बहुत से लोगो को नहीं पता हैं की सबसे पहले किसने शरू किया था श्राद्ध ? तो आएये जानते हैं के हमारे सनातन धर्म में Pitru Paksha Shradh यानि श्राद्ध पक्ष की ये परंपरा कब और कैसे शुरू हुई ! और फिर कैसे ये धीरे-धीरे सनातन धर्म के मानने वाले लोगों तक पहुंची !
महाभारत में भी पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के संबंध में कई ऐसी बातें बताई थी ! जो वर्तमान समय में बहुत कम लोगो को मालूम हैं ! आज हम श्राद्ध से संबंधित ऐसी ही रोचक बाततो के बारे में जानेगें !
महातपस्वी अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध का उपदेश महर्षि निमि को दिया था ! इस प्रकार सबसे पहले श्राद्ध का आरंभ महर्षि निमि ने किया था ! उसके बाद अन्य सभी महर्षियो ने भी श्राद्ध करना शुरू किया ! इस प्रकार यह प्रथा सनातन धर्म के मानने वाले चारों वर्णों के लोगों तक पहुंची ! और लोग अपने पितरों को श्राद्ध में अन्न,जल देने लगे !
ब्रह्माजी, पुलस्त्य ऋषि, वसिष्ठ मुनि, पुलह, अंगिरा ऋषि, क्रतु और महर्षि कश्यप-ये सात ऋषि महान योगेश्वर और पितर माने गए हैं !
श्राद्ध क्या हैं ? What Is Pitru Paksha Shradh
श्रद्धया दीयते यत् तत् श्राद्धम्। ‘श्राद्ध’ का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाता हैं ! श्रद्धापूर्वक पितरों के लिए दिए गए पदार्थ-दान (हविष्यान्न, तिल, कुश, जल के दान) का नाम ही श्राद्ध हैं ! हमारे पुराणों में पितृऋण चुकाने का सरल व सहज मार्ग श्राद्धकर्म बताया गया हैं !
पितृगण पितृपक्ष में श्राद्ध करने से वर्षभर प्रसन्न रहते हैं ! व्यक्ति केवल अपने सगे-सम्बन्धियों को ही नहीं, बल्कि ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त सभी प्राणियों व जगत को श्राद्ध-कर्म से तृप्त कर सकता हैं !
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महर्षि निमि ने श्राद्ध के बारे में और जो कुछ बताया, उस बारे में भी हम जानेगें !
ऐसे करना चाहिए, पिंडदान और तर्पण :-
पितरों के आशीर्वाद से मनुष्य को दीर्ध-आयु, वैभव, और धन की प्राप्ति होती हैं ! अपने पुत्र-पुत्रो द्वारा दिए गए पिंडदान पाकर पितर प्रेतत्व के कष्ट से छुटकारा पा जाते हैं !
महाभारत के अनुसार, श्राद्ध पक्ष में जो तीन पिंड दिए जाते हैं उनका विधान इस प्रकार हैं !
- नदी के किनारे पर अपने पितरों का पिंडदान और तर्पण अवश्य करना चाहिए !
- पहला जल में डाल देना चाहिए। क्योकिं पहला पिंड जो पानी के भीतर चला जाता है, वो चंद्रमा को तृप्त करता हैं , और चंद्रमा पितरों को संतुष्ट करते हैं !
- दूसरा पिंड श्राद्धकर्ता की पत्नी को खिला देना चाहिए ! गुरुजनों की आज्ञा से जो दूसरा पिंड पत्नी खाती हैं ! उससे प्रसन्न होकर पितर पुत्र की कामना वाले पुरुष को पुत्र प्रदान करते हैं।
- और तीसरे पिंड की अग्नि में छोड़ देना चाहिए ! अग्नि तृप्त होकर पितरो द्वारा मनुष्य की समस्त कामनाएं पूर्ण करते हैं ! यही श्राद्ध का विधान है। जो इसका पालन करता है, उसके पितर सदा प्रसन्नचित्त और संतुष्ट रहते हैं ! और उसका दिया हुआ दान अक्षय होता हैं !
- अपने कुल के पितरों को सबसे पहले जल से तृप्त करने के बाद अन्य संबंधियों, गुरु और मित्रों को जलांजलि देनी चाहिए !
Pitru Paksha Shradh
प्राय: कुछ लोगो को यह शंका होती हैं कि श्राद्ध में समर्पित की गईं वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती है ? और मन में यह शंका भी होती है कि एक छोटे से पिण्ड से अलग-अलग योनियों में पितरों को तृप्ति कैसे मिलती हैं ?
अलग-अलग कर्मों के अनुसार मरने के बाद हमें योनिया भी भिन्न-भिन्न मिलती हैं ! किसी को देवता, कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई वृक्ष और कोई तृण बन जाताहैं !
एक बार राजा करन्धम ने महायोगी महाकाल से पूछा- ‘मनुष्यों द्वारा पितरों के लिए जो तर्पण या पिण्डदान किया जाता हैं ! तो वह जल, पिण्ड आदि तो यहीं रह जाता है, फिर पितरों के पास वे वस्तुएं कैसे पहुंचती हैं ! और कैसे पितरों को तृप्ति होती हैं ?
भगवान महाकाल ने बताया कि–विश्व नियन्ता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है, कि श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरुप होकर पितरों के पास पहुंचती हैं ! इस व्यवस्था के अधिपति हैं, अग्निष्वात आदि ! पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा ग्रहण कर लेते हैं ! और दूर से कही गयी स्तुतियों से ही प्रसन्न हो जाते हैं !
वे भूत, भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं ! और सभी जगह पहुंच सकते हैं ! पांच तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति–इन नौ तत्वों से उनका शरीर बना होता हैं ! और इसके भीतर दसवें तत्व के रूप में साक्षात् भगवान पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं ! इसलिए देवता और पितर गन्ध व रसतत्व से तृप्त होते हैं !
शब्दतत्व से रहते हैं और स्पर्शतत्व को ग्रहण करते हैं ! पवित्रता से ही वे प्रसन्न होकर वरदान देते हैं ! जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सार-तत्व (गंध और रस) हैं ! अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं ! शेष जो स्थूल वस्तु है, वह यहीं रह जाती है !
किस रूप में पहुंचता है पितरों को आहार ?
नाम व गोत्र के उच्चारण के साथ जो अन्न-जल आदि पितरों को दिया जाता है, विश्वेदेव एवं अग्निष्वात (दिव्य पितर) हव्य-कव्य को पितरों तक पहुंचा देते हैं।
यदि पितर देवयोनि को प्राप्त हुए हैं तो यहां दिया गया अन्न उन्हें ‘अमृत’ होकर प्राप्त होता है। यदि गन्धर्व बन गए हैं तो वह अन्न उन्हें भोगों के रूप में प्राप्त होता है। यदि पशुयोनि में हैं तो वह अन्न तृण के रूप में प्राप्त होता है।
नागयोनि में वायुरूप से, यक्षयोनि में पानरूप से, राक्षसयोनि में आमिषरूप में, दानवयोनि में मांसरूप में, प्रेतयोनि में रुधिररूप में और मनुष्य बन जाने पर भोगने योग्य तृप्तिकारक पदार्थों के रूप में प्राप्त होता हैं।
जिस प्रकार बछड़ा झुण्ड में अपनी मां को ढूंढ़ ही लेता है, उसी प्रकार नाम, गोत्र, हृदय की भक्ति एवं देश-काल आदि के सहारे दिए गए पदार्थों को मन्त्र पितरों के पास पहुंचा देते हैं।
जीव चाहें सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो, तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है।
भगवान श्रीराम द्वारा श्राद्ध में आमन्त्रित ब्राह्मणों में सीताजी ने किए राजा दशरथ व पितरों के दर्शन
श्राद्ध में आमन्त्रित ब्राह्मण पितरों के प्रतिनिधिरूप होते हैं। एक बार पुष्कर में श्रीरामजी अपने पिता दशरथजी का श्राद्ध कर रहे थे। रामजी जब ब्राह्मणों को भोजन कराने लगे तो सीताजी वृक्ष की ओट में खड़ी हो गयीं।
ब्राह्मण-भोजन के बाद रामजी ने जब सीताजी से इसका कारण पूछा तो वे बोलीं–‘मैंने जो आश्चर्य देखा, उसे आपको बताती हूँ। आपने जब नाम-गोत्र का उच्चारणकर अपने पिता-दादा आदि का आवाहन किया तो वे यहां ब्राह्मणों के शरीर में छायारूप में सटकर उपस्थित थे।
ब्राह्मणों के शरीर में मुझे अपने श्वसुर आदि पितृगण दिखाई दिए फिर भला मैं मर्यादा का उल्लंघन कर वहां कैसे खड़ी रहती; इसलिए मैं ओट में हो गई।
यानि श्राद्धपक्ष में करें ये काम
Pitru Paksha Shradh यानि श्राद्धपक्ष में नहीं करें ये कार्य :-
Pitru Paksha Shradh
पितृपक्ष में गाय, कुत्ता, कौआ और चींटी को भोजन देना क्यों है जरूरी ?
पितरों के निमित्त पिंडदान, तर्पण, ब्राह्मण भोज और दान कर्म किया जाता हैं ! पितृपक्ष में गाय, कुत्ते, चींटी, कौवे आदि को आहार दने की परंपरा हैं !
गरुड़ पुराण में इसके महत्व को बताया गया है, कि क्यों श्राद्ध में पंचबलि कर्म करना चाहिए ! पंचबलि कर्म के अंतर्गत ही उपरक्त पशु पक्षी को आहार प्रदान किया जाता हैं ! आखिर क्यों? आओ जानते हैं
पंचबलि कर्म क्या हैं ?
श्राद्ध में पंचबलि कर्म किया जाता हैं ! अर्थात पांच जीवों को भोजन दिया जाता हैं ! बलि का अर्थ बलि देने से नहीं, बल्कि भोजन कराना भी होता हैं !
श्राद्ध में गोबलि, श्वानबलि, काकबलि, देवादिबलि और पिपलिकादि कर्म किया जाता हैं ! हमारे पितर किसी भी योनि में हो सकते हैं ! इसलिए पंचबलि कर्म किया जाता हैं !
- गौबलि : गौबलि अर्थात घर से पश्चिम दिशा में गाय को महुआ या पलाश के पत्तों पर भोजन परोसा जाता हैं ! तथा गाय को ‘गौभ्यो नम:’ कहकर प्रणाम किया जाता हैं ! पुराणों के अनुसार गाय में सभी देवताओं का वास माना गया हैं ! अथर्ववेद के अनुसार- ‘धेनु सदानाम रईनाम’ अर्थात गाय समृद्धि का मूल स्रोत हैं !
- श्वानबलि : श्वानबलि अर्थात कुत्ते को पत्ते पर भोजन परोसा जाता हैं ! कुत्ते को भोजन देने से भैरव महाराज प्रसन्न होते हैं ! और हर तरह के आकस्मिक संकटों से वे भक्त की रक्षा करते हैं ! कुत्ता राहु, केतु के बुरे प्रभाव और यमदूत, भूत प्रेत आदि से रक्षा करता हैं ! पितृ पक्ष में कुत्तों को मीठी रोटी खिलानी चाहिए !
- काकबलि : काकबलि अर्थात कौए के लिए छत या भूमि पर भोजन परोसा जाता है। कहते हैं कि कौआ यमराज का प्रतीक माना जाता है। यमलोक में ही हमारे पितर रहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौओं को देवपुत्र भी माना गया हैं ! बताते हैं कि यदि कौआ आपके श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर ले, तो समझो आपके पितर आपसे प्रसन्न और तृप्त हैं ! और यदि नहीं करें, तो समझो कि आपके पितर आपसे नाराज और अतृप्त हैं !
- पिपलिकादि : पिपलिकादि बलि अर्थात चींटी-कीड़े-मकौड़ों इत्यादि के लिए पत्ते पर भोजन परोसा जाता ! उनके बिल जहाँ पर हो, वहां चूरा कर भोजन डाला जाता हैं ! इससे सभी तरह के संकट मिट जाते हैं और घर परिवार में सुख एवं समृद्धि आती हैं !
- देवबलि : देवबलि अर्थात पत्ते पर देवी देवतों और पितरों को भोजन परोसा जाता हैं ! बाद में इसे उठाकर घर से बाहर उचित स्थान रख दिया जाता हैं !
हमें उम्मीद है की आपको Pitru Paksha Shradh I क्या आप जानते हो ? किसने शुरू कि श्राद्ध परंपरा पसंद आई होगी ! इसे आप अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करें ! आप अपने विचार नीचे कमेंट के माध्यम से हम तक पहुँचा सकते हैं।
धन्यवाद !