कोन हैं दस महाविधा : क्यों की जाती हैं इनकी साधना ? जाने इन के बारे में ! दस महाविद्याओं के बारे में जानने से पहले हम एक बार यह भी जान लेते हैं, कि हैं कि इन दस महाविद्याओं की उत्पत्ति कैसे हुई ! क्या कारण था कि माता को दस महाविद्या के रूप में अवतरित होना पड़ा ! हम यहाँ जानगे की दस महाविद्याओं का क्या क्या नाम है ! और ये दस महाविद्या कौन कौनसी दिशा की रक्षा करती है ! इन 10 mahavidhya की उत्पत्ति से पहले एक घटना हुई थी ! क्या घटना हुई थी, ब्रहमांड में कोन हैं दस महाविधा ! चलो पहले उसी के बारे में हम जानते हैं !
माता सती भगवान शिव की पत्नी और राजा दक्ष प्रजापति की पुत्री थी ! सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध घोर तपस्या करके भगवान शिव को अपने पति के रूप में स्वीकार करके उनसे विवाह किया था ! एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया ! जिस में भगवन शिव को छोड़कर सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया ! देवी माता ने ऋषि नारद मुनि से अपने पिता के यज्ञ के बारे में सुना ! अपने पिता की तरफ से भगवान शिव को आमंत्रण नहीं करने के अपमान से सती क्रोधित हो गई ! उन्होंने भगवान शिव जी से यज्ञ में भाग लेने की अनुमति मांगी ! भगवन शिव ने कहा कि एक बेटी को अपने पिता के निमंत्रण की आवश्यकता नहीं है ! मगर बिना निमंत्रण जाने पर आदर भी नहीं होता, इसलिए भगवान शिव ने उन्हें यज्ञ में ना जाने की सलाह दी ! अब हम जानते है कोन हैं 10 mahavidhya :
यह सुनते ही माता सती और उग्र हो गई ! उन्हें लगा कि शिवजी उनके साथ एक अज्ञानी महिला की तरह व्यवहार कर रहे हैं, ना कि ब्रह्मांड की शक्ति के रूप में ! भगवान शिव को दिखाने के लिए उन्होंने एक दिव्य रूप धारण किया ! एक ऐसा दिव्य रूप, जिसे धारण करते ही समुद्रों में विशालकाय तूफान उठने लगे, पहाड़ हिल गए, और उनके रूप से संपूर्ण वातावरण को हिलाकर रख दिया ! यह रूप देखकर भगवान शिव सन्न रह गए ! और स्थिति को देखकर वहां से जाने लगे !
पर वो जिस भी दिशा में जाते, माता का दिव्य रूप उनका रास्ता रोक लेती ! माता ने दस रूप धारण कर, अपने दसो रूपों को अलग-अलग दसों दिशाओं में स्थापित कर दिया ! असीमित शक्तियों के दाता भगवन शिव उन दसों दिशाओं को लांग ने में असमर्थ हो गए ! क्योंकि माता ने वो सभी दसो मार्ग अवरुद्ध कर दिये ! दिव्य मां के इन दसो रूपों को 10 mahavidhya के रूप में जाना जाता है !
10 mahavidhya : सबसे पहले माता सती ने मां काली का रूप धारण किया ! माँ कालिका की उत्पत्ति राक्षसों के संहार के लिये हुई थी ! माता काली शमसान में निवास करती है ! काली माता यह रूप दृष्ठो को भयभीत करने वाला हैं ! उनका रंग काला, केस खुले और उलझे हुए हैं ! उनकी आंखों में सागर से भी ज्यादा गहराई हैं ! और उनकी भौंहे तलवार की तरह प्रतीत होती हैं ! कपालो की माला धारण किए हुए जब माँ काली का रूप धारण किया तो उनकी गर्जना से दसों दिशाएं भयंकर ध्वनि से भर गई !
मां काली का उल्लेख और उनके कार्यो की रूपरेखा चंडी पाठ में दी गई है ! इन्होंने ही चंड और मुंड का वध किया था ! और रक्त बीज का रक्त भी माँ काली ने ही पिया था ! देवी के इस स्वरुप को कौशिकी भी कहा जाता है ! शुंभ और निशुंभ का वध करने वाली मां काली दसो महाविद्याओं में पहले स्थान पर आती हैं ! वह समय से परे और अंधेरे को दूर कर हमारे अन्दर ज्ञान की रोशनी से भर देती !
तारा महाविद्या इस सृष्टि के केंद्रीय सर्वोच्च नियामक और क्रिया रूपी 10 mahavidhya मे से दुसरी महाविद्या के रूप में सुसज्जित है ! इनका रंग नीला है और इनकी जीभ बाहर को निकली हुई है ! जो दुश्मनो में भय उत्पन्न कर देती है ! माँ तारा एक बाघ की खाल पहने हुए हैं, इनकी तीन आंखे है ! शक्ति का यह स्वरूप सर्वदा मोक्ष प्राप्त करने वाला तथा अपने भक्तों को समस्त प्रकार के घोर संकटों से मुक्ति करने वाला है ! इस स्वरुप में देवी का घनिष्ठ संबंध मुक्ति से है ! चाहे वह जीवन-मरण रूपी चक्र हो, या अन्य किसी प्रकार के संकट से मुक्ति हेतु माँ की साधना की जाती है !
कोन हैं 10 mahavidhya में मां षोडशी भगवती का तीसरा स्वरूप है ! माता के इस स्वरुप को त्रिपुर सुंदरी के नाम से भी जना जता है ! भगवान सदाशिव के तरह मां त्रिपुर सुंदरी देवी चार दिशाओं में चार, और ऊपर की ओर एक मुख होने से इन्हें तंत्र शास्त्रों में पंचवक्त्र अर्थात पांच मुखो वाली कहा गया है ! मां षोडशी 16 कलाओं से परी पूर्ण है ! इसीलिए इनका नाम षोडशी भी है ! इन्हें तंत्र में श्री विद्या की अधिष्ठायक देवी और श्री यंत्र अर्थात श्री चक्र सामग्री के नाम से भी जाना जाता है ! षोडशी साधना सुख समृद्धि के साथ-साथ मुक्ति के लिए भी जाती है ! त्रिपुर सुंदरी साधना शरीर मन और भावनाओं को नियंत्रण करने की शक्ति को प्रदान करती हैं ! और अब आगे जानते हैं कोन हैं दस महाविधा :
मां भुवनेश्वरी चौथी महाविद्या का स्वरुप है ! भुवन का अर्थ है ब्रह्मांड और ईश्वरी का अर्थ शासक इसीलिए वह ब्रह्मांड की शासक है ! माता को राजराजेश्वरी के रूप में भी जाना जाता हैं ! देवी का इस स्वरूप में सम्पूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा करती हैं ! भुवनेश्वरी देवी माँ को आदि शक्ति के रूप में जाना जाता है ! यानी शक्ति के शुरुआती रूपों में एक रूप देवी भुवनेश्वरी को देवी पार्वती के रूप में जाना जाता है ! यह देवी तीन नेत्रों से युक्त त्रिनेत्र है !
उन्होंने अपने मस्तक पर अर्धचंद्रमा धारण किया हुआ है ! चार भुजाओं से युक्त देवी भुवनेश्वरी अपने दो भुजाओं में पाश तथा अंकुश व अन्य दो भुजाओं में वर तथा अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं ! इन्होंने ही दुर्गमाशूर नामक दैत्य का वध कर समस्त जगत को भय मुक्त किया था ! और इसी कारण वे देवी दुर्गा के नाम से प्रसिद्ध हुई ! जो दुर्गम संकटों से अपने भक्तों को मुक्त करती है ! यह माँ शाकंभरी के नाम से भी प्रसिद्ध है !
दस महाविद्याओं में मां भैरवी का पांचवा स्वरूप आता है ! माँ भैरवी देवी के क्रोध यह रूप राक्षसों के दिल को दहलाने वाला रूप है ! जो प्रवृति मां काली में है, वो ही प्रवृति माँ भैरवी में भैरव के समान है ! जो भगवान शिव का उग्र भैरव रूप है ! यह उग्र भैरव रूप दुश्मनो के लिए सर्वनाश कर देने वाल है ! देवी भैरवी को मुख्य रूप से दुर्गा सप्तशती में चंडी के रूप में देखा जाता है ! जो चंड और मुंड नाम के राक्षसों का संघार करती है ! वह सभी भय से मुक्त है ! और हमें सभी भय से मुक्त कराती हैं ! माता भैरवी की साधना बुरी आत्माओं और शारीरिक कमजोरियों से छुटकारा पाने के लिए की जाती है !
दस महाविद्या देवी का यह छटा स्वरूप है ! उन्हें प्रचंडिका के नाम से भी जाना जाता है ! उनके स्वरूप को हम देखें तो छिन्नमस्तिका देवी अपना कटा हुआ सिर एक हाथ में पकड़े हुए है ! तथा दूसरे हाथ में कटार व निचे के एक हाथ में खड़क और दूसरे हाथ में मस्तक धारण किए हुए है ! देवी के कटे हुए सिर से जो रक्त की जो धाराएं निकलती हैं, उन धारावो में से एक को वो स्वयं पीती हैं ! और अन्य दो रक्त की धाराओ से वो अपनी वर्णननी और साक्रि नाम की दो गणो को तृप्त करती हैं !
छिन्नमस्तिका साधना अपने क्रूर स्वभाव के कारण तांत्रिकों योगियों और सब कुछ त्याग चुके साधको तक ही सीमित है ! आम लोगों के लिए इनकी उपासना खतरनाक मणि जाती है ! हालांकि शत्रु नाश करने के लिए छिन्नमस्ततिका साधना की जाती है ! माँ छिन्नमस्ता की उत्पत्ति का पुराणों में अलग-अलग उल्लेख मिलता है ! शिव शक्ति के विपरीत रति आलिंगन पर आप स्थित है !
मां धूमावती का दस महाविद्याओ में सातवा स्वरुप आता है ! गुण, विशेषताओं और प्रकृति में माँ की तुलना देवी अलक्ष्मी, अजेष्ठा और देवी निर्ती के साथ की जाती है ! यह तीनों देवियां नकारात्मक गुणों का अवतार है ! पुराणों के अनुसार एक बार मां आदिशक्ति पार्वती को भयंकर भूख लगी ! और वे भगवान शंकर के पास जाकर उनसे भोजन की मांग करती हैं ! उस समय भगवन शंकर अपनी समाधि में लीन रहते हैं ! माता पार्वती के बार-बार आग्रह करने के बाद भी भगवन शंकर समाधि से नहीं उठते ! मगर भोले नाथ अपनी ध्यान मुद्रा में लीन रहते हैं !
पार्वती की भूख और बढ़ जाती हैं ! खाने की कोई चीज नहीं मिलने पर वो भूख से व्याकुल हो जाती ! और अपना स्वास खींच कर शिवजी को निगल जाती हैं ! शिव के गले में विष होने के कारण मां के शरीर से धुआ निकलने लगता है ! माता का रूप, श्रंगार विकृत हो जाता है, और भूख भी शांत हो जाती है ! फिर भगवान शिव माया के द्वारा पार्वती के शरीर से बाहर निकल आते हैं ! देवी पार्वती के धूम स्वरूप को देखकर भगवन शिव कहते हैं कि देवी आप इस वेश में भी पूजी जाएंगी ! इस कारण मां पार्वती का नाम देवी धूमावती पड़ा देवी !
अत्यधिक गरीबी से छुटकारा पाने, शरीर को रोगों से मुक्त करने व मनवांछित फल पाने के लिए मां धूमावती की साधना की जाती है !
दस महाविद्याओं में आठवी महाविद्या बगलामुखी के नाम से जानी जाती है ! मां बगलामुखी को पितांबरा के नाम से भी जाना जाता है ! देवी का ऐसा स्वरूप जो पीले वस्त्रों, पीत स्वर्ण आभूषणों और पीत पुष्पों से सुसज्जित है ! माता के चेहरे पर पीत स्वर्ण के समान आभा शोभायमान है ! बगलामुखी माता को पीला रंग बहुत ही प्रिय है ! तंत्र विध्या से भी माता बगलामुखी की पूजा की जाती है ! अतः बिना किसी गुरु के निर्देशन के तंत्र पूजा नहीं करनी चाहिए ! अकाल भय को शांत करने के लिए बगलामुखी जन्मोत्सव पर इनकी पूजा की जाती है ! क्या आपको पता हा की देवी माँ बगलामुखी को स्तंभन शक्ति के रूप में भी माना जाता है !
महाविद्याओं में नौवीं देवी मातंगी, वैदिक सरस्वती का तांत्रिक स्वरूप है ! देवी मातंगी वाणी, संगीत, ज्ञान विज्ञान, सम्मोहन, वशीकरण की अधिष्ठात्री देवी हैं ! इंद्रजाल विद्या, जादुई शक्ति में देवी का यह रूप पारंगत है ! साथ ही वाक् सिद्धि, संगीत तथा अन्य ललित कलाओं में देवी निपुण है ! नाना प्रकार की सिद्ध विद्याओ के आलावा देवी तंत्र विद्या में भी पारंगत है !
सनातन ग्रंथों के अनुसार मातंग भगवान शिव का ही एक नाम है ! भगवन शिव की आदि शक्ति देवी मातंगी ही हैं ! शंकर भगवान की आदि शक्ति देवी मातंगी ही हैं ! और श्री कुल के अंतर्गत माँ मातंगी पूजी जाती है !
10 mahavidhya में दसवीं देवी कमला का सबसे सर्वोच्च रूप माना जाता है ! देवी का रूप माँ लक्ष्मी का ही एक स्वरूप हैं ! माँ कमला की माँ लक्ष्मी के साथ ना केवल तुलना की जाती है, बल्कि उन्हें माँ लक्ष्मी के रूप में भी माना जाता है ! तांत्रिक लक्ष्मी के नाम से भी माँ कमला को जाना जाता है ! माता कमला का संबंध सुख, समृद्धि, सौभाग्य, संपनता और वंश विस्तार से माना जाता है ! इन देवी माँ को स्वच्छता, पवित्रता निर्मलता अति प्रिय है ! और ऐसे स्थानों पर ही माँ वास करती हैं !
जहां स्वच्छ एवं पवित्रत हो वह देवी माँ अपना निवास बनाती हैं ! आप को बात दे की जहां दरिद्रता, गंदगी, व कलह होती हैं, वहा माँ नहीं जाती ! क्योकि माता कमला माँ लक्ष्मी का ही स्वरूप हैं ! और माँ लक्ष्मी को दरिद्रता, गंदगी, व कलह कतई पसंद नहीं हैं !
आप सब को हमारी शुभकामना नमस्कार
घर पर रहिये , सुरक्षित रहिये
आपको 10 महाविद्या जी जानकारी कैसे लगी कमेंट करके जरूर बताना ! और अपने सनातन धर्म प्रेमियों को ज्यादा से ज्यादा शेयर करना ! यह सारी जानकारी मैंने अपने स्तर पर शोध करके लिखी है ! कोई त्रुटी हो तो क्षमा ! सनातन धर्म के बारे जानकारी समय-समय पर इसी चैनल पर देते रहेंगे ! आप चैनल को सब्सक्राइब कर लीजिए ! जिससे आपको आने वाली नई जानकारी मिल सके !
जय दस्माहविध्य सब की रक्षा करना
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