भगवान विष्णु के 24 अवतारो में से 23 अवतार हो चुके हैं, 24 वा (कल्कि अवतार) अवतार लेना है बाकी हैं ! पृथ्वी पर जब भी कोई घोर संकट आता है तो भगवान किसी न किसी रूप में अवतार अवश्य लेते हैं ! (Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara-1) भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 1 में बात करेगें !
अब तक भगवान विष्णु ने 23 अवतार लेकर इस पृथ्वी पर से संकट दूर करते आ रहे है ! पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु का 24 वा (कल्कि अवतार) अवतार कलयुग में होगा !
शिव और विष्णु अनेको बार इस पृथ्वी पर अवतरित हो चुके है ! इन 23 अवतारो में से विष्णु जी के 10 अवतार मुख्य अवतार माने जाते है !
हम भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 1 में भगवान शिव और भगवान विष्णु के 12 अवतारो के बारे में जानेगें !
और अगले 12 अवतारो के बारे में हम भाग 2 में जानेगें ! क्योकि हमें सनातन के बारे जानना और समझना है, न की केवल पढ़ना !
इसलिए हमने इन अवतारों को 2 भागो में बांटा हैं ! तो इस भाग के 12 अवतारो के नाम जानते हैं ! फिर उन के बारे में विस्तार से जानेगें !
Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 1 के 12 अवतारों के नाम
1. सनकादि मुनि अवतार
2. वराह अवतार
3. नारद अवतार
4. नर-नारायण अवतार
5. कपिल मुनि अवतार
6. दत्तात्रेय अवतार
7. यज्ञ: अवतार
8. भगवान ऋषभदेव अवतार
9. आदिराज पृथु अवतार
10. मत्स्य अवतार
11. कूर्म (कछुए) अवतार
12. भगवान धन्वन्तरि अवतार
भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 1 (Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 1) में हम सनकादि मुनि के अवतार से शुरू करते है ! सृष्टि का आरंभ करने से पहले पितामह ब्रह्मा जी ने घोर तपस्या की ! उनकी तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने चार मुनियों के रूप में अवतार लिया !
जिनके नाम सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार थे ! ये अवतार भगवान विष्णु के सर्वप्रथम अवतार माने जाते हैं ! ये चारों अवतार प्रारंभ काल से ही मोक्ष मार्ग में धर्मपरायण, नीतिपरायण, ध्यान में लीन रहने वाले, नित्यसिद्ध एवं नित्य वैरागी थे !
ब्रह्मा जी के प्रथम चारों मानस पुत्र को सनकादि कुमार, सनकादि मुनि या सनकादि ऋषि के नाम से भी जाना जाता हैं ! श्री हरी विष्णु ने सर्वप्रथम इन्ही चार ऋषियों के रूप में अवतार धारण किया था !
चारों अवतारों ने बहुत कठिन अखंड ब्रह्मचर्य का पालन किया ! इन चारों दिगम्बरी कुमारों ने भगवान हरी के हंस अवतार से प्रलय-काल में लुप्त हुए वेद-शास्त्रों को वापस प्राप्त करके उनका उपदेश दिया था ! यह Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 1 अवतार हैं !
Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 1 में भगवान विष्णु ने अपना दूसरा अवतार वराह के रूप में लिया ! एक समय जब दैत्य हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को ले जाकर समुद्र में छिपा दिया ! तब तीनो लोको में हाहाकार मच गया !
तब भगवान विष्णु जी ने ब्रह्मा की नाक से वराह के रूप में प्रकट हुए ! सभी देवताओं व ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु के इस रूप को देखकर उनकी स्तुति की ! और पृथ्वी पर आये इस संकट को दूर करने की प्रार्थना की !
सब देवताओं व ऋषि-मुनियों के आग्रह करने पर भगवान वराह ने पृथ्वी को खोजना प्रारंभ किया ! भगवान वराह ने अपनी थूथनी की शक्ति से जान लिया की दैत्य हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को समुद्र के अंदर छुपा दिया हैं ! Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 1 में फिर भगवान वराह ने समुद्र के अंदर जाकर अपने दांतों के उपर पृथ्वी को उठाकर बाहर ले आए !
पृथ्वी को बाहर लाने के बाद भगवान वराह ने पृथ्वी को ब्रहमांड में फिर से स्थापित कर दिया ! जब इस बात का पता दैत्य हिरण्याक्ष को चला की पृथ्वी को वापस ब्रहमांड में फिर से स्थापित कर दिया ! तो दैत्य हिरण्याक्ष ने भगवान विष्णु के वराह रूप को युद्ध के लिए ललकारा ! दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ ! और भगवान वराह ने दैत्य हिरण्याक्ष का युद्ध में वध कर घोर संकट से पृथ्वी बचाया !
सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार देवर्षि नारदजी भी Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 1 में विष्णु भगवान के तीसरे अवतार माने जाते हैं ! भगवान श्रीकृष्ण ने मद्भभागवत गीता के दसवे अध्याय के 26 वें श्लोक में इसका वर्णन करते हुये कहा ! की देवर्षीणाम्चनारद:- समस्त देव्तावो के देवर्षि नारद में मैं स्वयं ही हूं !
विष्णु भगवान ने स्वयं इस बात को स्वीकार करते हुए इस श्लोक कहा है ! देवर्षि नारद मुनि ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक हैं ! उन्होंने कठिन युगों तक कठोर तपस्या करके देवर्षि का पद प्राप्त किया था ! विष्णु भगवान के अनन्य भक्तों में से एक भक्त देवर्षि नारद माने जाते हैं !
देवर्षि नारद देवताओ के सन्देश वाहक भी मने जाते हैं ! लोक-कल्याण और धर्म प्रचार के लिए नारद जी हमेशा प्रयत्नशील रहते हैं ! देवर्षि नारद जी को मद्भभागवत गीता में भगवान विष्णु जी का अनंत:करण भी कहा गया है !
सृष्टि के आरंभ में भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए दो रूपों में अवतार लिया ! इस अवतार में वे अपने मस्तक पर जटा धारण किए हुए थे ! उनके हाथों में हंस, चरणों में चक्र एवं वक्ष:स्थल में श्रीवत्स के चिन्ह थे !
उनका संपूर्ण वेष तपस्वियों के समान था ! धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने नर-नारायण के रूप में यह अवतार लिया था !
Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 1 में भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार कपिल मुनि के रूप में लिया ! इनके पिता का नाम महर्षि कर्दम व माता का नाम देवहूति था ! शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म पितामह के शरीर त्याग के समय वेदज्ञ व्यास आदि ऋषियों के साथ भगवा कपिल भी वहां उपस्थित थे !
भगवान कपिल के क्रोध से ही राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए थे ! भगवान कपिल सांख्य दर्शन के प्रवर्तक हैं ! कपिल मुनि भागवत धर्म के प्रमुख बारह आचार्यों में से एक हैं !
हमारे सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार दत्तात्रेयजी भी भगवान श्री विष्णु जी के ही अवतार हैं ! इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है-
एक बार माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती को अपने पातिव्रत्य पर अत्यंत गर्व हो गया ! भगवान भगवान श्री विष्णु जी ने इन देवियों के अंहकार नष्ट करने के लिए अपनी लीला रची !
उसके अनुसार एक दिन नारदजी घूमते-घूमते देवलोक पहुंचे ! नारदजी ने इन तीनों देवियों को के पास बारी-बारी जाकर कहा कि ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया के सामने आप तीनों का सतीत्व कुछ भी नहीं ! नारदजी के यह बात उन तीनों देवियों ने जाकर अपने स्वामियों को बताई !
और उनसे कहा कि आप स्वयं जाकर ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूइया के पातिव्रत्य की परीक्षा लें !तब भगवान शंकर, विष्णु व ब्रह्मा साधु वेश भेष धरकर अत्रि मुनि के आश्रम गए ! उस समय महर्षि अत्रि अपने आश्रम में नहीं थे ! तीनों ने देवी अनुसूइया से भिक्षा मांगी मगर यह भी कहा कि आपको निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी !
अनुसूइया तीनों साधुओ से इस प्रकार से भिक्षा मांगने पर चौंक गई ! लेकिन घर आए साधुओं का अपमान न हो इस डर से उन्होंने अपने पति का मन ही मन स्मरण किया ! और बोला कि यदि मेरा पातिव्रत्य धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु छ: छ: मास के शिशु हो जाएं ! ऐसा बोलते ही त्रिदेव शिशु होकर रोने लगे !
जब भगवान शंकर, विष्णु व ब्रह्मा छ: छ: मास के शिशु हो गए ! तो अनुसूइया ने माता बनकर उन्हें अपनी गोद में सुलाकर स्तनपान कराया और प्यार से तीनों को पालने में झूलाने लगीं ! जब तीनों देव वापस नहीं लौटे तो माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती देवियां व्याकुल हो गईं !
तब नारद ने वहां आकर सारी बात बताई ! नारदजी की बात सुनकर तीनों देवियां माता अनुसूइया के पास आईं और क्षमा मांगने लगी ! तब देवी अनुसूइया ने तीनों देवो को उनके पूर्व रूप में कर दिया !
प्रसन्न होकर त्रिदेव ने उन्हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्र रूप में जन्म लेंगे ! तब ब्रह्माजी के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा व भगवान विष्णु के अंश से दत्तात्रेयजी का जन्म हुआ !
भगवान विष्णुजी ने अपना सातवा अवतार यज्ञ नाम के अवतार से लिया ! पोरणीक सनातन धर्म ग्रंथों की माने तो भगवान यज्ञ का जन्म स्वायम्भुव मन्वन्तर में हुआ था ! स्वायम्भुव मनु की पत्नी शतरूपा के गर्भ से आकूति का जन्म हुआ ! वे रूचि प्रजापति की पत्नी हुई !
इन्हीं आकूति के यहां भगवान विष्णु यज्ञ नाम से अवतरित हुए ! भगवान यज्ञ के उनकी धर्मपत्नी दक्षिणा से अत्यंत तेजस्वी बारह पुत्र उत्पन्न हुए ! वे ही स्वायम्भुव मन्वन्तर में याम नामक बारह देवता कहलाए !
भगवान विष्णु ने ऋषभदेव के रूप में आठवा अवतार लिया ! शास्त्रों के अनुसार महाराज नाभि को कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई ! इस दु:ख के कारण महाराज नाभि ने अपनी धर्मपत्नी मेरुदेवी के साथ पुत्र की कामना के लीये एक यज्ञ का आयोजन किया !
यज्ञ से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने महाराज नाभि को वरदान दिया कि मैं ही तुम्हारे यहां पुत्र रूप में जन्म लूंगा !
वरदान स्वरूप कुछ समय बाद भगवान विष्णु महाराज नाभि के यहां पुत्र रूप में जन्मे !
पुत्र के अत्यंत सुंदर सुगठित शरीर, कीर्ति, तेल, बल, ऐश्वर्य, यश, पराक्रम और शूरवीरता आदि गुणों को देखकर महाराज नाभि ने उसका नाम ऋषभ (श्रेष्ठ) रखा !
Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 1 में भगवान विष्णु के एक अवतार का नाम आदिराज पृथु है ! धर्म ग्रंथों के अनुसार स्वायम्भुव मनु के वंश में अंग नामक प्रजापति का विवाह मृत्यु की मानसिक पुत्री सुनीथा के साथ हुआ ! उनके यहां वेन नामक पुत्र हुआ !
वेन ने भगवान को मानने से मना कर दिया और भगवान की जगह सबको स्वयं का आदेश दे दिया ! तब महर्षियों ने मंत्र पूत कुशों से उसका वध कर दिया ! तब महर्षियों ने पुत्रहीन राजा वेन की भुजाओं का मंथन किया !
जिससे पृथु नाम पुत्र उत्पन्न हुआ ! आदिराज पृथु के दाहिने हाथ में चक्र और चरणों में कमल के चिह्न देखकर ऋषियों ने बताया कि पृथु के वेष में स्वयं श्रीहरि के अंश अवतार हुआ है !
Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 1 सनातन ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णुजी ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए एकबार मत्स्यावतार धारण किया था ! इसकी कथा इस प्रकार है- कृतयुग (सतयुग) के आदि में राजा सत्यव्रत हुए ! राजा सत्यव्रत एक दिन नदी में स्नान कर जलांजलि दे रहे थे !
अचानक उनकी अंजलि में एक छोटी सी मछली आई ! उन्होंने देखा तो सोचा वापस सागर में डाल दूं ! लेकिन उस मछली ने बोला- आप मुझे सागर में मत डालिए अन्यथा बड़ी मछलियां मुझे खा जाएंगी ! तब राजा सत्यव्रत ने मछली को अपने कमंडल में रख लिया !
मछली और बड़ी हो गई तो राजा ने उसे अपने सरोवर में रखा ! तब देखते ही देखते मछली और बड़ी हो गई ! राजा को समझ आ गया कि यह कोई साधारण जीव नहीं है ! तब राजा ने मछली से वास्तविक स्वरूप में आने की प्रार्थना की !
और राजा की प्रार्थना सुन साक्षात चारभुजाधारी भगवान विष्णु प्रकट हो गए और उन्होंने कहा कि ये मेरा मत्स्यावतार है ! भगवान विष्णुजी ने सत्यव्रत से कहा, मेरी बात ध्यान से सुनो राजा सत्यव्रत ! आज से सात दिन बाद प्रलय होगी ! तब मेरी प्रेरणा से एक विशाल नाव तुम्हारे पास आएगी !
तुम सप्त ऋषियों, औषधियों, बीजों व प्राणियों के सूक्ष्म शरीर को लेकर उसमें बैठ जाना ! जब तुम्हारी नाव डगमगाने लगेगी, तब मैं मत्स्य के रूप में तुम्हारे पास आऊंगा ! उस समय तुम वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सींग से बांध देना !
उस समय प्रश्न पूछने पर मैं तुम्हें उत्तर दूंगा ! मेरी महिमा व शक्ति जो परब्रह्म नाम से विख्यात है ! तुम्हारे ह्रदय में प्रकट हो जाएगी ! समय आने पर मत्स्यरूपधारी भगवान विष्णुजी ने राजा सत्यव्रत को तत्वज्ञान का उपदेश दिया ! जो मत्स्यपुराण नाम से प्रसिद्ध है !
धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu ke 24 Avatara 1) ने कूर्म (कछुए) का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी ! भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं ! इसकी कथा इस प्रकार है- एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवताओं के राजा इंद्र को श्राप देकर श्रीहीन कर दिया !
इंद्र जब भगवान विष्णु के पास गए तो उन्होंने समुद्र मंथन करने के लिए कहा ! तब इंद्र भगवान विष्णु के कहे अनुसार दैत्यों व देवताओं के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने के लिए तैयार हो गए ! समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया !
देवताओं और दैत्यों ने अपना मतभेद भुलाकर मंदराचल को उखाड़ा और उसे समुद्र की ओर ले चले, लेकिन वे उसे अधिक दूर तक नहीं ले जा सके ! तब भगवान विष्णु ने मंदराचल को समुद्र तट पर रख दिया। देवता और दैत्यों ने मंदराचल को समुद्र में डालकर नागराज वासुकि को नेती बनाया !
किंतु मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा ! यह देखकर भगवान विष्णु विशाल कूर्म (कछुए) का रूप धारण कर समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए ! भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घुमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हुआ !
धर्म ग्रंथों के अनुसार जब देवताओं व दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया ! तो उसमें से सबसे पहले भयंकर विष निकला जिसे भगवान शिव ने पी लिया ! इसके बाद समुद्र मंथन से उच्चैश्रवा घोड़ा, देवी लक्ष्मी, ऐरावत हाथी, कल्प वृक्ष, अप्सराएं और भी बहुत से रत्न निकले !
सबसे अंत में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए ! यही धन्वन्तरि भगवान विष्णु के अवतार माने गए हैं ! इन्हें औषधियों का स्वामी भी माना गया है !
आपको भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 1 जानकारी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताना ! सनातन धर्म की जानकारी अधिक से अधिक अपने रिश्तेदारों, मित्रों व सगे संबंधियों तक पहुंचाने के लिए इसको अधिक से अधिक शेयर जरूर करें !
यह सारी जानकारी मैंने अपने निजी स्तर पर खोजबीन करके इकट्ठी की है इसमें त्रुटि हो सकती है उसके लिए मैं आपसे अग्रिम क्षमा याचना करता हूं !
सनातन धर्म की जय , विश्व का कल्याण हो
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