श्री अन्नपूर्णा चालीसा हिंदी में
Annapurna Chalisa In Hindi
माँ अन्नपूर्णा चालीसा, माता अन्नपूर्णा चालीसा, अन्नपूर्णा चालीसा
अन्नपूर्णा का शाब्दिक अर्थ होता हैं – अन्न को पूर्ण करने वाली अधिष्ठात्री देवी ! सभी जीवो को भोजन माँ अन्नपूर्णा की कृपा से ही मिता हैं ! नित्य माँ Annapurna Chalisa का पाठ करने से माँ अति प्रसन्न होती हैं !
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श्री माँ अन्नपूर्णा चालीसा
(Shri Ma Annapurna Chalisa)
II दोहा II
विश्वेश्वर पदपदम की,
रज निज शीश लगाय I
अन्नपूर्णे, तव सुयश,
बरनौं कवि मतिलाय II
II चौपाई II
नित्य आनंद करिणी माता I
वर अरु अभय भाव प्रख्याता II (१)
जय ! सौंदर्य सिंधु जग जननी I
अखिल पाप हर भव-भय-हरनी II (२)
श्वेत बदन पर श्वेत बसन पुनि I
संतन तुव पद सेवत ऋषिमुनि II (३)
काशी पुराधीश्वरी माता I
माहेश्वरी सकल जग त्राता II (४)
वृषभारुढ़ नाम रुद्राणी I
विश्व विहारिणि जय ! कल्याणी II (५)
पतिदेवता सुतीत शिरोमणि I
पदवी प्राप्त कीन्ह गिरी नंदिनि II (६)
पति विछोह दुःख सहि नहिं पावा I
योग अग्नि तब बदन जरावा II (७)
देह तजत शिव चरण सनेहू I
राखेहु जात हिमगिरि गेहू II (८)
प्रकटी गिरिजा नाम धरायो I
अति आनंद भवन मँह छायो II (९)
नारद ने तब तोहिं भरमायहु I
ब्याह करन हित पाठ पढ़ायहु II ( १०)
ब्रहमा वरुण कुबेर गनाये I
देवराज आदिक कहि गाये II (११)
सब देवन को सुजस बखानी I
मति पलटन की मन मँह ठानी II (१२)
अचल रहीं तुम प्रण पर धन्या I
कीहनी सिद्ध हिमाचल कन्या II (१३)
निज कौ तब नारद घबराये I
तब प्रण पूरण मंत्र पढ़ाये II (१४)
करन हेतु तप तोहिं उपदेशेउ I
संत बचन तुम सत्य परेखेहु II (१५)
गगनगिरा सुनि टरी न टारे I
ब्रहां तब तुव पास पधारे II (१६)
कहेउ पुत्रि वर माँगु अनूपा I
देहुँ आज तुव मति अनुरुपा II (१७)
तुम तप कीन्ह अलौकिक भारी I
कष्ट उठायहु अति सुकुमारी II (१८)
अब संदेह छाँड़ि कछु मोसों I
है सौगंध नहीं छल तोसों II (१९)
करत वेद विद ब्रहमा जानहु I
वचन मोर यह सांचा मानहु II (२०)
तजि संकोच कहहु निज इच्छा I
देहौं मैं मनमानी भिक्षा II (२१)
सुनि ब्रहमा की मधुरी बानी I
मुख सों कछु मुसुकाय भवानी II (२२)
बोली तुम का कहहु विधाता I
तुम तो जगके स्रष्टाधाता II (२३)
मम कामना गुप्त नहिं तोंसों I
कहवावा चाहहु का मोंसों II (२४)
दक्ष यज्ञ महँ मरती बारा I
शंभुनाथ पुनि होहिं हमारा II (२५)
सो अब मिलहिं मोहिं मनभाये I
कहि तथास्तु विधि धाम सिधाये II (२६)
तब गिरिजा शंकर तव भयऊ I
फल कामना संशयो गयऊ II (२७)
चन्द्रकोटि रवि कोटि प्रकाशा I
तब आनन महँ करत निवासा II (२८)
माला पुस्तक अंकुश सोहै I
कर मँह अपर पाश मन मोहै II (२९)
अन्न्पूर्णे ! सदापूर्णे, अज I
अनवघ अनंत पूर्णे II (३०)
कृपा सागरी क्षेमंकरि माँ
भव विभूति आनंद भरी माँ II (३१)
कमल विलोचन विलसित भाले I
देवि कालिके चण्डि कराले II (३२)
तुम कैलास मांहि है गिरिजा I
विलसी आनंद साथ सिंधुजा II (३३)
स्वर्ग महालक्ष्मी कहलायी I
मर्त्य लोक लक्ष्मी पदपायी II (३४)
विलसी सब मँह सर्व सरुपा I
सेवत तोहिं अमर पुर भूपा II (३५)
जो पढ़िहहिं यह तव चालीसा I
फल पाइंहहि शुभ साखी ईसा II (३६)
प्रात समय जो जन मन लायो I
पढ़िहहिं भक्ति सुरुचि अघिकायो II (३७)
स्त्री कलत्र पति मित्र पुत्र युत I
परमैश्रवर्य लाभ लहि अद्भुत II (३८)
राज विमुख को राज दिवावै I
जस तेरो जन सुजस बढ़ावै II (३९)
पाठ महा मुद मंगल दाता,
भक्त मनोवांछित निधि पाता II (४०)
II दोहा II
जो यह चालीसा सुभग,
पढ़ि नावैंगे माथ I
तिनके कारज सिद्ध सब,
साखी काशी नाथ II
।I इति माँ अन्नपूर्णा चालीसा सम्पूर्ण ।I
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