सनातन ग्रंथो में हमें अनेक तरह के श्रापों का वर्णन मिला है ! उन सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप के बारे में हम यहाँ जनेगे ! श्राप ऐसे ही किसी को नहीं देया जाता हैं ! सनातन काल के 17 ऐसे ही प्रसिद्ध श्राप है, जिनके पीछे कोई ना कोई घटना जरुर हुई हैं !
जिनको भी ये श्राप मिले है, उनको दंड भोगना पड़ा हैं ! श्राप से भगवान विष्णु, राजा दशरथ, ऋषि, ब्राह्मण कुल, चंद्रमा, रावण यहा तक की यमराज को भी श्राप का दंड भोगना पड़ा हैं ! आज हम आको सनातन धर्म ग्रंथो में उल्लेखित 17 ऐसे ही प्रसिद्ध श्रापो और उनके पीछे की घटनाओ के बारे में बताएँगे !
महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद जब माता कुंती ने युवराज युधिष्ठिर को बताया कि कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था ! एस बात को सुनकर पांडवों को बहुत दु:ख हुआ ! बड़ा भाई होने के नाते युधिष्ठिर ने पुरे विधि-विधान से कर्ण का भी अंतिम संस्कार किया !
कुंती ने जब पांडवों को अपने बड़े भाई कर्ण के जन्म का रहस्य बताया तो, क्रोध में आकर युधिष्ठिर ने माता कुंती श्राप दिया कि :- आज से संपूर्ण स्त्री जाति कोई भी गुप्त बात छिपा कर नहीं रख सकेगी ! आगे और जानते है हम इन सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप के बारे में
सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप में एक कथा यह भी मिलती है, की एक बार राजा पांडु शिकार खेलने की लिए जंगल में गए थे ! वन में एक हिरण-हिरणी का जोडा रतिक्रिया कर रहे थे ! उन को इस अवस्था में देखकर राजा पांडू ने उन पर बाण चला दिया !
रतिक्रिया करने वाले वो हिरण व हिरणी, ऋषि किंदम व उनकी पत्नी थी ! बाण लगने पर ऋषि किंदम ने राजा पांडु को श्राप दिया ! हे पापी ! जब भी तुम किसी स्त्री से मिलन करेंगे। उसी समय तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी !
जब राजा पांडु अपनी पत्नी माद्री के साथ मिलन रतिक्रिया कर रहे थे ! उसी समय उनकी मृत्यु ऋषि किंदम के दिए श्राप के चलते हो गई !
सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप से रावण भी नहीं बचा ! सनातन ग्रंथो के अनुसार माण्डव्य नाम के एक ऋषि हुवे थे ! उन के काल में राजा ने उन्हें चोरी करने का दोषी मानते हुवे सूली पर चढ़ाने की सजा दी !
कई दिनों तक सूली पर चढ़ने के बाद भी जब ऋषि के प्राण नहीं निकले, तो राजा को अपनी गलती का अहसास हुआ ! और रजा ने ऋषि माण्डव्य से क्षमा मांगकर उन्हें छोड़ दिया ! मरने के बाद जब ऋषि यमराज के पास पहुंचे !
और उन्होंने यमराज से पूछा कि मैंने अपने जीवन काल में ऐसा कौन सा अपराध किया था कि मुझे इस प्रकार झूठे आरोप की सजा मिली ! ऋषि माण्डव्य की बात सुनकर यमराज ने बताया , कि जब आपकी आयु 12 वर्ष की थी , तब आपने एक फतींगे की पूंछ में सींक चुभाई थी !उसी के फलस्वरूप आपको यह पीड़ा भोगनी पड़ी !
यमराज से ऋषि माण्डव्य कहा कि 12 वर्ष की अल्प आयु में किसी को भी धर्म-अधर्म का ज्ञान नहीं होता ! फिर तुमने मुझे उस छोटे से अपराध का इतना बड़ा दण्ड क्यों दिया !
इस बात से क्रोधित होकर ऋषि माण्डव्य ने यमराज से कहा कि मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम्हें शुद्र योनि में एक दासी पुत्र के रूप में जन्म लेना पड़ेगा ! तब यमराज को महाभारत काल में ऋषि माण्डव्य के इसी श्राप के कारण यमराज ने महात्मा विदुर के रूप में जन्म लेना पड़ा !
रावण भगवान शंकर का परम भक्त था ! भगवान शंकर से मिलने रावण कई बार एक बार कैलाश पर्वत पर जाता था ! एक बार जब रावण भगवान शंकर से मिलने कैलाश पर्वत पर गया ! तो वहां उसने नंदीजी को देखकर मजाक में उनके स्वरूप की हंसी उड़ाई !
और रावन ने नंदीजी को बंदर के समान मुख वाला कह कर भोलेनाथ से मिलने चले गये ! जब रावण मिलकर वापस जाने लगे तब नंदीजी ने रावण को श्राप दिया, कि तुम्हारा सर्वनाश बंदरों के कारण ही होगा ! और हुवा भी वही जो नंदीजी ने कहा ! और किंन किन को मिले ये सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप
पुराणों के अनुसार ऋषि कश्यप की दो पत्नियां थीं कद्रू व विनता नाम की ! उन की एक पत्नी कद्रू सर्पों की माता व पत्नि विनता गरुड़ की माता थी ! एक बार ऋषि कश्यप व् उनकी दोनों पत्निया कद्रू व विनता ने एक सफेद रंग का घोड़ा देखा और दोनों पत्नियों ने आपस में शर्त लगाई !
विनता ने कहा कि ये घोड़ा बिलकुल सफेद रंग का है ! और कद्रू ने कहा कि घोड़ा तो सफेद रंग का हैं, मगर इसकी पूंछ काले रंग की है ! अपनी बात को सही साबित करने के लिए कद्रू ने अपने सर्प पुत्रों को आज्ञा दी कि तुम सभी सूक्ष्म रूप में जाकर घोड़े की पूंछ पर लिपट जाओ !
जिससे घोड़े की पूंछ काली दिखाई दे ! और मैं यह शर्त जीत विनता से जीत जाऊं ! कद्रू के कुछ सर्प पुत्रो ने अपनी माता की बात नहीं मानी ! इस बात से क्रोधित होकर उनकी माता कद्रू ने कहा की मैं तुम्हे श्राप देती हु की तुम सभी जनमजेय के सर्प यज्ञ में भस्म हो जाओगे !
महाभारत के युद्ध से पहले जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने स्वर्ग गए, तो वहां उर्वशी नाम की अप्सरा उन पर मोहित हो गई। यह देख अर्जुन ने उन्हें अपनी माता के समान बताया। यह सुनकर क्रोधित उर्वशी ने अर्जुन को श्राप दिया कि तुम नपुंसक की भांति बात कर रहे हो।
इसलिए तुम नपुंसक हो जाओगे, तुम्हें स्त्रियों में नर्तक बनकर रहना पड़ेगा। यह बात जब अर्जुन ने देवराज इंद्र को बताई तो उन्होंने कहा कि अज्ञातवास के दौरान यह श्राप तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हें कोई पहचान नहीं पाएगा।
सनातन शिवपुराण के अनुसार तुलसी शंखचूड़ नाम के एक राक्षस की पत्नी थी ! तुलसी पति धर्म को मानने वाली पतिव्रता नारी थी ! तुलसी के सतीत्व के कारण देवता भी शंखचूड़ का वध करने में निर्बल थे ! भगवान विष्णु ने देवताओं के उद्धार के लिए एक बार शंखचूड़ का रूप धारण किया !
भगवान विष्णु ने तुलसी का शील भंग किया ! सतीत्व का बल कम हो जाने पर भगवान शंकर ने शंखचूड़ का वध कर दिया ! शील भंग हो जाने के बाद तुलसी ने भगवान विष्णु को पत्थर हो जाने का श्राप दिया ! तुलसी के इसी श्राप के कारण भगवान विष्णु की पूजा शालीग्राम के रूप में पत्थर से बनी शिला की जाती है !
एक बार अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित जंगल में शिकार खेलते-खेलते बहुत दूर चले गए ! उस घोर जंगल में उन्हें शमीक नाम के ऋषि दिखाई दिए ! ऋषि अपनी मौन तापस्था में लीन थे ! राजा परीक्षित उनके पास जाकर कुछ पुछा !
मगर तापस्था में लीन होने के कारण ऋषि ने राजा को कोई जबाव नहीं दिया ! ऋषि की और से कोई प्रतिक्रया न मिलने पर परीक्षित बहुत क्रोधित हुए ! और क्रोध में राजा परीक्षित ने एक मरा हुआ सांप उठाकर ऋषि के गले में डाल दिया !
इस बात का जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी को पता चला ! तो श्रृंगी ऋषि ने राजा परीक्षित को श्राप दिया कि आज से सात दिन बाद तुम्हे तक्षक नाग डंस लेगा, जिससे तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी ! और ऐसा ही हुआ !
सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप से रावण भी नहीं बचपाया है ! रघुकुल में एक परम प्रतापी राजा हुए, जिनका नाम राजा अनरण्य था ! वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब रावण का अत्याचार बढ़ने लगा ! तो रावण विश्वविजय के लिए युद्ध करने निकला !
तो राजा अनरण्य से भी उसका भयंकर युद्ध हुवा ! रावण के साथ उस युद्ध में राजा अनरण्य की मृत्यु हो गई ! राजा अनरण्य मरने से पहले रावण को श्राप दिया ! हे रावण ! मेरे ही वंश रघुकुल में उत्पन्न एक राजकुमार तेरी मृत्यु का कारण बनेगा !
राजा अनरण्य के श्राप से आगे जाकर भगवान श्रीराम ने जन्म लिया ! रघुकुल में उत्पन्न भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया !
परशुराम भगवान विष्णु का ही एक अवतार है ! कुंती व सूर्य से उत्पन कर्ण परशुराम का ही शिष्य था ! कुंती पुत्र कर्ण ने अपने गुरु परशुराम को अपना परिचय एक सूतपुत्र के रूप में बताया ! एक बार गुरुकुल में जब परशुराम कर्ण की गोद में सिर रखकर निंद्रा में थे !
परशुराम जी की उस निंद्रा की अवस्था में कर्ण को एक भयंकर कीड़े ने काट लिया ! अपने गुरु की नींद में कोई विघ्न ना आ जाये, कर्ण उस कीड़े के कटे भयंकर दर्द को सहते रहे ! लेकिन कर्णने अपाने गुरु परशुराम को नींद से नहीं जगाया !
जब परशुराम जी नींद से उठे तो उन्होंने कर्ण के शरीर से बहते रक्त को देखा तो वे समझ गए ! कि कर्ण सूतपुत्र नहीं बल्कि क्षत्रिय वंस का है ! क्योकि इतना भयंकर दर्द तो कोई क्षत्रिय वंस से उतप्न ही सहन कर सकता हैं !
इस बात से परशुराम जी को लगा की उनके साथ कर्ण ने धोखा किया हैं ! तो क्रोध में आकर परशुराम जी ने कर्ण को श्राप दिया ! हे कर्ण ! मेरे द्वारा सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें आवश्यकता होगी, उस समय तुम उस विद्या को भूल जाओगे !
भगवान श्रीकृष्ण गांधारी को सांत्वना देने जब उन के पास गये ! तो अपने पुत्रों के विनाश का कारण भगवान श्रीकृष्ण को मानते हुए गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया ! कि हे कृष्ण ! जिस प्रकार पांडव और कौरव की आपसी लड़ाई में तुमने मेरे कुल का विनाश करवाया !
उसी प्रकार तुम भी अपने कुल का वध करोगे ! और जेसे मेरे वीर पुत्र युद्ध भूमि में तीर लगने से वीरगती को प्राप्त हुवे ! उसी तरह तुमारा अन्त भी तीर लगने से होगी ! गांधारी के उसी श्राप के कारण भगवान श्रीकृष्ण और उनके परिवार का अंत हुआ !
शिवपुराण में बताया गया हैं की प्रजापति राजा दक्ष ने अपनी 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा के साथ किया था ! चंद्रमा को अपनी सभी पत्नियों में रोहिणी नाम की पत्नी सबसे अधिक प्रिय थी ! यह बात चंद्रमा की अन्य पत्नियों को जब अच्छी नहीं लगी !
तो उन्होंने यह बात अपने पिता दक्ष को जाकर बताई ! प्रजापति राजा दक्ष चंद्रमा द्वार अपनी अन्य पुत्रियों के साथ ऐसे व्यहार से बहुत क्रोधित हुवे ! राजा दक्ष ने चंद्रमा को सभी के साथ सम्मान व्यहार रखने को कहा !
मगर चंद्रमा ने राजा दक्ष की कोई बात नहीं माने ! तब क्रोध में आकार राजा दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग होने का श्राप दे दिया !
एक पुराणिक प्रसंग के अनुसार शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी का विवाह राजा ययाति के साथ हुआ था ! देवयानी की एक दासी थी जिसका नाम शर्मिष्ठा था ! एक बार राजा ययाति और रानी देवयानी के साथ बगीचे में घूम रहे थे !
तब देवयानी ने राजा ययाति को पूछा की क्या मेरी दासी शर्मिष्ठा के पुत्रों के पिता आप हो ! और राजा ययातिके हाँ कहने पर वह क्रोधित होकर अपने पिता शुक्राचार्य के पास चली गई !
और उन्हें अपने पिता को पूरी बात बताई ! अपनी पुत्री के साथ हुए इस धोखे से क्रोधित होकर दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने ययाति को बूढ़े होने का श्राप दे दिया !
एक बार राजा दशरथ शिकार करने वन में गए ! एक सरोवर पर अपने अंधे माता-पिता के लिए पानी लेने आये श्रवन कुमार का गलती से वध कर दिया ! ब्राह्मण श्रवन कुमार अपने अंधे माता-पिता का इकलोता पुत्र था !
जब अंधे माता-पिता ने अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार राजा दशरथ मिला ! तो उन ब्राह्मण दंपत्ति ने राजा दशरथ को श्राप दिया कि जिस प्रकार हम पुत्र वियोग में अपने प्राणों का त्याग कर रहे हैं ! उसी प्रकार तुम भी पुत्र वियोग में मृत्यु को प्राप्त होंगे !
जब रावण विश्व विजय करने के लिए स्वर्ग लोक पहुंचा ! तो रावण को स्वर्ग लोक में रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी ! रावण ने अपनी वासना पूरी करने के लिए अप्सरा रंभा को पकड़ लिया !
तब अप्सरा ने कहा मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए आरक्षित हूं, इसलिए आप मुझे इस तरह काम वासना से वसीभूत होकरे स्पर्श न करें ! क्योकि मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं !
लेकिन रावण ने अप्सरा रंभा की बात नहीं मानी ! और काम वासना में अँधा होकर रंभा से दुराचार किया ! इस बात जब पता नलकुबेर हुवा तो उसने रावण को श्राप दिया ! कि हे रावण ! आज के बाद अगर तुमने बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसको स्पर्श किया ! तो तुम्हारे मस्तक सौ टुकड़ों में बिखर जाएगा !
महाभारत युद्ध के अंत समय में जब अश्वत्थामा ने धोखे से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पल रहे बालक की हत्या कर दी ! इस तरह एक अबोध बालक की गर्भ में हत्या कर देने पर भगवान श्रीकृष्ण क्रोधित हो गये !
और भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया ! भगवान श्रीकृष्ण ने श्राप में कहा की हे अश्वत्थामा ! तुम तीन हजार वर्ष तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगे ! और इस ब्रहमांड में तम्हारी किसी भी जीव से बातचीत नहीं हो सकेगी !
तुम्हारे शरीर से रक्त और पीब की बदबू निकती रहेगी ! इसलिए तुम किसी भी जीव या प्राणी के बीच नहीं रह सकोगे ! तुम्हे दुर्गम वन में अकेले ही पड़े रहोगे !
एक बार देवऋषि नारद मुनि एक सुन्दर कन्या पर मोहित हो गए ! नारद मुनि उस कन्या के स्वयंवर में भगवान विष्णु का रूप बनाकर पंहुच गये, जब भगवान विष्णु को यह पता चला तो उन्होंने अपनी माया से नारद जी का मुंह वानर के समान कर दिया !
जब भगवान विष्णु भी स्वयंवर में पहुंचे ! तो उन्हें देखकर उस सुन्दर कन्या ने भगवान विष्णु को अपना पति स्वीकार कर लिया ! यह देखकर नारद मुनि भगवान विष्णु पर बहुत क्रोधित हुए !
और नारद मुनि ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस प्रकार तुमने मुझे स्त्री के लिए व्याकुल किया है ! उसी प्रकार तुम्हे भी स्त्री के वियोग का दु:ख भोगना पड़ेगा ! नारद मुनि के इस श्राप को भगवान विष्णु ने राम अवतार में पूरा किया !
आपको हमारी यह जानकारी कैसे लगी कमेंट करके जरूर बताना ! और अपने सनातन धर्म प्रेमियों को ज्यादा से ज्यादा शेयर करना ! यह सारी जानकारी मैंने अपने स्तर पर शोध करके लिखी है ! कोई त्रुटी हो तो क्षमा ! सनातन धर्म के बारे जानकारी समय-समय पर इसी चैनल पर देते रहेंगे ! आप चैनल को सब्सक्राइब कर लीजिए ! जिससे आपको आने वाली नई जानकारी मिल सके !
सनातन धर्म की जय हो
8 Comments
[…] सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप – कोन हैं दस महाविधा : kon ha 10 mahavidhya – सात चिरंजीवी कौन कौन से हैं ? – भगवान विष्णु के 24 अवतार : भाग 1 – माता का आठवां स्वरूप महागौरी – माता का सातवां स्वरूप कालरात्रि – देवी का छठा स्वरूप माँ कात्यायनी – पाँचवाँ नवरात्रों में पुजा मां स्कंदमाता की – क्या धार्मिक महत्व है स्वास्तिक का – नवरात्रा के चोथे दिन मां कूष्माण्डा की पुजा […]
[…] गणेश के स्त्री रूप का नाम विनायकी – सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप – कोन हैं दस महाविधा : kon ha 10 mahavidhya – सात […]
[…] गणेश के स्त्री रूप का नाम विनायकी – सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप – कोन हैं दस महाविधा : kon ha 10 mahavidhya – सात […]
[…] पुत्र श्री गणेश जी के आठ प्रमुख अवतार – सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप – कोन हैं दस महाविधा : kon ha 10 mahavidhya – सात […]
[…] पुत्र श्री गणेश जी के आठ प्रमुख अवतार – सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप – कोन हैं दस महाविधा : kon ha 10 mahavidhya – सात […]
[…] पुत्र श्री गणेश जी के आठ प्रमुख अवतार – सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप – कोन हैं दस महाविधा : kon ha 10 mahavidhya – सात […]
[…] 8 Avatars of Lord Ganesha : गणेश जी के प्रमुख आठ अवतार – सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप – कोन हैं दस महाविधा : kon ha 10 mahavidhya – सात […]
[…] 8 Avatars of Lord Ganesha : गणेश जी के प्रमुख आठ अवतार – सनातन काल के 17 खतरनाक श्राप – 10 mahavidhya : कोन हैं दस महाविधा […]