सतीयो में एक प्रमुख नाम सती सुलोचना का भी आता है ! सती सुलोचना भगवान शंकर के गले में लिपटे वासुकी नाग की पुत्री थी ! और लंका के राजा रावण के पुत्र मेघनाद की धर्मपत्नी थी। सुलोचना सती कैसे बनी, Sati Sulochana कौन थी ?? हम उन के बारे में जानते है !
सती सुलोचना ने कहा :- मेरी हार का कारण जानते हो लक्ष्मण, मैं किस कारण से हार गई।
तो सुनो लक्ष्मण ! मेरे पति पतिव्रता नारी का अपहरण करने वाले पिता का अन्न खाते थे ! और उन्हीं के लिये युद्ध में उतरे थे ! इसी कारण मेरे स्वामी मेघनाद परलोक सिधार गये ! अगर मेरे स्वामी मेघनाद की वीरता के बारे में संदेह हो तो मन से निकाल देना !
अब लक्ष्मण जी को पाता चला की सती सुलोचना कौन थी ??
रावण के महापराक्रमी पुत्र मेघनाद का वध करने की प्रतिज्ञा लेकर लक्ष्मणजी युद्ध भूमि में जाने लगे ! तब श्री राम ने सती सुलोचना के बारे में लक्ष्मणजी को चेताना पड़ा ! कहा की लक्ष्मण, युद्ध भूमि में तुम अपनी वीरता और कौशलता से मेघनाद का वध कर दोगे !
इस बात का मुझे कोई संदेह नहीं है ! परंतु मेरी एक बात का विशेष ध्यान रखना कि, मेघनाद का मस्तक भूमि पर ना गिरे ! क्योंकि मेघनाद एकनारी-व्रतधर्म का पालन करने वाला व उसकी पत्नी सुलोचना परम पतिव्रता स्त्री है !
ऐसी साध्वी स्त्री के पति का मस्तक अगर भूमि पर गिरा तो हमारी सारी सेना का विनास हो जाएगा ! और युद्ध में हमें विजय श्री की आशा त्यागनी पड़ेगी !
अपने बड़े भाई-राम की बातों को ध्यान में रखकर लक्ष्मण अपनी सेना को लेकर युद्ध भूमि में चल पड़े ! युद्ध भूमि में उन्होंने वैसा ही किया जैसे श्री राम ने बताया ! युद्ध में लक्ष्मण ने अपने बाणों से मेघनाद का मस्तक धड़ से अलग कर दिया !
पर मस्तक को भूमि पर नहीं गिरने दिया ! और हनुमानजी उस आकाश में उड़ते हुवे मस्तक को भगवान श्रीराम के पास ले आये !
पर Sati Sulochana ने उस कटी भुजा को स्पर्श नहीं किया। क्योंकि उसने सोचा, यह भुजा किसी अन्य व्यक्ती की भी हो सकती है ! ऐसी स्तिथि में पर-पुरुष के स्पर्श का दोष मुझे लगेगा !
पतिव्रत सती सुलोचना कौन थी ?? आगे पढ़े ..
अपने सतीत्व की ओज से सुलोचना ने भुजा से कहा- अगर तू मेरे स्वामी की भुजा है ! तो मेरे पतिव्रत की शक्ति से युद्ध की सारी घटना कागज पर लिख दे ! मेघनाद की उस कटी भुजा को दासी ने लेखनी पकड़ा दी ! लेखिनी से भुजा ने लिखा – “प्राणप्रिये सुलोचना, यह कटी भुजा मेरी ही है ! युद्ध भूमि में लक्ष्मण से मेरा युद्ध हुआ था ! लक्ष्मण ने कई वर्षों से पत्नी, अन्न और निद्रा छोड़ रखी है !
वे इस प्रकार के तप से तेजस्वी तथा समस्त दैवी गुणों से सम्पन्न हो गये है ! तथा युद्ध में उनके साथ मेरी एक भी शक्ति काम नहीं आई ! और अन्त में उन्हीं की बाणों से मेरा प्राणान्त हो गया ! मेरा शीश हनुमानजी श्रीराम के पास ले गये है !
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पति की भुजा के द्वारा लिखित शब्दों पढ़ते ही सुलोचना अचेत हो गयी ! लंकापति रावणने अपनी पुत्र-वधु के विलाप को सुनकर कहा-शोक न करो पुत्री ! प्रात: होते ही मैं रक्त की नदियां बहा दूंगा। मेरे बाणों से काट-काट कर मैं सहस्त्रों मस्तक पृथ्वी पर गिरा दूंगा !
करुण चीत्कार करती हुई पुत्र-वधु सुलोचना बोली पर पिताश्री इससे मेरा क्या लाभ होगा ! आपके द्वारा काटे गये सहस्त्रों नहीं करोड़ों शीश भी मेरे स्वामी के शीश के आभाव की पूर्ती नहीं कर सकते !
अंत में सुलोचना ने निर्णय लिया कि मुझे अब मेरे पति के साथ सती हो जाना चाहिए ! परंतु मेरे पति का शव तो राम के पास है ! फिर वह कैसे अपने पति के बिना सती हो सकती है ! अपने ससुर रावण से अपने पति का शव राम के शिविर से मँगवाने के लिए कहा !
तब रावण ने कहा -देवी तुम स्वयं ही जाकर राम से अपने पति मेघनाद का शीश मांग लों ! क्योंकि राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, इसीलिए उनके पास जाने में तुम्हें किसी भी प्रकार का भय नहीं होना चाहिए !जिस समाज में एक पत्नीव्रती भगवान श्रीराम, परम जितेन्द्रिय लक्ष्मण और बालब्रह्मचारी हनुमान विद्यमान हो !
उन महापुरुषों के पास जाने में तुम्हें से डरना नहीं चाहिए ! मुझे विश्वास है कि वे तुम्हें निराश नहीं लौटायेगें !
सुलोचना के आगमन का समाचार मिलते ही श्रीराम खड़े हो कर स्वयं सुलोचना के पास आये ! और बोले- देवी तुम्हारे पति तीनों लोको के महान योद्धा और पराक्रमी वीर थे ! आज तुम्हें इस स्तिथि में देखकर मुझे बहुत पीड़ा हो रही है !
किंतु विधी के विधान को कौन रोक सकता है देवी ! श्री राम को पहचान कर Sati Sulochana उनकी की स्तुति करने लगी ! स्तुति करने पर श्रीराम ने सुलोचना को टोकते हुए कहा- देवी मुझे और लज्जित मत करो !
पतिव्रता स्त्री की महिमा बड़ी अपार होती है, उसकी शक्ति की तुलना मैं नहीं कर सकता ! तुम्हारे सतित्व के बल से तो सर विश्व भी थर्राता है ! आपके स्वयं यहाँ आने का कारण बताओ देवी !
सुलोचना ने अश्रुपूरित नयनों से प्रभु श्रीराम की ओर देखकर बोली ! प्रभु मैं सती होने के लिये अपने पति का मस्तक आपसे लेने के लिये यहाँ पर आई हूँ ! भगवान श्रीराम ने ससम्मान मेघनाद का शीश मंगवाकर सुलोचना को दे दिया !
अपने पति का छिन्न-भिन्न शीश देखकर सुलोचना का हृदय अत्यधिक दु;खी हो गया !उसकी आंखों आंसू निकल पड़े बड़े ! और उसने रोते हुवे पास खड़े लक्ष्मण की ओर देखकर कहा ! सुमित्रानन्दन, तुम भूलकर भी इस बात का घमंड मत करना की मेघनाथ का वध मैंने किया है !
विश्व में ऐसी कोई शक्ति नहीं जो मेघनाद को धराशायी कर सके !
यह तो उन दो पतिव्रता नारियों का भाग्य था। जिनमे आपकी पत्नी भी एक पतिव्रता हैं, और मैं भी अपने पति के चरणों की अनन्य उपसिका हूँ। पर मेरी हार का कारण जानते हो लक्ष्मण, मैं किस कारण से हार गई।
तो सुनो लक्ष्मण, मेरे पति पतिव्रता नारी का अपहरण करने वाले पिता का अन्न खाते थे, और उन्हीं के लिये युद्ध में उतरे थे। इसी कारण मेरे स्वामी मेघनाद परलोक सिधार गये।
अगर मेरे स्वामी मेघनाद की वीरता के बारे में संदेह हो तो मन से निकाल देना ! अब लक्ष्मण जी को पाता चला की सती सुलोचना कौन थी ??
सुलोचना को राम शिविर में देखकर सभी योद्धा चकित रह गये। वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर सुलोचना को कैसे पता चला कि उसके पति मेघनाद का शीश भगवान राम के पास है।
सुग्रीव ने अपनी जिज्ञासा को शान्त करने के लिये सुलोचना से पूछ ही लिया ! आपको यह बात उन्हें कैसे मालूम हुआ, कि मेघनाद का शीश श्रीराम के शिविर में है !
की मेरे पति मेघनाद की कटी भुजा युद्ध भूमि से उड़ती हुई मेरे पास चली आ गई थी। उसी मेघनाद की कटी भुजा ने मुझे लिखकर बता दिया था की मेरा शीश श्रीराम के शिविर में है। सुलोचना की बाते सुनकर व्यंग्य भरे शब्दों में सुग्रीव बोल उठा। कभी कटी निष्प्राण भुजा भी लिख सकती है क्या।
अगर कटी निष्प्राण भुजा भी लिख सकती है, तो फिर यह कटा हुआ शीश भी हंस सकता है ! श्री राम ने सुग्रीव से कहा- मित्र “व्यर्थ की बातें मत करो। तुम पतिव्रता के महाम्तय को जानते नहीं हो। यदि सुलोचना चाहे तो मेघनाद का यह कटा हुआ शीश भी हंस सकता है !
सुलोचना श्रीराम की मुखकृति की और देखकर उनके भावों को समझ गयी ! तब Sati Sulochana ने कहा- यदि मैं मन, वचन और कर्म से अपने पति मेघनाद को परमेश्वर मानती हूँ ! तो मेरे पति मेघनाद का यह निर्जीव मस्तक हंस उठे ! सुलोचना के इतना कहते ही कटा हुआ मस्तक जोर-जोर से हंसने लगा ! यह देखकर श्री राम सहित सभी दंग रह गये।
भगवान श्री राम सहित उपस्थित सभी लोगों ने पतिव्रता सुलोचना को प्रणाम किया ! और सभी पतिव्रता सुलोचना की महिमा को जान गये !शव को ले जाते समय सुलोचना ने श्रीराम से प्रार्थना की- और कहा की भगवन, आज मेरे स्वामी की अन्त्येष्टि क्रिया है ! और मैं उनकी सहचरी उनसे मिलने जा रही हूँ।
अत: आप आज युद्ध को बंद कर दो। श्रीराम ने सुलोचना की बात को स्वीकार कर युद्ध को बंद कर दिया। Sati Sulochana ने पति का शव लेकर वापस लंका आ गई। और लंका में समुद्र के तट पर चंदन की लकड़ी से चिता तैयार की। और अपने स्वामी का शीश गोद में रखकर सुलोचना चिता पर बैठी गई ! और धधकती हुई अग्नि में कुछ ही पलों में सुलोचना सती हो गई !
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