई समानताएं हैं ! इतना ही नहीं, भारतीय और जर्मन दोनों के पूर्वज भी एक ही रहे होंगे !
प्राचीन ग्रीस के लोग भी स्वास्तिक का इस्तेमाल करते थे ! पश्चिमी यूरोप में बाल्टिक से बाल्कन तक इसका इस्तेमाल देखा गया है ! यूरोप के पूर्वी भाग में बसे यूक्रेन में एक नेशनल म्यूज़ियम स्थित हैं ! इस म्यूज़ियम में कई तरह के स्वास्तिक चिह्न देखे जा सकते हैं ! जो 15 हज़ार साल तक पुराने माने हैं !
आपको यह जानकारी कैसी लगी कमेंट में जरूर बताना ! सनातन की इस जानकारी को अधिक से अधिक शेयर करना ! इस लेख में दी गई जानकारियां धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं !
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