Sarsvti Chalisa
श्री सरस्वती चालीसा, शारदा चालीसा, सरस्वती माता चालीसा, माँ शारदे चालीसा, शारदे माता चालीसा
शिक्षक, विद्यार्थी, गायक, संगीतकार और कला के क्षेत्र के लोगो को माँ sarsvti chalisa : श्री सरस्वती चालीसा,शारदा चालीसा,सरस्वती माता चालीसा, माँ शारदे की आराधना अवश्य करनी चाहिए ! माता सरस्वती जी को विद्या की देवी के रूप में जाना जाता हैं !
शिक्षक, विद्यार्थी, गायक, संगीतकार और कला के क्षेत्र के लोग सरस्वती जी की वंदना से कार्य की शुरुआत करते है ! माँ सरस्वती को संगीत की अधिष्ठात्री देवी माना जाता हैं ! श्वेत वस्त्र व हाथ में वीणा और श्वेत कमलों के आसन पर माँ सरस्वती विराजमान रहती हैं !
बसंत पंचमी पर माँ की आराधना बड़ी धूमधाम से की जाती हैं ! अज्ञान को दूर कर देने वाली देवी सरस्वती सब की रक्षा करें !
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श्री सरस्वती चालीसा
(sarsvti chalisa)
जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥ (१)
पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥ (२)
II चोपाई II
ॐ जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥ (१)
जय जय माँ जय वीणाकर धारी।
करती सदा हंस पर असवारी॥ (२)
रूप चतुर्भुज धारी माता।
सकल विश्व अन्दर विख्याता॥ (३)
जग में पाप बुद्धि जब होती।
तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥ (४)
तब ही मातु का निज अवतारी।
पाप हीन करती महतारी॥ (५)
वाल्मीकिजी थे हत्यारा।
तव प्रसाद जानै संसारा॥ (६)
रामचरित जो रचे बनाई।
आदि कवि की पदवी पाई॥ (७)
कालिदास जो भये विख्याता।
तेरी कृपा दृष्टि से माता॥ (८)
तुलसी सूर आदि विद्वाना।
भये और जो ज्ञानी नाना॥ (९)
तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।
करी कृपा आपकी अम्बा॥ (१०)
करहु कृपा सोइ मातु भवानी।
दुखित दीन निज दासहि जानी॥ (११)
पुत्र करहिं अपराध बहूता।
तेहि न धरई चित माता॥ (१२)
राखु लाज जननि अब मेरी।
विनय करउं भांति बहु तेरी॥ (१३)
मैं अनाथ तेरी अवलंबा।
कृपा करउ जय-जय जगदंबा॥ (१४)
मधुकैटभ जो अति बलवाना।
बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥ (१५)
समर हजार पाँच में घोरा।
फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥ (१६)
मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।
बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥ (१७)
तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥ (१८)
चंड मुण्ड जो थे विख्याता।
क्षण महु संहारे उनको माता॥ (१९)
रक्त बीज से समरथ पापी।
सुरमुनि हदय धरा सब काँपी॥ (२०)
काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।
बारबार बिन वउं जगदंबा॥ (२१)
जग प्रसिद्ध जो शुंभ निशुंभा।
क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा॥ (२२)
भरत मातु बुद्धि फेरेऊ जाई।
रामचन्द्र बनवास कराई॥ (२३)
एहि विधि रावण वध तू कीन्हा।
सुर नर मुनि सबको सुख दीन्हा॥ (२४)
को समरथ तब यश गुन गाना।
निगम अनादि अनंत बखाना॥ (२५)
विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।
जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥ (२६)
रक्त दन्तिका और शताक्षी।
नाम अपार है दानव भक्षी॥ (२७)
दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥ (२८)
दुर्ग आदि हरनी तू माता।
कृपा करहु जब-जब सुखदाता॥ (२९)
नृप कोपित को मारन चाहे।
कानन में घेरे मृग नाहे॥ (३०)
सागर मध्य पोत के भंजे।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥ (३१)
भूत प्रेत बाधा या दुःख में।
हो दरिद्र अथवा संकट में॥ (३२)
नाम जपे मंगल सब होई।
संशय इसमें करई न कोई॥ (३३)
पुत्रहीन जो आतुर भाई।
सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥ (३४)
करै पाठ नित यह चालीसा।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥ (३५)
धूप दिप जो नैवेद्य चढ़ावै।
संकट रहित अवश्य हो जावै॥ (३६)
भक्ति मातु की करे हमेशा।
निकट न आवै ताहि कलेशा॥ (३७)
बंदी पाठ करें सत बारा।
बंदी पाश दूर हो सारा॥ (३८)
राम सागर बाँधि हेतु भवानी।
कीजै कृपा दास निज जानी॥ (३९)
॥ दोहा ॥
मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु परूँ न मैं भव कूप॥ (१)
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही देदातु॥ (२)
॥ श्री सरस्वती चालीसा सम्पूर्ण ॥
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