शारदीय नवरात्र की पंचमी तिथि को आदिशक्ति माँ स्कंदमाता की आरती का आराधना का विधान है।
काशी में नौ देवियों के अलग अलग मंदिर स्थापित हैं। जहां पूरे नवरात्र भर आस्था का अनवरत क्रम चलता रहता है। देवी के स्वरूप की आराधना से जहां व्यक्ति की संपूर्ण कामनाएं पूर्ण होती है, वहीं उनके मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त हो जाता है।
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स्कंद यानि कार्तिकेय की माता होने के कारण ही देवी के इस स्वरूप को स्कंदमाता का नाम मिला है। काशी खंड और देवी पुराण के क्रम में स्कंद पुराण में देवी का भव्य रूप से वर्णन किया गया है !
सिंहासन गता नित्यं पद्यान्वित कर द्वया।
शुभ दास्तु महादेवी स्कंदमाता यशस्विनी।।
भगवती की शक्ति से उत्पन्न हुए सनत कुमार का नाम स्कंद है। स्कंद माता होने के कारण भगवती के इस रूप को स्कंदमाता कहा गया है। जो साधक भगवती स्कंद माता की साधना करता है ! उसे दैहिक, दैविक, भौतिक कष्ट नहीं होता।
स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं । उनकी दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा में भगवान स्कंद गोद में हैं । इनके दाहिने तरफ की नीचे वाली भुजा में जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है । बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वर मुद्रा में और नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी हुई है । उसमें भी कमल पुष्प है. इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है । मां कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं यही कारण है । इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है. इनका वाहन सिंह भी है !
मां की पूजा-आराधना से भक्तों के सारे पाप कट जाते हैं !