शेषनाग को अनंत के नाम से भी जाना जाता हैं ! इस नाग की गिनती सबसे बलशाली नागों में की जाती हैं ! भगवान श्री हरि क्षीरसागर में sheshnag पर शयन करते हैं ! हमारे धर्म ग्रंथो में शेषनाग, वासुकि नाग, तक्षक नाग और कर्कोटक नाग, धृतराष्ट्र नाग, कालिया नाग आदि अनेक नागो के बारे में बताया गया हैं !
नागों की उत्पत्ति कैसे हुई थी ! नाग माता कौन हैं , शेषनाग कौन हैं ! शेषनाग के माता पिता कौन हैं, शेषनाग के कितने भाई हैं ! शेषनाग की पत्नी का क्या नाम था, शेषनाग के अवतार कौन हैं ! और शेषनाग के कितने सिर हैं, शेषनाग की पुत्री का क्या नाम था ! भागवान विष्णु शेषनाग पर क्यों सोते हैं ! क्या सच में शेषनाग हैं ! शेषनाग झील कहाँ हैं !
शेषनाग के बारे में इतनी जानकारी आपको यहाँ मिल जाएगी की आपको और कही खोजने की जरुरत नहीं पड़ेगी !
नाग जाति के लोगों को पाताललोक के वासी के रूप में माना जाता हैं ! हमारे पुराणों मे सात पातालों का वर्णन मिलता हैं ! इन सात पातालो के नाम इस प्रकार से हैं ! अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल और पाताल। कश्यप की पत्नी कद्रू से उत्पन्न हुए अनेक सिरों वाले सर्पों का ‘क्रोधवश’ नामक एक समुदाय सुतल नामक पाताल में रहता हैं !
उनमें शेषनाग, कहुक, तक्षक, कालिया और सुषेण आदि प्रधान नाग हैं। हमारे धार्मिक धर्म ग्रंथो में खासकर शेषनाग, वासुकि नाग, तक्षक नाग, पद्म नाग, कर्कोटक नाग, कंबल नाग, धृतराष्ट्र नाग, शंखपाल नाग, कालिया नाग, पिंगल नाग, महानाग आदि नागों का हमें काफी उलेख मिलता हैं !
मगर आज हम केवल sheshnag के बारे में ही जानेगें ! दक्ष प्रजापति की दो पुत्रियाँ थी ! जिनका नाम कद्रू और विनता था ! इन दोनों बहनों का विवाह ऋषि कश्यप के साथ हुआ था !
तब ऋषि कश्यप की पत्नी कद्रू ने अपने पति से 1000 पराक्रमी सर्पों की माँ बनने का वरदान माँगा ! और उनकी दूसरी पत्नी विनता ने गरूड़ को जन्म देकर उसकी मां बनी ! मगर विनता ने अपने पुत्र को कद्रू के पुत्रों से अधिक शक्तिशाली और सुन्दर हों ऐसा वरदान माँगा !
ऋषि कश्यप के वरदान के अनुसार कद्रू ने 1000 अंडे दिए ! उन 1000 अंडो से सर्पों का जन्म हुआ ! पत्नीं कद्रू के 1000 पुत्रों में सबसे बड़े और सबसे पराक्रमी व बलशाली नाग शेषनाग थे ! शेषनाग का एक नाम अनंत भी हैं !
देवी कद्रू जो प्रजापति दक्ष की कन्या हैं ! और ऋषि कश्यप की पत्नी ! इन्ही देवी कद्रू से सम्पूर्ण नाग जाती का जन्म माना हैं ! इसीलिए देवी कद्रू को नाग माता के नाम से जाना जाता हैं। और भगवान शिव की बेटी देवी मनसा को भी नाग माता कहा जाता हैं !
जिनका विवाह ऋषि जरत्कारु के साथ हुआ था। अपने पिता के नाग दंश से मृत्यु हो जाने पर एक बार राजा जनमेजय ने नागों को भस्म करने वाला नाग यज्ञ शुरू करवाया ! सभी नाग यज्ञ में गिरकर भस्म होने लगे !
तब देवी मनसा के पुत्र आस्तिक ने ऐसा उपाए किया जिससे नाग यज्ञ बंद हो गया ! और यज्ञ में भस्म होने से सभी नागों की रक्षा की ! तब से देवी मनसा को भी नाग माता के नाम से विख्याती मिली !
शेषनाग को नागराज व अनंत के नाम से भी जाना जाता हैं ! इस नाग की सबसे बलशाली नागों में गिनती की जाती है ! भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग के आसन पर ही विराजित रहते हैं ! इनके गुणों के आगे गन्धर्व, अप्सरा, सिद्ध, किन्नर, नाग जाती का कोई भी इनकी बराबरी नहीं कर सकता !
इसलिए इन्हें ‘अनन्त’ नाम से भी जाना जाता हैं ! अपने सहस्त्र मुखों से शेषनाग निरन्तर भगवान का गुणागन करते रहते हैं ! और अनादि काल से करते हुवे भी ये अघाते या ऊबते नहीं !
शेषनाग भगवान के विशेष वरदान से सारी सृष्टि के विनाश के पश्चात् भी बचे रहते हैं ! इसीलिए इनके नाम के आगे ‘शेष’ लगा हैं ! सर्पाकार होने के कारण इनका नाम शेषनाग पड़ा !
उस स्वर्ण पर्वत पर तीन शाखाओं वाला सोने का एक वृक्ष है जो भगवन विष्णु की ध्वजा माना जाता हैं ! पुराणों के अनुसार शेषनाग के हजार सिर हैं। शेषनाग पर विष्णुजी की कृपा होने से समस्त देवी-देवताओं द्वारा पूजे जाते हैं !
आकाश में रात्रि के समय जो वक्राकृति आकाशगंगा दिखाई देती हैं ! वो क्रमश: अपनी दिशा परिवर्तन करती रहती हैं ! उनमे हमें अनेक शाखाएँ दिखाई देती हैं ! उन्ही शाखाओ मे एक आकृति सर्पाकृति होती है। इसी आकृति को sheshnag कहा जाता हैं !
पुराणों में शेष का वर्ण श्वेत बताया गया है ! और आकाशगंगा भी श्वेत होती हैं ! उस आकाशगंगा में ऊँ की आकृति दिखाई देती हैं ! उस ऊँ को ही ब्रह्म कहा गया है ! वो ही ऊँ की आकृति शेषनाग हैं !
दक्ष प्रजापति की पुत्रियाँ कद्रू और विनता थीं ! जिनकी शादी ऋषि कश्यप के साथ हुई थी ! देवी कद्रू ने ऋषि कश्यप से वरदान माँगा था 1000 पुत्रो का ! उन सब पुत्रो में सबसे पराक्रमी पुत्र शेषनाग थे ! इस प्रकार शेषनाग के पिता का नाम ऋषि कश्यप और माता का नाम देवी कद्रू था !
शेषनाग को नागराज व अनंत के नाम से भी जाना जाता हैं ! अपने 1000 नाग भाइयों में शेषनाग सबसे बड़े भाई हैं ! मगर शेषनाग की गिनती सबसे बलशाली नागों में की जाती हैं ! इनकी बराबरी इनके भाइयो में कोई भी नहीं कर सकता !
इनके भाइयो के मुख्य नाम वासुकि नाग, तक्षक नाग, पद्म नाग, कर्कोटक नाग, कंबल नाग, धृतराष्ट्र नाग, शंखपाल नाग, कालिया नाग, पिंगल नाग, महानाग आदि अनेक भाई हैं ! sheshnag और कालिया एक ही मां के पुत्र थे !
पुराणों के अनुसार शेषनाग की पत्नी का नाम नागलक्ष्मी naglaxmi था ! नागलक्ष्मी को ही शेषनाग की पत्नी कहा जाता है ! त्रेता युग जब भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मणजी के रूप में शेषनाग का अवतार हुआ था तब उनकी पत्नी का नाम उर्मिला था !
वही द्वापर युग में भगवन कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में शेषनाग का अवतार हुआ ! तब उनकी पत्नी का नाम रेवती था ! जो महाराज रेवत की पुत्री थी !
बुरी शक्तियों का नाश करने के लिए शेषनाग भगवान विष्णु की सहायता करने के लिए उनके साथ अवतार लेते हैं ! त्रेता युग में रावण और असुरो का नाश करने के लिए शेषनाग ने लक्ष्मण का रूप लेकर भगवान राम की सहायता की थी !
हिंदू धर्म ग्रंथ रामायण में भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मणजी को शेषनाग का अवतार बताया गया हैं ! वही द्वापर युग में भगवन कृष्ण की सहायता के लिए वे बलराम के रूप में जन्मे थे। जब वसुदेव जी भगवान कृष्ण के कारावास में जन्म के बाद उन्हें टोकरी में रख कर नंद जी के यहां ला रहे थे !
sheshnag छतरी की तरह भगवान कृष्ण को बारिश से बचा रहे थे ! द्वापर यूग में शेषनाग को भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का अवतार बताया गया हैं ! लक्ष्मणजी और बलराम जी दोनों को ही शेषनाग का अवतार माना जाता हैं ! दोनों का स्वभाव भी शेषनाग की तरह क्रोधित था !
शेषनाग कितने शक्तिशाली व पराक्रमी हैं उसका वर्णन महाभारत mahabharat, रामायण ramayan और कई अन्य ग्रंथो में विस्तार से बताया गया हैं ! समस्त नागो के स्वामी शेषनाग बहुमुखी सिरों को धारण किये हैं ! जिन्होंने अपने बहुमुखी सिरों पर समस्त ग्रहो, ब्रह्मांडो का भार उठा रखा हैं !
और ब्रह्मांड के निर्माण और विनाश में भी शेषनाग जी की विशेष भूमिका हैं ! क्षीर सागर में भगवान हरि इन्हीं पर शयन करते हैं ! पुराणों के अनुसार शेषनाग के हजारो सिर (मस्तक) हैं !
शेषनाग sheshnag की पुत्री का सुलोचना नाम था ! जो सति सुलोचना के नाम से भी जानी जाती हैं ! जो लंका के राजा रावण के बेटे मेघनाथ की धर्मपत्नी थी ! राम और रावण के युद्ध में भगवान श्री राम के छोटे भाई लक्ष्मणजी के द्वारा मेघनाथ वध करने के बाद सुलोचना अपने पति का शव लेकर वापस लंका आई।
और लंका में समुद्र के तट पर चंदन की लकड़ी से चिता तैयार की। और अपने स्वामी का शीश गोद में रखकर सुलोचना चिता पर बैठी गई ! और धधकती हुई अग्नि में कुछ ही पलों में सुलोचना सती हो गई ! अगर आपको सति सुलोचना के बारे में ज्यादा जानकारी लेनी हो तो, सती सुलोचना कौन थी ?? यह लेख पढ़े !
शेषनाग कि माता व भाइयों ने मिलकर जब उनके साथ छल-कपट किया ! मां और भाइयों का साथ छोड़कर शेषनाग गंधमादन पर्वत पर तपस्या करने लगे ! तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उन्हें वरदान दिया ।
और ब्रह्माजी के कहने पर शेषनाग ने संपूर्ण धरती को अपने फन पर धारण किया ! क्षीरसागर में भगवान हरी शेषनाग के आसन पर ही विराजमान रहते हैं !
भगवान विष्णु तब-तब किसी ना किसी रूप मेंअवतार अवश्य लेते हैं। भगवान विष्णु का वाहन गरुड़ हैं , लेकिन शेषनाग का साथ उनके हर अवतार के साथ जुड़ा हुआ हैं ! शास्त्रों में भगवान हरि का स्वरूप शांत, आनंदमयी और कोमल बताया गया हैं !
तो दूसरी ओर भगवान हरि के काल रूप शेषनाग पर आनंद मुद्रा में शयन करते हुए देखे जा सकते हैं ! भगवान हरि के इसी स्वरूप के बारे में शास्त्रों में बताया गया हैं ‘शान्ताकारं भुजगशयनं’ मतलब शांत स्वरूप तथा शेषनाग sheshnag पर शयन करने वाले भगवान हरि ही हैं !
सनातन को मानने वाला हर व्यक्ति अगर भगवन को मानता हैं तो उसे शेषनाग के बारे में संशय नहीं होना चाहिए ! क्योकि अगर सच में भगवान विष्णु हैं तो शेषनाग भी अवश्य हैं !
क्योकिं कई बार व्यक्ति टूटकर बिखर भी जाता हैं ! और भगवान विष्णु का शांत स्वरूप ऐसे बुरे समय में संयम एवं धीरज के साथ मुश्किलों पर काबू पाने की प्रेरणा हमें देते हैं ! मनुष्यों को विपरीत परिस्थितियों में भी अपने मन को शांत, स्थिर, निर्भय तथा निश्चित मन एवं मस्तिष्क के साथ अपने धर्म का पालन करना चाहिए !
क्योकिं भगवान विष्णु के भुजंग अथवा शेषनाग sheshnag पर शयन का विपरीत परिस्थितियों में धेर्य का प्रतीक हैं ! इसलिये भगवान विष्णु और शेषनाग का संबंध शाश्वत हैं !
पृथ्वी की संरचना ऊपर की भूपर्पटी प्लेटों से बनी हैं ! और इन प्लेटों के नीचे मैंटल होता है! निचली सीमा पर 140 GPa का दाब पाया जाता है ! इस मैंटल में संवहनीय धाराओ का प्रवाह होता हैं ! जिस कारण स्थलमंडल की प्लेटों में गति होती हैं !
इस प्रकार की गतियों को रोकने के लिए एक बल काम करता हैं ! जिसको हम भुचुम्बकत्व कहते हैं ! इसी भुचुम्बकत्व की वजह से ही टेक्टोनिक प्लेट जिनसे भूपर्पटी का निर्माण हुआ है वो स्थिर रहती हैं ! और उसकी वजह से कही भी कोई गति नही होती !
तो क्या अब हमें मान लेना चाहिए की यहीं भुचुम्बकत्व ही शेषनाग हैं ! भूकंप शेषनाग के हिलने से आता हैं या भुचुम्बकत्व कि बिगड़ने से, बात एक ही हैं ! हमारे सनातन वैदिक ग्रंथों में इसी भुचुम्बकत्व को ही शेषनाग बताया गया हैं !
पहलगाम से लगभग 29 कि.मी दूर और 3660 मीटर की ऊँचाई पर शेषनाग sheshnag Lake झील स्थित हैं ! यह झील अमरनाथ के प्रमुख आकर्षक स्थलो में से एक प्रमुख स्थल हैं। इस स्थान का नाम शेषनाग पर रखा गया हैं, और इस झील के पास सात पहाडियाँ हैं !
पहलगाम से शेषनाग तक की पैदल यात्रा के लिए लगभग दो दिन का समय लग जाता हैं। सर्दियों में ठंड के कारण यह झील बर्फ की चादर से ढकी रहती हैं ! पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव अमरनाथ गुफा जाते समयअपने गले के नाग को इसी स्थान पर उतारा था !
तब से इस झील का नाम शेषनाग झील पड़ा ! जो आज भी अमरनाथ जाते समय आपको रास्ते में देखने को मिल जाएगी !
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्भनाभं च कंबलम्।
शंखपाल धार्तराष्ट्र तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायं काले पठेन्नित्यं प्रात: काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
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यह सारी जानकारी मैंने अपने निजी स्तर पर खोजबीन करके इकट्ठी की है ! इसमें त्रुटि हो सकती है । उसके लिए मैं आपसे अग्रिम क्षमा याचना करता हूं ! (नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं )
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