आज गौरी पुत्र श्री गणेश जी के प्रमुख 8 अवतारो (8 Avatars of Lord Ganesha) के बारे में जनेगें ! अन्य सभी देवताओं के समान भगवान गणेश ने भी आसुरी शक्तियों के विनाश के लिए विभिन्न अवतार लिए !
श्री गणेश के इन अवतारों का वर्णन गणेश पुराण, मुद्गल पुराण, गणेश अंक आदि ग्रंथो में मिलता हैं ! सभी देवी-देवताओं में प्रथम पूज्य गौरी पुत्र गणेश जी के आठ प्रमुख अवतार हैं ! वक्रतुण्ड, एकदंत, महोदर, गजानन, लम्बोदर, विकट, विघ्नराज और धूम्रवर्ण !
इन अवतारों के दौरान जिन-जिन राक्षसों के साथ गणेश जी का युद्ध हुआ ! गणेश जी के हाथों राक्षसों के वध की बजाय उन्हें अपनी शरण में लेने का प्रसंग पुराणों में मिलता हैं ! जो सब देवताओं के वरदान से ही पैदा हुए थे ! जानिए 8 Avatars of Lord Ganesha के बारे में -:
श्री गणेश जी के आठ प्रमुख अवतार में एक अवतार राक्षस मत्सरासुर का विनाश करने के लिए हुआ था ! राक्षस मत्सरासुर भगवान भोलेनाथ का परम भक्त था ! उसने भगवान भोलेनाथ की उपासना करके ऐसा वरदान पा लिया कि वह किसी भी योनि के प्राणी से डरेगा नहीं !
वरदान पाने के बाद राक्षस मत्सरासुर ने देवगुरु शुक्राचार्य की आज्ञा से देवताओं को प्रताडि़त व डराना करना शुरू कर दिया ! उस राक्षस मत्सरासुर के दो पुत्र भी थे ! जिनके नाम सुंदरप्रिय और विषयप्रिय थे ! ये दोनों भी बहुत अत्याचारी थे ! उनके अत्याचार से दु:खी होकर सारे देवता शिव की शरण में पहुंच गए !
शिव ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे गणेश का आह्वान करें ! और गणपति वक्रतुंड अवतार लेकर आएंगे ! देवताओं ने आराधना करने पर गणपति ने वक्रतुंड अवतार लिया ! वक्रतुंड भगवान ने मत्सरासुर के दोनों पुत्रों का संहार किया और मत्सरासुर को भी पराजित कर दिया ! वही मत्सरासुर कालांतर में गणपति का भक्त हो गया !
महर्षि च्यवन ने अपने तप के बल से मद की रचना की ! वह मद महर्षि च्यवन का पुत्र कहलाया ! मद ने अपने पिता महर्षि च्यवन की आज्ञा से दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य से शिक्षा-दीक्षा शुरू की ! शुक्राचार्य ने महर्षि च्यवन के पुत्र को हर तरह की विद्या में निपुण बनाया !
शिक्षा होने पर मद ने देवताओं का विरोध शुरू कर दिया ! सारे देवताओ को वह प्रताडि़त करने लगा ! च्यवन का पुत्र मद इतना शक्तिशाली हो चुका था कि उसने भगवान शंकर को भी पराजित कर दिया ! इस घोर संकट से परेशान होकर, सारे देवताओं ने मिलकर गौरीपुत्र श्री गणेशजी की आराधना शुरू की !
तब भगवान गणेश एकदंत अवतार में देवताओ के सामने प्रकट हुए ! एकदंत स्वरूप में उनकी चार भुजाएं , एकदंत , तथा बड़ा सा पेट और उनका सिर हाथी के स्वरूप में था ! गणेश के एकदंत स्वरूप में उनके हाथ में पाश, परशु और एक खिला हुआ कमल था !
एकदंत ने देवताओं को अभय वरदान दिया ! और मदासुर को युद्ध में पराजित किया !
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जब भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय ने दैत्य तारकासुर का वध कर दिया ! तो दैत्यो के गुरु शुक्राचार्य ने मोहासुर नाम के दैत्य को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा-दीक्षा देकर देवताओं के विरुद लड़ने के लिए तैयार किया ! मोहासुर राक्षस से मुक्ति पाने के लिए देवताओं ने भगवान गणेश की आराधना करनी सुरू की !
तब भगवान गणेश ने महोदर अवतार के रूप में अवतार धारण किया ! गणेश जी के इस रूप में “महोदर” अवतार का उदर यानी उनका पेट बहुत बड़ा था ! वे मूषक पर सवार होकर मोहासुर के नगर में युद्ध करने पहुँचे ! दैत्य मोहासुर ने बिना युद्ध किये ही गणपति को अपना आराध्यय स्वीकार कर गणेश जी की शरण मे आ गया !
एक समय जब कुबेर जी भगवान शिव पार्वती के दर्शनार्थ हेतु कैलाश पर्वत पर गए ! वहां पार्वती जी को देखकर कुबेर के मन में कामवासना कर लोभ उत्पन्न हुआ ! उसी लोभ से लोभासुर नामक दैत्य का जन्म हुआ ! वह देत्यों के गुरु शुक्राचार्य की शरण में गया !
उसने अपने गुरु शुक्राचार्य के आदेश पर भगवान शंकर की उपासना शुरू की ! भगवान शंकर लोभासुर की तपश्या से प्रशन्न हो गए ! और उन्होने लोभासुर को निर्भय होने का वरदान दिया ! वरदान पाने के बाद लोभासुर ने तीनो लोकों पर अपना अधिकार कर लिया ! लोभासुर के निर्भय वरदान से खुद शिव को भी अपना कैलाश त्यागना पड़ा !
देवताओं की उपासना से प्रसन्न होकर गणेश ने गजानन अवतार के रूप में दर्शन दिए ! और देवताओं को वरदान दिया कि मैं लोभसुर को पराजित करूंगा ! गणेश ने लोभसुर को युद्ध के लिए संदेश भेजा ! शुक्राचार्य की सलाह पर दैत्य लोभासुर ने बिना युद्ध किए ही अपनी पराजय स्वीकार कर ली !
जब समुद्रमंथन के समय भगवान विष्णु ने मोहिनी रूपधारण किया तो भगवान शंकर उन पर मोहित हो गए ! उसी समय भगवान शंकर का शुक्र स्खलित हुआ, उस शुक्र से एक काले रंग के दैत्य की उत्पत्ति हुई ! उस दैत्य का नाम था क्रोधासुर !
दैत्य क्रोधासुर ने सूर्य की तपश्या करके उनसे ब्रह्मांड पर विजय पाने का वरदान पा लिया ! क्रोधासुर के ब्रह्मांड पर विजय पाने के वरदान के कारण सारे देवता उससे भयभीत हो गए ! वो ब्रह्मांड की सारी शक्तीयो से युद्ध करने के लिए निकल पड़ा !
तब भगवान गणेश ने अपना विराट लंबोदर अवतार का रूप धारण कर क्रोधासुर को रोक लिया ! क्रोधासुर को समझाया और उसे ये आभास दिलाया कि वो संसार में कभी भी ब्रह्मांड पर विजय नहीं पा सकता ! क्रोधासुर ने अपना ब्रह्मांड पर विजयी अभियान रोककर हमेशा के लिए पाताल लोक में चला गया !
एक बार दानव जलंधर के विनाश के लिए भगवान विष्णु ने उसकी पत्नी वृंदा का सतीत्व भंग किया ! सतीत्व भंग होने के बाद उससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ ! वह दैत्य कामासुर के नाम से जाना जाने लगा ! कामासुर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गया !
दैत्य कामासुर की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने वरदान मांगने को कहा ! उसने भगवान शिव से त्रिलोक विजय का वरदान मांग लिया ! इसके बाद दैत्य कामासुर अन्य दैत्यों की तरह ही देवताओं पर अत्याचार करने शुरू कर दिए !
तब सारे देवताओं ने मिलकर भगवान गणेश का ध्यान किया ! तब भगवान गणेश ने 8 Avatars of Lord Ganesha विकट अवतार रूप का लिया ! विकट रूप में भगवान गणेश जी मोर पर विराजित होकर देवताओं के सामने प्रगट हुए ! उन्होंने देवताओं को अभय वरदान देकर कामासुर को पराजित किया !
एक बार पार्वती जी अपनी सखियों के साथ ब्रहमण कर रही थी ! अपनी सखियों से बातचीत के दौरान एकाएक वो जोर से हंस पड़ीं ! पार्वती जी की हंसी से एक विशाल पुरुष की उत्पत्ति हुई। माता पार्वती ने उसका नाम “मम” रख दिया !
उत्पत्त पुरुष माता पार्वती की आज्ञा से वन में तप के लिए चला गया ! वहीं उस उत्पत्त पुरुष “मम” की मुलाकात शम्बरासुर नाम के दैत्य से हुई ! दैत्य शम्बरासुर ने उसे कई आसुरी विद्धयाये सीखाई !
शम्बरासुर ने “मम” को भगवान गणेश की तपस्या करने को कहा ! मम ने भगवान गणेश को अपनी तपस्या से प्रसन्न कर ब्रह्मांड का राज करने का वरदान मांग लिया ! भगवान गणेश ने मम को मांगा हुवा वरदान दे दिया !
आगे चल कर मम ममासुर के नाम से विख्यात हुवा ! दैत्यो के गुरु शुक्राचार्य ने मम के तप के बारे में जानकारी मिली ! तो मम को दैत्यराज के पद पर विभूषित कर दिया ! वरदान मिलने के कारण ममासुर ने भी दैत्यो की तरह अत्याचार करने शुरू कर दिए !
और उसने सारे देवताओं को बंदी बनाकर अपने कारागार में डाल दिया ! तब देवताओं ने गणेश की उपासना की ! भगवान गणेश ने लिया ! और उन्होंने विघ्नराज अवतार के रूप में ममासुर का मान मर्दन करके देवताओं को ममासुर के बंदी गृह से छुड़वाया।
एक समय भगवान ब्रह्माजी ने सूर्य भगवान को कर्म राज्य का स्वामी बना दिया ! राजा बनते ही सूर्य भगवान को घमंड हो गया ! सूर्य भगवान को एक बार अचानक छींक आ गई और उस छींक से एक दैत्य की उत्पत्ति हुई ! उस छींक से उत्पन्न उस दैत्य उसका नाम अहम पड़ा !
वो दैत्यो के गुरु शुक्राचार्य के पास गया और उन्हें अपना गुरु बना लिया ! अब उस अहम नाम के दैत्य का नाम गुरु शुक्राचार्य ने अहंतासुर में बदल दिया ! कालांतर में अहंतासुर ने खुद का अपना एक निजी राज्य बसा लिया !
और भगवान गणेश की तपस्या करने लगा ! तपस्या से प्रसन्न करके भगवान गणेश से वरदान प्राप्त कर लिए ! उसने भी वरदान पाने के बाद देवताओ पर बहुत अत्याचार और अनाचार किया !
देवताओ की आराधना सुनकर गणेशजी ने धूम्रवर्ण अवतार के रूप लिया ! इस अवतार मे उनका वर्ण धुंए जैसा था ! वे बहुत ही विकराल स्वरूप में थे ! उनके एक हाथ में भीषण पाश था ! जिसमें से बहुत ही भयंकर ज्वालाएं निकल रही थीं ! गणेशजी के इस धूम्रवर्ण अवतार ने अहंतासुर का पराभाव किया ! गौरी पुत्र श्री गणेश जी ने उसे युद्ध में हराकर उसे अपनी भक्ति प्रदान की !
आप सभी को गणेश चतुर्थी की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं ! भगवान गणेशजी आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण करें ! एवं आपके एवं आपके परिवार वालों को दीर्घायु प्रदान करें ! और अन धन का भंडार हमेशा आपके यहां भरे रहे !
गौरी पुत्र श्री गणेश जी के आठ प्रमुख अवतार की जानकारी आपको कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताना ! सनातन धर्म की जानकारी अधिक से अधिक अपने रिश्तेदारों, मित्रों व सगे संबंधियों तक पहुंचाने के लिए इसको अधिक से अधिक शेयर जरूर करें ! यह सारी जानकारी मैंने अपने निजी स्तर पर खोजबीन करके इकट्ठी की है ! इसमें त्रुटि हो सकती है ! उसके लिए मैं आपसे अग्रिम क्षमा याचना करता हूं !
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