हमने भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 1 में भगवान विष्णु के 12 अवतारो के बारे में जाना ! और अब हम भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 2 (Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 2) में अगले 12 अवतारो के बारे में जानेगें ! क्योकि हमें सनातन के बारे जानना और समझना है, न की केवल पढ़ना ! इसलिए हमने इन अवतारों को 2 भागो में बांटा हैं ! तो इस भाग 2 के 12 अवतारो के नाम जानते हैं ! फिर उन के बारे में विस्तार से जानेगें !
अब हम बाकि 12 अवतारो के नाम इस भाग में जानते हैं ! Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 2
13. मोहिनी अवतार
14. नृसिंह अवतार
15. वामन अवतार
16. हयग्रीव अवतार
17. श्रीहरि अवतार
18. परशुराम अवतार
19. महर्षि वेदव्यास अवतार
20. हंस अवतार
21. श्रीराम अवतार
22. श्रीकृष्ण अवतार
23. बुद्ध अवतार
24. कल्कि अवतार
भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 2 ( Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 2) में हम मोहनी अवतार के बारे में बात करेगें ! जब समुद्र मंथन के समय सबसे अंत में धन्वन्तरि जी अमृत कलश लेकर समुद्र से बाहर निकले !
तो अमृत कलश को देखते ही देवताओं और दानवों में अनुशासन खत्म हो गया ! देवताओं ने कहा अमृत को पहले हम लेगें, और दानवों ने कहा पहले हम लेगें ! इसी उठापटक की बीच में इंद्र का पुत्र जयंत अमृत कलश लेकर भाग गया ! सारे देवता व दानव उसके पीछे भागे ! दानवों और देवताओं में भयंकर मार-काट मच गई !
देवता परेशान होकर भगवान विष्णु की शरण में गए ! देवताओ की परेशानी को समझकर भगवान विष्णु ने मोहिनी का अवतार लिया ! भगवान के इस मोहिनी रूप को देखकर सब मोहित हो गये ! मोहिनी ने देवता व दानवों की बाते सुनी !
और उनसे कहा कि यह अमृत कलश मुझे दे दीजिए ! तो मैं सबको बारी-बारी से सबको अमृत पान करा दूंगी ! दोनों पक्ष इस बात को मान गए ! एक तरफ देवता व दूसरी तरफ दानव बैठ गए !
भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप में नृत्य व मधुर गान करते हुए देवता व दानवों को अमृत पान कराना शुरू कर दिया ! मगर वास्तविकता में मोहिनी रूप धरे भगवान विष्णु अमृत पान तो सिर्फ देवताओं को ही करा रहे थे !
जबकि दानवों को यह आभास हो रहा था की वे भी अमृत पान कर रहे हैं ! इस प्रकार भगवान विष्णु ने मोहिनी अवतार में देवताओं को अमृत पान कराकर उनको अमर बना दिया !
भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 2 (Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 2) में हम जनेगे की दैत्यों का राजा हिरण्यकश्यप ! जो अपने आपको देवताओ से भी अधिक शक्तिशाली समझता था ! उसे वरदान प्राप्त था की न तो उसे देवता न मनुष्य और न ही कोई पशु-पक्षी मार सकता !
और न दिन मरे, न रात में, न धरती पर मरे, न आकाश में, न अस्त्र से मरे, न शस्त्र से ! उसके राज में जो भी भगवान की पूजा करता था, उसको वह दंड देता था ! हिरण्यकश्यप के पुत्र का नाम प्रह्लाद था ! प्रह्लाद बचपन से ही भगवान हारि का परम भक्त था !
इस बात जब पता हिरण्यकश्यप को चला तो वह क्रोधित हो उठा ! और उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को समझाने का बहुत प्रयास किया ! मगर फिर भी प्रह्लाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप ने उसे मृत्युदंड देने का आदेश दे दिया !
मगर एक दिन हिरण्यकश्यप ने सोचा की मेरी बहन होलिका, जिसे अग्नि से न जलने का वरदान प्राप्त है ! अगर वह प्रह्लाद को लेकर धधकती हुई अग्नि में बैठ जाए तो प्रह्लाद का अंत निश्चित है ! और उसने ऐसा ही किया !
तब भी भगवान विष्णु की कृपा से भक्त प्रह्लाद बच गया और होलिका जल गई ! फिर हिरण्यकश्यप स्वयं प्रह्लाद को मारने चले ! उसी समय भगवान विष्णु ने खंबे से प्रकट होकर नृसिंह का अवतार लिया ! और उन्होंने अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का अंत कर दिया !
Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 2 में बात करते है की जब सतयुग में प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अपना अधिकार जमा लिया ! सभी देवता इस संकट से बचने के लिए भगवान विष्णु के पास याचना लेकर गए !
तब भगवान विष्णु ने देवताओ से कहा कि मैं स्वयं अदिति के गर्भ से जन्म लेकर तुम्हें स्वर्ग का वापस दिलाऊंगा ! कुछ समय के बाद भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया !
बलि एक बार जब महान यज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन ब्राहमण के भेष मे बलि की यज्ञशाला में पहुँच गए ! और ब्राहमण के भेष में राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी !
भगवान विष्णु की लीला को समझ गए ! और उन्होंने बलि को दान देने से इंकार कर दिया ! लेकिन बलि ने फिर भी ब्राहमण समझकर तीन पग धरती दान में देने का संकल्प ले लिया ! भगवान वामन ने अपना विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक को नाप लिया !
अब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा ! फिर राजा बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा ! बलि के सिर पर पग रखने से वह पाताललोक पहुंच गया ! भगवान विष्णु ने बलि की दानवीरता देखकर उसे पाताललोक का स्वामी भी बना दिया ! इस तरह भगवान वामन ने देवताओं को स्वर्ग का सिंहासन लौटाया !
एक समय मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस ब्रह्माजी से वेदों का हरण कर पातालोक में पहुंच गए ! मधु और कैटभ द्वारा वेदों का हरण करने पर से ब्रह्माजी बहुत दु:खी हो गए ! और वे मदद के लिए भगवान विष्णु के पास गये ! भगवान विष्णुजी ने वेदों को बचाने के लिए हयग्रीव का अवतार लिया !
इस अवतार में भगवान विष्णुजी के चार हाथ व गर्दन और मुहं घोड़े के समान थी ! और भगवान हयग्रीव पातालोक में मधु-कैटभ से युद्ध के लिए पहुंचे ! विष्णुजी व दोनो राक्षसो के बीच भयंकर युद्ध हुवा ! हयग्रीव अवतार में भगवान विष्णुजी ने मधु-कैटभ दोनो राक्षसो का वध कर वेदो को वापस भगवान ब्रह्माजी को लाकर दिए !
प्राचीन समय में त्रिकूट नामक पर्वत की तराई के वनो में हाथीयों का एक विशाल झुंड रहता था ! उन हाथीयों में एक गजेंद्र नाम का शक्तिशाली हाथी अपनी हथिनियों के साथ सपरिवार रहता था !
गजेंद्र भगवान विष्णुजी का परम भक्त था ! वह रोज तालाब में स्नान करने के बाद भगवान विष्णुजी की आराधना करता था ! एक दिन जब वह अपनी हथिनियों के साथ तालाब में स्नान कर रहा था !
अचानक एक मगरमच्छ ने गजेंद्र पर हमला कर दिया ! और उसका पैर पकड़ कर पानी के अंदर खींचने लगा ! गजेंद्र और मगरमच्छ का संघर्ष काफी दिनों तक चलता रहा ! अंत में मगरमच्छ के सामने गजेंद्र शिथिल पड़ता गया !
गजेंद्र ने अपने अराध्य देव भगवान श्री विष्णुजी का ध्यान किया ! और उनसे विनती करी की हे प्रभु मुझे इस संकट से बचावों ! गजेंद्र की पुकार सुनकर सुनकर भगवान श्री विष्णुजी श्रीहरि अवतार में प्रकट हुए ! और उन्होंने अपने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का वध कर अपने भक्त को जीवनदान दिया ! भगवान श्री विष्णुजी ने गजेंद्र का उद्धार कर उसे अपना पार्षद बना लिया !
हरिवंशपुराण के अनुसार परशुराम का अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक अवतार है ! परशुराम जी को भगवान विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाना जाता है ! परशुराम जी के पिता का नाम ऋषि जमदग्नि एवं उनकी माता का नाम रेणुका था !
उनकी माता रेणुका के पाँच संतान हुई ! परशुरामजी के भाइयो का नाम इस प्रकार से है :- वसुमान, वाशुशैन, वशु, विश्वशु तथा सब से छोटे पुत्र का नाम राम था ! रेणुका के सब से छोटे पुत्र राम ने भगवान शंकरजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था !
भगवन शंकरजी ने राम की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपना फर्षा उपहार स्वरुप दिया !
प्राचीन काल में महिष्मती नामक नगरी पर शक्तिशाली हैययवंशी क्षत्रिय कार्तवीर्य अर्जुन (सहस्त्रबाहु) शासन करता था ! वह बहुत अभिमानी और अत्याचारी शासक था ! एक समय अग्निदेव ने कार्तवीर्य अर्जुन से भोजन कराने का आग्रह किया !
घमंड में आकर सहस्त्रबाहु ने कहा कि आप जहां से चाहें, वहा से भोजन प्राप्त कर सकते हो ! सभी और मेरा ही अधिकार है ! अग्निदेव ने कार्तवीर्य अर्जुन से आतिथ्य स्वीकार करने के बाद वनों को जलाना शुरु किया !
एक वन में ऋषि आपव तपस्या कर रहे थे ! अग्नि ने ऋषि आपव के आश्रम को भी जला डाला ! आश्रम के जल जाने पर आपव ऋषि क्रोधित होकर सहस्त्रबाहु को श्राप दिया ! कहा कि जब भगवान विष्णु, परशुराम के रूप में अवतार लेंगे !
तो न सिर्फ सहस्त्रबाहु का, बल्कि समस्त क्षत्रियों का सर्वनाश करेंगे ! भगवान विष्णु ने महर्षि जमदग्रि के पांचवें पुत्र के रूप में जन्म लिया ! और इस धरती से समस्त क्षत्रियों का वध किया !
महर्षि वेदव्यास जी भी भगवान विष्णु जी का ही अंश है ! महाज्ञानी महर्षि पराशर के पुत्र रूप में प्रकट हुए थे ! वेदव्यास जी का जन्म कैवर्तराज की पोष्यपुत्री सत्यवती के गर्भ से यमुना के द्वीप पर हुआ था ! जन्म के समय वेदव्यास जी के शरीर का रंग काला था ! इसलिए वेदव्यास जी का एक नाम कृष्णद्वैपायन भी था ! भगवान वेदव्यासजी विष्णुजी के ही अवतार थे !
इन्होंने ही सृष्टि की संरचना को सुचारू रूप से चलाने के लिए वेदों की रचना की थी ! वेदों की रचना करने के कारण ही उन्हें वेदव्यास भी कहा जाता है। महाभारत ग्रंथ की रचना भी महर्षि वेदव्यास जी ने ही की थी ! और इस ग्रंथ को गणेश जी ने लिखा था !
कार्तिक शुक्ला की नवमी तिथि को भगवान विष्णुजी ने हंस के रूप में अवतार लिया था ! Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 2 में हंस अवतार भगवान विष्णु का 20वां अवतार माना जाता है ! इस अवतार का उल्लेख सर्वप्रथम महाभारत में हुआ था !
श्री विष्णुसहस्रनाम में भी रूप हंस अवतार का भी जिक्र किया गया है ! हंसावतार के बारे में श्री मद्भागवत के एकादश स्कन्ध अध्याय 13 में श्रीकृष्णोद्धव संवादरूप से विस्तार से बताया गया हैं !
एक बार भगवान ब्रह्माजी अपना दरबार लगाकर देवताओ के साथ सभा में बैठे थे ! तभी वहां ब्रह्माजी के मानस पुत्र सनकादि भी सभा में पहुंच गये ! और सनकादि जी ने भगवान ब्रह्माजी से मनुष्यों के मोक्ष के बारे में चर्चा करने लगे !
तभी वहां भगवान विष्णुजी हंस के रूप में वहा प्रकट हुए ! और उन्होंने ब्रह्माजी के मानस पुत्र सनकादि मुनियों के संदेह का निदान किया ! इसके बाद सभी देवताओ ने भगवान विष्णुजी के हंस अवतार की पूजा की ! देवताओ और सनकादि मुनियों की संतुष्टि के बाद हंसरूपधारी श्री भगवान विष्णुजी वहा से अदृश्य होकर अपने पवित्र धाम चले गए !
मर्यादा पुरुषोतम भगवान श्री राम के बारे में आज कौन नहीं जानता ! त्रेतायुग में जब राक्षस रावण ने चारों और बहुत आतंक मचा रखा था ! उससे देवता व दानव सभी डरते थे ! धरती पर राक्षसों ने ऋषि मुनियों के यज्ञ हवन में बाधा डालकर उनको सताते थे !
तब भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लिया ! पिता राजा दशरथ के कहने पर वनवास गए ! श्री राम के वनवास के समय में रावण ने सीता जी का अपहरण कर लंका में ले गया ! सीता माता की खोज खबर मिलने के बाद भगवान श्री राम लंका पहुंचे !
वहां भगवान श्री राम और रावण के बीच घोर युद्ध हुआ जिसमें रावण मारा गया ! रावण के साथ साथ भगवान श्री राम ने अनेको राक्षसों का वध किया ! और मर्यादा का पालन करते हुए अपने पिता के वचनों को पूर्ण किया !
मर्यादा पूर्वक जीवन यापन करने के कारण भगवान श्री राम का नाम मर्यादा पुरुषोतम पड़ा ! हमे मनुष्य जीवन में धर्म का पालन करते हुवे कैसे जीवन यापन करना है वो सिखाया ! भगवान विष्णु ने राम अवतार में देवताओं को राक्षसों से भय मुक्त किया !
भगवान श्री कृष्ण ने बाल्यवस्था में पूतना का संघार किया ! अपने मामा कंस का वध भी भगवान श्रीकृष्ण ने ही किया था ! महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथि बनकर दुनिया को गीता का उपदेस दिया ! गीता उपदेस में भगवान श्री कृष्ण ने केवल कर्म को प्रधान बताया !
अधर्मियों का नाश कर पांडुपुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को राजा बना कर धर्म की स्थापना की ! मोर के पंख का मुकुट केवल भगवान श्री कृष्ण को ही पहनाया जाता है ! भगवान विष्णु का ये श्री कृष्णअवतार सभी अवतारों में सबसे श्रेष्ठ माना गया है !
भगवान विष्णु ने बौद्धधर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध के रूप में इस धरती पर अवतार लिया था ! धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान बुद्धदेव का जन्म गया के पास कीकट में हुआ बताया जाता है ! और गौतम बुद्ध के पिता का नाम अजन बताया गया है !
यह प्रसंग पुराण वर्णित बुद्धावतार में मिलता है !
पुरातनकाल में जब दैत्यों की शक्ति बहुत बढ़ गई ! तो देवता भी उनकी शक्ति के भय से भागने लगे ! प्रकार से स्थिर रहे !
जब भगवान गौतम बुद्ध के इस कार्य को दैत्यों ने देखा तो उनसे पूछा ! आप यह क्या कर रहे हो ! तब गौतम बुद्ध ने उन्हें उपदेश दिया कि पावों के नीचे व यज्ञ करने से जीव हिंसा होती है ! यज्ञ की अग्नि से कितने ही प्राणी जलकर भस्म हो जाते हैं !
प्राणी को यज्ञ में जलाकर मरने से शक्ति नस्ट हो जाती है ! भगवान बुद्ध द्वारा दिये गये उपदेश से दैत्य प्रभावित हुए ! और उन्होंने यज्ञ व वैदिक आचरण करना बंद कर दिया ! यही तो भगवान विष्णु चाहते थे ! इसके कारण दैत्यों की शक्ति कमजोर हो गई ! और देवताओं ने उन पर हमला कर पुन: अपना स्वामित्व प्राप्त कर लिया !
कलयुग में भगवान विष्णु का कल्कि अवतार कलियुग और सतयुग के संधिकाल में होगा, ऐसा बताया जाता है ! शास्त्रों के अनुसार श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठमी तिथि को यह अवतार होना तय बताया जाता है ! भगवान विष्णु का यह अवतार निष्कलंक भगवान के नाम से भी विख्यात होगा !
यह अवतार 64 कलाओं से परिपूर्ण होगा ! हमारे सबसे प्राचीन ग्रंथ श्रीमद्भागवत महापुराण में विष्णु के अवतारों की कथाएं विस्तार से बताई गई है ! श्रीमद्भागवत महापुराण के बारवें स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की कथा विस्तार बताई गई है !
जिसमें यह बताया गया है कि सम्भल ग्राम में विष्णुयश नामक के ब्राह्मण के घर पुत्र के रूप में कल्कि अवतार लेंगे ! और वे अल्पायु में ही वेदा शास्त्रों का पाठन करके महापण्डित बन जाएँगे, और उनका विवाह बृहद्रथ की पुत्री पद्मादेवी के साथ होगा !
उसके बाद वे जीवों के दुःखो को देखकर महादेव की उपासना करके अस्त्रविद्या प्राप्त करेंगे ! भगवान कल्कि देवदत्त नाम के घोड़े पर सवार होकर अपनी तलवार से दुष्टों का संहार करेंगे ! और उसके बाद सतयुग प्रारम्भ होगा !
आपको भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 2 जानकारी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताना ! सनातन धर्म की जानकारी अधिक से अधिक अपने रिश्तेदारों, मित्रों व सगे संबंधियों तक पहुंचाने के लिए इसको अधिक से अधिक शेयर जरूर करें !
यह सारी जानकारी मैंने अपने निजी स्तर पर खोजबीन करके इकट्ठी की है ! इसमें त्रुटि हो सकती है ! उसके लिए मैं आपसे अग्रिम क्षमा याचना करता हूं !
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