Nath Samprdaya के बारे में जानने से पहले हम उन परम सिद्ध नवनाथो के नाम जानते हैं !
1. मत्स्येंद्रनाथ
2. गोरखनाथ
3. गहिनीनाथ
4. जालन्धर नाथ
5. कानिफनाथ
6. भर्तरीनाथ
7. रेवणनाथ
8. नागनाथ
9. चरपटीनाथ
ये सभी प्रमुख नावनाथ माने जाते है ! और इनकी पूजा व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप में भी की जाती हैं !
नाथ संप्रदाय में परम सिद्ध नवनाथ के बारे में जानने से पहले नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति कैसे हुई इसके बारे में जानते हैं ! नाथ संप्रदाय की उत्पत्ति भगवान शंकर से मानी जाती हैं ! उसके बाद आदिनाथ और भगवान दत्तात्रेय को आदिगुरु मानकर नाथ संप्रदाय की शुरुआत होती हैं ! यह नाथ संप्रदाय भारत का प्राचीन मुख्य संप्रदाय हैं !
विश्व भर में नाथ योगियों की परंपरा बहुत ही प्राचीन रही हैं ! परम सिद्ध नौ नाथ की एक शाखा जैन धर्म में, दूसरी शाखा बौद्ध धर्म में भी मिलती हैं ! नाथ शब्द का अर्थ होता है मालिक या पालनहार ! नाथ संप्रदाय सनातन धर्म का एक प्रमुख अंग हैं ! बाद में नौ नाथ, और नौ नाथ से 84 नाथ सिद्धों की परंपरा शुरू हुई !
Nath Samprdaya में परम सिद्ध नवनाथ गुरुओं को नवनाथ कहा जाता हैं ! महार्णव तंत्र के अनुसार नवनाथ ही ‘नाथ’ संप्रदाय के मूल प्रवर्तक हैं ! मगर नवनाथों की सूची अलग-अलग ग्रंथों के अनुसार अलग-अलग मिलती हैं !
महार्णव तंत्र में आदिनाथ, आनंदिनाथ, करालानाथ, विकरालानाथ, महाकाल नाथ, काल भैरव नाथ, बटुक नाथ, भूतनाथ, वीरनाथ और श्रीकांथनाथ को नौ नाथ गुरु भी माने गए हैं !
नाथ संप्रदाय में परम सिद्ध नवनाथ में आदिनाथ और दत्तात्रेय के बाद सबसे महत्वपूर्ण नाम मत्स्येंद्र नाथजी का आता हैं ! जो मीननाथ और मछन्दरनाथ के नाम से भी जाने जाते हैं ! मत्स्येन्द्र नाथजी के गुरु दत्तात्रेय थे ! शंकर दिग्विजय ग्रंथ की माने तो 200 ईसा पूर्व मत्स्येन्द्रनाथ हुए थे !
मत्स्येन्द्र नाथ हठयोग के परम गुरु माने जाते हैं ! मछन्दरनाथ जी की समाधि उज्जैन के गढ़कालिका के पास स्थित हैं ! परंतु कुछ लोगो का कहना हैं कि मछिंद्रनाथ की समाधि मछीन्द्रगढ़ में हैं ! जो महाराष्ट्र के जिला सावरगांव के मायंबा गांव के पास हैं !
गोरखनाथ के गुरु का नाम हठयोगी मत्स्येन्द्रनाथ था ! चौरासी सिद्धों में गोरक्षनाथ जी को नाथ प्रमुख माना जाता हैं ! गुरु गोरखनाथ जी को गोरक्षनाथ के नाम से भी जाना जाता हैं ! हमारे देश भारत में इनके नाम पर एक नगर का नाम गोरखपुर हैं ! गोरखपंथी साहित्यो के अनुसार आदिनाथ भगवान शिव को माना गया हैं !
भारत और नेपाल की सीमा पर प्रसिद्ध शक्तिपीठ देवीपातन में गोरखनाथजी ने तपस्या की थी ! नेपाल की राजकीय मुद्रा पर श्रीगोरक्ष का नाम अंकित है नेपाल की राजकीय मुद्रा (सिक्के) पर श्रीगोरक्ष का नाम हैं ! भगवान शिव की परंपरा को सही रूप में आगे बढ़ाने का काम गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने किया !
गोरखपुर में गोरखनाथ जी का एकमात्र प्रसिद्ध मंदिर हैं ! हमारे देश की सेना में गोरखा नाम की बटालियन आज भी देश की रक्षा कर रही हैं !
गहिनीनाथ जी के गुरु गोरखनाथ जी थे ! एक बार गोरखनाथ जी अपने गुरु मछिन्दर से संजीवनी सिद्धि की विधिगत दिक्षा ग्रहण की ! संजीवनी विद्या मंत्र को सिद्ध करने के लिए श्रद्धा, तत्परता, ब्रह्मचर्य और संयम ये चार बातो का ध्यान रखना जरूरी होता हैं ! एक बार उन्होंने मिट्टी उठाई और पुतला बनाने लगे !
पुतला बनाते समय वे संजीवनी जप करने लगे ! मंत्र के प्रभाव से वो पुतला सजीव होने लगा और उस पुतले में जान आ गई ! जब पुतला पूरा हुआ तो वो बोला प्रणाम ! गुरु गोरखनाथजी चकित रह गए ! गोरखनाथजी ने उसे अपना शिष्य बनाया ! यही बालक गहिनीनाथ योगी के नाम से प्रसिद्ध हुआ !
यह कथा है कनक गांव की जहां आज भी इस कथा को याद किया जाता हैं ! गहिनीनाथ की समाधि महाराष्ट्र के चिंचोली गांव में हैं, जो तहसील पटोदा और जिला बीड़ के अंतर्गत आता हैं ! मुसलमान इसे गैबीपीर कहते हैं !
जालंधर नाथ जी के गुरु दत्तात्रेय जी थे ! उन्को गोरखनाथ जी के समकालीन माना जाता हैं ! एक समय हस्तिनापुर में ब्रिहद्रव नाम के राजा ने सोमयज्ञ करवाया ! यज्ञ के भीतर अंतरिक्षनारायण ने प्रवेश किया ! यज्ञ के समापन के बाद एक तेजस्वी बालक की प्राप्ति हुई ! यही बालक आगे जाकर जालंधर नाथ के नाम से प्रसिद्ध हुवा !
राजस्थान के जालौर के पास पश्चिमी दिशा में उसका तपस्या स्थल हैं ! यहां पर मारवाड़ के महाराजा मानसिंह ने एक मंदिर बनवाया था ! जोधपुर में महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश संग्रहालय में अनेक हस्तलिखित ग्रंथ हैं !
जिसमें जालंधर का जीवन और उनके कनकाचल में पधारने का जिक्र हैं ! चचंद्रकूप सूरजकुंड कपाली नामक यह स्थान प्रसिद्ध हैं ! जालंधर में तीन तपस्या स्थल हैं- गिरनार पर्वत, कनकाचल और रक्ताचल !
कनीफ नाथ जी को कण्हपा, कान्हूपा, कानपा, कृष्णपाद आदि प्रसिद्ध नामो से भी जाना जाता हैं ! मत्स्येन्द्र नाथ के समान ही जालंधर नाथ जी और कनीफ नाथ जी की महिमा मानी गई ! कनीफ नाथ जी के गुरु भी जालंदरनाथ जी थे ! जालंधरनाथ जी मत्स्येंद्र नाथ जी दोनों गुरु भाई माने जाते हैं !
कनीफ नाथ जी को कोई कर्णाटक का तो कोई उन्हे कोई उड़ीसा का मानते हैं ! कनीफ नाथ जी ने बद्रीनाथ में भागीरथी नदी के तट पर लगभग 12 वर्ष तपस्या की ! और कई वषो तक जंगलों और वनों में भी योग साधना की तपस्या की !
डालीबाई नाम की एक महिला ने नाथ संप्रदाय में शामिल होने के लिए कनीफनाथ जी की कठिन तपस्या की थी ! बताया जाता हैं की फाल्गुन महीने की अमावस्या के दिन डालीबाई ने समाधि ली थी ! समाधि के समय कनीफनाथ जी ने अपनी शिष्या को प्रकट होकर दर्शन भी दिए थे !
इसी समाधि पर एक अनार का वृक्ष उग आया था ! बताया जाता हैं कि इस पेड़ पर रंगीन धागा बाँधने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं डालीबाई पूर्ण करती हैं !
भर्तृहरि जी के बारे में आज कौन नहीं जनता ! राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई और गोरक्षनाथ जी के शिष्य थे भर्तृहरि जी ! गंधर्वसेन राजा ने अपना सम्पूर्ण राजपाट भर्तृहरि को सौंप दिया ! भर्तृहरि अपनी रानी पिंगला से अपार प्रेम करते थे !
अपनी रानी से मिले धोखे के कारण भर्तृहरि जी को वैराग्य जीवन अपनाना पड़ा ! उन्होंने नाथ संप्रदाय के गोरक्षनाथ जी को अपना गुरु बनाया ! और उनके शिष्य बनकर नाथ संप्रदाय को नई दिशा दी ! भर्तृहरि जी के वैरागी बन जाने के बाद उनके छोटे भाई विक्रमादित्य को राज्यभार संभालना पड़ा।
ब्रह्मदेव जी को रेवणनाथ जी के पिता के रूप मे माना जाता है ! रेवणनाथ नाथ जी महाराज नाथ संप्रदाय के सिद्ध-पुरुष माने जाते है ! दतात्रेय जी ने रेवणनाथ जी के कान में गुरु मंत्र का उपदेश दिया ! और रेवणनाथ ने अपने गुरू के चरणो में मस्तक रखकर उनके शिष्य बन गये !
वज्रशक्ति की पूजा करके दतात्रेय ने अपने शिष्य रेवणनाथ के माथे पर भस्मी मली ! जिससे रेवणनाथ जी में पूर्ण शक्ति आ गयी ! और उससे ज्ञान प्राप्त कर महान संत हुवे ! महाराष्ट्र के सोलापुर प्रांत के करमाला तहसील के वीट गांव में रेवणनाथ जी की समाधि है !
मगर कई लोग मानते है की रेवणनाथ जी की समाधि महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के नेवासा तालुका के वातपुर गांव में हैं !
माना जाता है की ब्रह्मा का वीर्य जब एक नागिन के गर्भ में चला गया, उनसे नागनाथ की उत्पत्ति हुई ! नागनाथ दो शब्दों से मिलकर बना है, एक “नाग” और दूसरा शब्द “नाथ” ! ‘नाग’ का अर्थ होता है “साँप” और ‘नाथ’ शब्द को “भगवान शिव” के रूप में रूप को माना जाता हैं !
भगवान शिव सांप से लगाव रखते हैं ! और अपनी गर्दन के चारों ओर एक अनमोल गहने की तरह लिपटाए रहते हैं ! कहने का तात्पर्य यह है की नागनाथ भगवान शिव का ही स्वरूप हैं ! नागनाथ मंदिर का निर्माण गुरु गोरखनाथ जी ने ही किया था !
चरपटीनाथ जी का एक नाम चर्पटनाथ जी भी हैं ! गोरखनाथ जी चरपटीनाथ जी के गुरु हैं ! Nath Samprdaya में इनको गोरखनाथ जी के शिष्य के रूप में माना जाता हैं ! तिब्बती परंपरा में चर्पटनाथ जी को मीनपा का गुरु माना गया हैं ।
माना जाता है कि पहले चरपटीनाथ जी रसेश्वर संप्रदाय के थे ! मगर गोरखनाथ जी के प्रभाव में वे गोरख संप्रदाय के हो गए !
भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 1
भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 2
भगवान गणेश के स्त्री रूप का नाम विनायकी
नाथ संप्रदाय हठ योग पर आधारित संप्रदाय हैं ! इस संप्रदाय में भी अवधूत योगी होते हैं ! भगवान शंकर से Nath Samprdaya की शुरुआत मानी जाती हैं ! दीक्षा लेने के लिए कान छिदवाना और बिना सिले कपड़े पहनना मुख्य नियम हैं ! योगी आदित्यनाथजी को नाथ संप्रदाय का प्रमुख योगी माना जाता हैं ! पातंजल विधि इस पंथ वालों की विकसित योग साधना हैं !
नियमों के अनुसार इस संप्रदाय में योगियों का दाहसंस्कार नहीं किया जाता हैं ! इनमे तो जीवित समाधि या मृत्यु उपरांत समाधि का रिवाज हैं ! मांस आदि तामसी भोजनों का इस संप्रदाय में निषेध हैं !
नाथ संप्रदाय में परम सिद्ध नवनाथ में आदेस शब्द के महत्व के बारे में जानते हैं ! भगवान शिव की सात्विक भाव से उपासना Nath Samprdaya में की जाती हैं ! और नाथ लोग अलख शब्द से अपने इष्ट देव का ध्यान करते हैं ! भगवान शिव को नाथ सम्प्रदाय अलख नाम से सम्बोधित करते हैं !
योगी अभिवादन के लिए अलख या आदेश शब्द का प्रयोग करते हैं ! अलख और आदेश शब्द का मतलब होता हैं परम पुरुष ! जिसका वर्णन हमारे वेद और उपनिषदो में किया गया हैं ! नाथ साधु-सन्त हठयोग पर विशेष बल देकर अपनी साधन करते हैं !
Nath Samprdaya में परम सिद्ध नवनाथ बनने की सबसे कठिन परीक्षा कर्ण छेदन, कान फाडना या चीरा चढ़ाने की होती हैं ! इस प्रथा का प्रचलन गोरखनाथ जी ने शुरू किया था ! गोरखनाथ जी ने अपने अनुयायी शिष्यों के लिए कर्ण छेदन, कान फाडना या चीरा चढ़ाने की कठोर परीक्षा शुरू की थी !
आज भी नाथ संप्रदाय में यह प्रथा प्रचलित है ! कान फाड़ने का मतलब होता है- हर एक योगी को कष्ट सहने की शक्ति, दृढ़ता और वैराग्य की ताकत को बढ़ाना ! कान फड़ाने के बाद योगी बहुत से सांसारिक मायाजाल व मोह से बचा राहत हैं !
हालांकि लंबे समय तक दीक्षा लेने वाले योगीयो की परीक्षा लेने के बाद ही कान फाड़े जाते हैं ! फिर गुरु द्वारा ही कुण्डल कानों में पहनाए जाते हैं ! एकबार कुण्डल धारण करने के बाद उसे निकला नहीं जा सकता !
आदिगुरू भगवान शिव को नाथ संप्रदाय जनक माना जाता हैं ! नाथपंथी भजन गाते हुए एक जगह से दूसरी जगह घूमते रहते हैं ! हर एक योगी को भस्म रमाना अनिवार्य होता हैं ! लेकिन भस्म स्नान का एक विशेष अर्थ होता हैं ! प्राणायाम की क्रिया में योगी अपने शरीर में श्वास का प्रवेश रोक देते हैं !
और अपने रोमकूपों को भी भस्म से बन्द कर देते हैं ! भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करते हैं ! अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव में नाथ साधक किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं ! और कुछ नाथ साधक हिमालय की गुफाओं में मरणोपरांत तक साधन के लिए चले जाते हैं !
चलो आगे और जानते है Nath Samprdaya में परम सिद्ध नवनाथ के बारे में
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वैसे तो Nath Samprdaya में दीक्षा लेने के लिए किसी भी प्रकार का भेद-भाव आदि काल से नहीं रहा हैं ! नाथ संप्रदाय में किसी भी जाति, वर्ण या फिर किसी भी उम्र में दीक्षा ली जा सकती हैं ! जो व्यक्ति नाथ संप्रदाय को अपनाना चाहे उसे पहले 7 से 12 साल तक की कठोर तपस्या करनी पड़ती हैं !
उसके बाद ही उस संन्यासी को नाथ संप्रदाय की दीक्षा दी जाती हैं ! दीक्षा देने से पहले और बाद में दीक्षा पाने वाले संन्यासी को उम्र भर नाथ संप्रदाय के कठोर नियमों का पालन करना पड़ता हैं !
दीक्षा लेने के बाद किसी राज दरबार में या राज घराने में जाकर भोजन नहीं कर सकता ! लेकिन वह संन्यासी राज दरबार या राजा से भिक्षा जरूर मांग सकता हैं !
Nath Samprdaya को ही अवधूत कहा जाता हैं ! अवधूत का अर्थ होता है स्त्री रहित या मोह-माया के प्रपंच से जो दूर रहना, उसे ही अवधूत कहा जाता हैं ! और जो संत सांसारिक सुखों व सभी तरह के प्रकृतिजन्य विकारों को त्याग दे, वो ही अवधूत होता हैं !
कहने का तात्पर्य यह है की नाथ संप्रदाय मे आने के बाद भोतीक सुखो का त्याग करना पड़ता हैं ! और उनकी एक ही अभिलाषा होती हैं, और वो है परम पद को पाना !
नाथ संप्रदाय को 12 शाखाओं में बंटा गया हैं ! जिसको बारह पंथ के नाम से जाना जाता हैं ! इस कारण नाथ संप्रदाय को बारह-पंथी साधु भी कहा जाता हैं ! हर एक पंथ पौराणिक देवता या सिद्ध योगी को अपना इष्ट देव मानता हैं !
इन 12 पंथों के नाम एस प्रकार से हैं-:
1.सत्यनाथ पंथ
2.धर्मनाथ पंथ
3. रामानन्द पंथ
4. श्वरी पंथ
5.कंथड़ पंथ
6.कपिलानी पंथ
7.वैराग्य पंथ
8.माननाथ पंथ
9.आई पंथ
10.पागल पंथ
11. ध्वजनाथ पंथ
12. गंगानाथ पंथ है !
इसके बाद में और भी पंथ इसमें जुड़ते गए ! इस बारे में कभी विस्तार से चर्चा करेगें !
आपको नाथ संप्रदाय की यह जानकारी कैसी लगी, कमेंट करके जरूर बताना ! सनातन धर्म की जानकारी अधिक से अधिक अपने रिश्तेदारों, मित्रों व सगे संबंधियों तक पहुंचाने के लिए इसको अधिक से अधिक शेयर जरूर करें !
यह सारी जानकारी मैंने अपने निजी स्तर पर खोजबीन करके इकट्ठी की है ! इसमें त्रुटि हो सकती हैं ! उसके लिए मैं आपसे अग्रिम क्षमा याचना करता हूं !
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