श्री गिरिराज चालीसा हिंदी में
Shri Giriraj Chalisa in Hindi
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से गोवर्धन का इतिहास जुड़ा हुआ है ! Shri Giriraj Chalisa में भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का मंडन किया गया हैं ! द्वापरयुग में गोवर्धन शूरसेन जनपद का हिस्सा हुआ करता था ! जहाँ पर यदु वंश की वृष्णि शाखा यहां शासन किया करती थी !
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श्री गिरिराज चालीसा
Shri Giriraj Chalisa
॥ दोहा ॥
बन्दहुँ वीणा वादिनी,
धरि गणपति को ध्यान I
महाशक्ति राधा सहित,
कृष्ण करो कल्याण II (१)
सुमिरन करि सब देवगण,
गुरु पितु बारम्बार I
बरनो श्री गिरिराज यश,
निज मति के अनुसार II (२)
II चौपाई II
जय हो जय बंदित गिरिराजा I
ब्रज मण्डल के आप हो महाराजा II (१)
विष्णु रूप तुम हो अवतारी I
सुन्दरता पे जग बलिहारी II (२)
स्वर्ण शिखर अति शोभा पावें I
सुर मुनि गण दरशन कूं आवें II (३)
शांत कंदरा स्वर्ग समाना I
जहाँ तपस्वी धरते ध्याना II (४)
द्रोणगिरि के तुम युवराजा I
भक्तन के साधौ तुम काजा II (५)
मुनि पुलस्त्य जी के मन भाये I
जोर विनय कर तुम कूं लाये II (६)
मुनिवर संघ जब ब्रज में आये I
लखि ब्रजभूमि यहाँ ठहराये II (७)
विष्णु धाम गौलोक सुहावन I
यमुना गोवर्धन वृन्दावन II (८)
देख देव मन में ललचाये I
बास करन बहुत रूप बनाये II (९)
कोउ बानर कोउ मृग के रूपा I
कोउ वृक्ष कोउ लता स्वरूपा II (१०)
आनन्द लें गौलोक धाम के I
परम उपासक रूप नाम के II (११)
द्वापर अंत भये अवतारी I
कृष्णचन्द्र आनन्द मुरारी II (१२)
महिमा तुम्हरी कृष्ण बखानी I
पूजा करिबे की मन ठानी II (१३)
ब्रजवासी सब के लिये बुलाई I
गोवर्धन पूजा करवाई II (१४)
पूजन को व्यंजन बनवाये I
ब्रजवासी घर घर से लाये II (१५)
ग्वाल बाल मिलि पूजा कीनी I
सहस भुजा तुमने कर लीनी II (१६)
स्वयं प्रकट हो कृष्ण पूजा में I
मांग मांग के भोजन पावें II (१७)
लखि नर नारि मन हरषावें I
जै जै जै गिरिवर गुण गावें II (१८)
देवराज मन में रिसियाए I
नष्ट करन ब्रज मेघ बुलाए II (१९)
छाया कर ब्रज लियो बचाई I
एकउ बूंद न नीचे आई II (२०)
सात दिवस भई बरसा भारी I
थके मेघ भारी जल धारी II (२१)
कृष्णचन्द्र ने नख पे धारे I
नमो नमो ब्रज के रखवारे II (२२)
करि अभिमान थके सुरसाई I
क्षमा मांग पुनि अस्तुति गाई II (२३)
त्राहि माम मैं शरण तिहारी,
क्षमा करो प्रभु चूक हमारी II (२४)
बार बार बिनती अति कीनी I
सात कोस परिकम्मा दीनी II (२५)
संग सुरभि ऐरावत लाये I
हाथ जोड़ कर भेंट चढाये II (२६)
अभय दान पा इन्द्र सिहाये I
करि प्रणाम निज लोक सिधाये II (२७)
जो यह कथा सुने चित लावें I
अन्त समय सुरपति पद पावैं II (२८)
गोवर्धन है नाम तिहारौ I
करते भक्तन को निस्तारौ II (२९)
जो नर तुम्हरे दर्शन पावें I
तिनके दु:ख दूर हो जावे II (३०)
कुण्डन में जो करें आचमन I
धन्य धन्य वह मानव जीवन II (३१)
मानसी गंगा में जो नहावे I
सीधे स्वर्ग लोक को जावें II (३२)
दूध चढ़ा जो भोग लगावें I
आधि व्याधि तेहि पास न आवें II (३३)
जल फल तुलसी पत्र चढ़ावें,
मन वांछित फल निश्चय पावें II (३४)
जो नर देत दूध की धारा I
भरा रहे ताके भण्डारा II (३५)
करे जागरण जो नर कोई I
दु:ख दरिद्र भय ताहि न होई II (३६)
श्याम शिलामय निज जन त्राता I
भक्ति मुक्ति सरबस के दाता II (३७)
पुत्रहीन जो तुम को ध्यावें I
ताकूं पुत्र प्राप्ति हो जावें II (३८)
दण्डौती परिकम्मा करहीं I
ते सहजहिं भवसागर तरहीं II (३९)
कलियुग में तुम जैसा देव न दूजा,
सुर नर मुनि सब करते आपकी पूजा II (४०)
॥ दोहा ॥
जो यह चालीसा पढ़ै,
सुने शुद्ध चित्त लाय I
सत्य सत्य यह सत्य है,
गिरिवर करे सहाय II (1)
क्षमा करहुँ अपराध मम,
त्राहि माम् गिरिराज I
श्याम बिहारी शरण में,
गोवर्धन गिरी महाराज II (2)
II इति श्री गिरिराज चालीसा सम्पूर्ण II
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