माँ गायत्री चालीसा हिंदी में
Shri Gayatri Chalisa In Hindi
माता गायत्री की उपासना में Shri Gayatri Chalisa के पाठ से साधकों को बड़े- बड़े लाभ मिलते हैं ! जिस तरह फूलो का सार शहद और दूध का सार घी है ! उसी तरह सारे वेदों का सार माँ गायत्री है !
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गायत्री माता का चालीसा
Shri Gayatri Chalisa
॥ दोहा ॥
हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा,
जीवन ज्योति प्रचण्ड I
शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति,
रचना शक्ति अखण्ड II (१)
जगत जननि, मंगल करनि,
गायत्री सुखधाम I
प्रणवों सावित्री, स्वधा,
स्वाहा पूरन काम II (२)
II चोपाई II
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी I
गायत्री नित कलिमल दहनी II (१)
अक्षर चौबिस परम पुनीता I
इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता II (२)
शाश्वत सतोगुणी सतरुपा I
सत्य सनातन सुधा अनूपा II (३)
हंसारुढ़ सितम्बर धारी I
स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी II (४)
पुस्तक पुष्प कमंडलु माला I
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला II (५)
ध्यान धरत पुलकित हिय होई I
सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई II (६)
कामधेनु तुम सुर तरु छाया I
निराकार की अदभुत माया II (७)
तुम्हरी शरण गहै जो कोई I
तरै सकल संकट सों सोई ई (८)
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली I
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली II (९)
तुम्हरी महिमा पारन पावें I
जो शारद शत मुख गुण गावें II (१०)
चार वेद की मातु पुनीता I
तुम ब्रहमाणी गौरी सीता II (११)
महामंत्र जितने जग माहीं I
कोऊ गायत्री सम नाहीं II (१२)
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै I
आलस पाप अविघा नासै II (१३)
सृष्टि बीज जग जननि भवानी I
काल रात्रि वरदा कल्यानी II १४)
ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते I
तुम सों पावें सुरता तेते II (१५)
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे I
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे II (१६)
महिमा अपरम्पार तुम्हारी I
जै जै जै त्रिपदा भय हारी II (१७)
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना I
तुम सम अधिक न जग में आना II (१८)
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा I
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा II (१९)
जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई I
पारस परसि कुधातु सुहाई II (२०)
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई I
माता तुम सब ठौर समाई II (२१)
ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे I
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे II (२२)
सकलसृष्टि की प्राण विधाता I
पालक पोषक नाशक त्राता II (२३)
मातेश्वरी दया व्रत धारी I
तुम सन तरे पतकी भारी II (२४)
जापर कृपा तुम्हारी होई I
तापर कृपा करें सब कोई II (२५)
मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें I
रोगी रोग रहित है जावें II (२६)
दारिद मिटै कटै सब पीरा I
नाशै दुःख हरै भव भीरा II (२७)
गृह कलेश चित चिंता भारी I
नासै गायत्री भय हारी II (२८)
संतिति हीन सुसंतति पावें I
सुख संपत्ति युत मोद मनावें II (२९)
भूत पिशाच सबै भय खावें I
यम के दूत निकट नहिं आवें II (३०)
जो सधवा सुमिरें चित लाई I
अछत सुहाग सदा सुखदाई II (३१)
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी I
विधवा रहें सत्य व्रत धारी II (३२)
जयति जयति जगदम्ब भवानी I
तुम सम और दयालु न दानी II (३३)
जो सदगुरु सों दीक्षा पावें I
सो साधन को सफल बनावें II (३४)
सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी I
लहैं मनोरथ गृही विरागी II (३५)
अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता I
सब समर्थ गायत्री माता II (३६)
ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी I
आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी II (३७)
जो जो शरण तुम्हारी आवें I
सो सो मन वांछित फल पावें II (३८)
बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ I
धन वैभव यश तेज उछाऊ II (३९)
सकल बढ़ें उपजे सुख नाना,
जो यह पाठ करै धरि ध्याना II (४०)
॥ दोहा ॥
यह चालीसा भक्तियुत,
पाठ करे जो कोय ।
तापर कृपा प्रसन्नता,
गायत्री की होय ॥ (१)
॥ श्री गायत्री माता का चालीसा सम्पूर्ण ॥
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