सनातन की जानकारी में आज हम जानते है की सात चिरंजीवी कौन कौन से हैं ? जिनको अमरता का वरदान प्राप्त हैं ! जिसके बारे में कहा जाता है की सतयुग, द्वापर युग और इस समय चल रहे कलियुग तक इन सातों महापुरुषों को अमरत्व यानी अमरता का वरदान प्राप्त है ! ये सातों चिरंजीवी पूरे ब्रह्मांड और साथ ही पृथ्वी पर सभी देवीय शक्तिओ से सम्प्पन आज भी विचरण कर रहे हैं ! पृथ्वी पर आज भी किसी ना किसी रूप में ये जीवित हैं ! हमारे शास्त्रों में जिन अष्ट सिद्धियों की बात बताई गई है ! वो अष्ट सिद्धियों इन प्रत्येक महापुरुषों में विध्यमान है ! सब चिरंजीवी किसी ना किसी ना किसी वचन, नियम या श्राप से बंधे हुवे है ! हर सनातन धर्म के मानने वालों को इन सातों अमर महान आत्माओं के बारे में जानना अति आवश्यक है ! इनके बारे में हम यहां थोड़ा संक्षेप में आपको बताएंगे !
सप्त चिरंजीवी श्लोक :-
इस श्लोक का अर्थ- अश्वथामा, राजा बलि, वेद व्यास जी , वीर हनुमान, विभीषण, गुरु कृपाचार्य एवं परशुराम जी , इन सप्त चिरंजीवीयो के नाम का सुबह उठते ही मनुष्य को स्मरण करना चाहिए। इनके नाम का स्मरण करने से मनुष्य सतआयु को प्राप्त करते हैं ! श्लोक की प्रथम दो पंक्तियों का अर्थ है कि अश्वत्थामा, राजा बलि, वेद व्यास जी , वीर हनुमान, राम के प्रिय विभीषण, कौरवों के गुरु कृपाचार्य और परशुराम जी, ये सात महापुरुष सदा के लिए चिरंजीवी है ! और श्लोक की अगली दो पंक्तियों का अर्थ है की यदि इन सात महापुरुषों और आठवै चिरंजीवी महर्षि मार्कंडेय का हर दिन स्मरण किया जाए तो शरीर के सारे रोग, बीमारियां, व्याधेया नष्ट हो जाते हैं ! मनुष्य 100 वर्ष की दीर्ध आयु प्राप्त करते हैं !
अश्वत्थामा गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र और कुरु वंश के राजगुरु कृपाचार्य के भानजे थे ! इन का जन्म द्वापर युग में हुवा था ! उस काल के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में अश्वत्थामा की गिनती की जाती थी ! अपने पिता की तरह अश्वत्थामा शास्त्र व शस्त्र विद्या में निपुण योद्धा थे ! पिता-पुत्र की जोड़ी ने मिलकर महाभारत के युद्ध में पांडवों की सेना को तहस नहस कर दिया था ! तब वासुदेव श्रीकृष्ण ने द्रोणाचार्य का वध करने के लिए युधिष्ठिर को कूटनीति का सहारा लेने को कहा ! इस कूटनीति के तहत युद्धभूमि में यह अफवा फैला दी गई कि अश्वत्थामा युध में मारा गया है !
यह सुन गुरु द्रोण पुत्र मोह में अपने शस्त्र त्याग कर युद्धभमि में बैठ गए ! इस अवसर का लाभ उठाकर पांचाल नरेश द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न ने गुरु द्रोण वध कर दिया ! पिता की मत्यु ने अश्वत्थामा को हिलाकर कर दिया ! युद्ध के बाद श्वत्थामा ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को मारने के लिए ब्रहास्त्र चलाया, भगवान वासुदेव ने अभिमन्यु पुत्र परीक्षित की रक्षा कर दंड स्वरुप अश्वत्थामा के माथे पर जो मणि थी वह निकालकर, अश्वत्थामा को तेजहीन कर दिया ! और गर्भ में पल रहे शिशु की हत्या करने पर अश्वत्थामा को युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप दिया था !
सनातन ग्रंथो के अनुसार राजा बलि भक्त प्रह्लाद के वंशज है ! राजा बलि के दान और वीरता के चर्चे तीनो लोक में थे ! देवताओं को युद्ध में जितने पर राजा बलि ने इंद्रलोक के सिहासन पर अपना अधिकार कायम कर लिया ! तो राजा के घमंड को चकनाचूर करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार में एक गरीब ब्राह्मण का वेश बनाकर बलि के पास पहुचे ! और कहा की मुझे तीन पैर जितानी धरती दान में चाहिए ! तब राजा बलि ने कहा की हे ब्राह्मण देव – तीन पग क्या आपको जीतनी भूमि चाहिए, वो मैं आपको दान कर सकता हू ! जहां आपकी इच्छा हो वही तीन पैर रख दो ! तब ब्राह्मण के वेश में भगवन ने अपनी बात दोहराई !
गरीब ब्राह्मण की राजाबलि ने बात स्वीकार की, तो भगवान विष्णु ने अपना विराट रूप धारणकर दो पगो में तीनो लोक नाप दिए ! फिर राजा बलि से पुछा की तीसरा पैर खा रखु ! तब राजाबलि ने अपना शीर आगे कर देया ! भगवान विष्णु ने अपना तीसरा पैर राजाबलि के शीर पैर रख उसे पाताल लोक भेज दिया ! भगवान विष्णु राजा बलि की दान वीरता से प्रशन्न होकर उसे अजर अमर होने का वरदान दिया ! उस वरदान के बाद राजा बलि का नाम चिरंजीवीयो की गिनती में आता हैं !
सात चिरंजीवी कौन कौन से हैं ? जिनको अमरता का वरदान प्राप्त हैं ! उन मे से एक महर्षि वेदव्यास का पूरा नाम कृष्ण द्वैपायन है ! इनके पिता का नाम महर्षि पराशर तथा माता का नाम सत्यवती था ! इनका जन्म यमुना नदी के पास हुआ था और इनका रंग सांवला था ! इस वजह से इन का नाम यह कृष्ण द्वैपायन पडा ! महर्षि वेदव्यास जी का जन्म तक़रीबन 3000 ई. पूर्व आषाढ़ की पूर्णिमा को हुआ था ! गुरुपूर्णिमा के दिन गुरुदेव की पूजा के साथ महर्षि वेदव्यास जी की पूजा भी की जाती है ! ये भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं ! चारों वेद, 18 पुराण, महाभारत और श्रीमद्भागवत गीता की रचना महर्षि वेदव्यास जी ने ही की थी ! सप्त चिरंजीवीओ में महर्षि वेदव्यास का नाम आता हैं ! महाभारत रचियता वेदव्यास जी भी अजर अमर हैं ! तीनो लोको में इन का विशिष्ट स्थान आता हैं !
अंजनी पुत्र हनुमान को भी अजर अमर का वरदान मिला हुआ है ! रुद्र अवतार हनुमान राम के परम भक्त हैं ! वीर हनुमान जी अष्ट सिद्धि नव निधियो के दाता हैं ! हनुमान जी का जन्म चैत्र माह की पूर्णिमा को हुआ था ! अंजनी पुत्र हनुमान जी कलयुग के सबसे प्रभावशाली देवता माने जाते हैं ! मान्यताओं के अनुसार भगवन सूर्य देव को हनुमान जी का गुरु बताया गया है, लेकिन कहा जाता है की ऋषि मनिन्दर जी उनके वास्तविक गुरु थे ! ऋषि मनिन्दर जी त्रेता युग में हनुमान जी को तब मिले, जब लंका से सीतामाता की खोज कर वापस लौट रहे थे !
सतयुग के बाद द्वापरयुग में भी हनुमान जी महाभारत काल में भी नजर आते हैं ! महाभारत के एक प्रसंग में भीम का घमंड तोड़ने के लिए हनुमान जी भीम को सबक सिखाया था ! हनुमान जी रास्तेमें अपनी पूछ बिछाकर लेट गये ! तब भीम हनुमान जी को कहते है, ऐ वानर मेरे रस्ते से अपनी पूछ हटावो, तो हनुमान जी कहते हैं तुम हटा दो मैं तो कमजोर वानर हू, भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूछ हटा नहीं पाते हैं ! हनुमान जी को लंका की अशोक वाटिका में राम का संदेश सुनने के बाद माता सीता ने आशीर्वाद दिया था कि तुम अजर-अमर रहेंगे ! कहा जाता है की जहा रामायण का अखंड पाठ होता है, वह हनुमान जी अवश्यआते हैं !
राक्षस रावण का छोटे भाई विभीषण भी चिरंजीवी महापुरुषो की गिनती में आते हैं ! विभीषण भगवन श्रीराम के परम भक्त हैं ! जब रावण ने माता सीता का हरण किया तो विभीषण ने रावण को बहुत समझा था ! श्रीराम कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं ! भगवन विष्णु के अवतार हैं ! उन से शत्रुता मोल मत लो ! इस बात पर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया ! और विभीषण भगवन श्रीराम की सेवा में चले गए ! और रावण के पापो को सर्वनास करने के लिए धर्म का साथ दिया !
भगवन श्रीराम ने शरण में आये विभीषण को लंका का राजा बना दिया ! और धर्म अधर्म की लड़ाई में धर्म का साथ देने पर भगवान श्री राम ने विभीषण को अमरता का वरदान दिया ! इसलिए विभीषण भी चिरंजीवी महापुरुषो की गिनती में आते !
कृपाचार्य के पिता का नाम शरद्वान और माता का नाम नामपदी था ! कृपाचार्य की माता एक नामपदी एक देवकन्या थी ! एक बार देवराज इंद्र ने शरद्वान की तपस्या भंग करने के लिए देवकन्या नामपदी को भेजा ! क्योंकि शरद्वान शक्तिशाली और धनुर्विद्या में पारंगत थे ! जिससे देवराज इंद्र को उनसे खतरा महसूस होने लगा ! देवकन्या नामपदी के मोहनी सौंदर्य को देखकर शरद्वान का वीर्य स्खलित होकर एक सरकंडे पर गिर पड़ा ! सरकंडा दो भागों में बंट गया ! जिसके एक भाग से कृप नामक बालक तथा दूसरे भाग से कृपी नामक बालिका उत्पन्न हुई ! शरद्वान और नामपदी ने दोनों नवजात शिशुवो को जंगल में ही छोड़ दिया ! महाराज शांतनु ने इन दोनों का लालन पालन किया ! जिससे बालक नाम कृप तथा कन्या का नाम कृपी पडा !
भगवान श्री परशुराम जी को विष्णु के छठे अवतार के रूप में जाना जाता है ! परशुराम के पिता का नाम ऋषि जमदग्नि एवं उनकी माता का नाम रेणुका ! उनकी माता रेणुका ने पांच पुत्रो को जन्म दिया था ! भगवान श्री परशुराम जिनके भाइयो के नाम :- वसुमान, वाशुशैन, वशु, विश्वशु तथा सब से छोटे राम ! माता रेणुका के सब से छोटे पुत्र राम ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था ! भगवन शिव राम की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अपना फर्षा वरदान स्वरुप दिया ! इसी करण से उनका नाम परशुराम पड़ा ! परशुराम जी जन्म सनातन पंचांग के अनुसार वैशाख माह की पवन महीने की तृतीया को हुआ ! वैशाख माह के पवन महीने की शुक्ल पक्ष में आने वाली तीज को अक्षयतीज भी कहा जाता है !
माना जाता है की भगवान परशुराम दशरथ पुत्र राम के पहले पैदा हुए थे ! भगवान श्री परशुराम जी चिरंजीवी होने के कारण राम के समय में भी थे ! हमारे पुराणों के अनुसार परशुराम जी ने 21 बार पृथ्वी से समस्त क्षत्रिय राजाओं और क्षत्रियो का अंत किया था ! परशुराम जी अपने पिता के आज्ञाकारी पुत्र थे ! अपने पिता की आज्ञा को मानते हुवे अपनी माता का वध भी किया था ! पिता को प्रशन्न कर माता को पुन्ह जीवित भी करवाया !
ऋषि मार्कंडेय के पिता का नाम मृकण्ड तथा माता का नाम मरूद्वती था ! मरूद्वती मृदगल मुनी की पुत्री थी ! भगवान भोलेनाथ के परम भक्त थे ! मार्कंडेय ने भगवन शिवजी प्रशन्न करके महामृत्युंजय मंत्र को सिद्ध किया ! महामृत्युंजय मंत्र का जाप मृत्यु को दूर करने के लिए किया जाता है ! विधाता ने उन्हें मात्र 16 साल की अल्पायु के लिए इस पृथ्वी पर भेजा था ! मगर ऋषि मार्कंडेय ने भोलेनाथ के महामृत्युंजय के जप करके मृत्यु पर विजय प्राप्त कर कुछ काल पर्यंत तक चिरंजीवी बन गए ! इन सप्त चिरंजीवीओ के साथ साथ ऋषि मार्कंडेय के नाम का नित्य स्मरण किया जाता है !
16 वर्ष की अल्प आयु के कारण महामृत्युंजय का जप करते हुए जब ऋषि मार्कंडेय को यमराज लेने आए ! तो भगवान शिव ने यमराज के साथ युद्ध करके उन्हें भगाया ! और ऋषि मार्कंडेय को कुछ काल पर्यंत तक चिरंजीव होने का वरदान दिया ! अगर कोई मनुष्य महामृत्युंजय का जब सिद्ध कर ले, तो वह मरे हुए व्यक्तियों को भी जीवन दान देने की अलौकिक शक्ति को प्राप्त कर सकता है !
अमरता का वरदान पाने वाले सात चिरंजीवी महान आत्माओं के बारे में हमने आपको यह जानकारी बताई ! आपको कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताना ! और अपने सनातन धर्म प्रेमियों को ज्यादा से ज्यादा शेयर करना ! यह सारी जानकारी मैंने अपने स्तर पर शोध करके लिखी है !
सनातन धर्म की जय हो
9 Comments
[…] हैं दस महाविधा : kon ha 10 mahavidhya – सात चिरंजीवी कौन कौन से हैं ? – माता का आठवां स्वरूप महागौरी – माता […]
[…] श्राप – कोन हैं दस महाविधा : kon ha 10 mahavidhya – सात चिरंजीवी कौन कौन से हैं ? – माता का आठवां स्वरूप महागौरी – माता […]
[…] श्राप – कोन हैं दस महाविधा : kon ha 10 mahavidhya – सात चिरंजीवी कौन कौन से हैं ? – भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 1 – माता का […]
[…] श्राप – कोन हैं दस महाविधा : kon ha 10 mahavidhya – सात चिरंजीवी कौन कौन से हैं ? – भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 1 – माता का […]
[…] Pitru Paksha 2021: आज से पितृ पक्ष शुरू – ganesh family : जानिए, गणेशजी के परिवार के बारे में – Nath Samprdaya : जाने, नाथ संप्रदाय में परम सिद्ध नवनाथ के बारे में – Sati Sulochana : सती सुलोचना कौन थी ?? – भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 2 – भगवान गणेश के स्त्री रूप का नाम विनायकी – 8 Avatars of Lord Ganesha : गणेश जी के प्रमुख आठ अवतार – सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप – कोन हैं दस महाविधा : kon ha 10 mahavidhya – सात चिरंजीवी कौन कौन से हैं ? […]
[…] सात चिरंजीवी कौन कौन से हैं ? […]
[…] सात चिरंजीवी कौन कौन से हैं ? […]
[…] और बुद्धिमान हनुमान जी माने जाते हैं ! सात चिरंजीवी महापुरुषों में हनुमान जी को भी अमरत्व का वरदान […]
[…] के छठे अवतार के रूप में जाना जाता है ! श्री परशुराम जी अमरता का वरदान प्राप्त हैं ! इसलिये […]