श्री ब्रह्मा चालीसा हिंदी में
Brahma Chalisa In Hindi
श्री ब्रह्मा चालीसा : ब्रह्मा जी को सनातन धर्म के अनुसार सृजन के देवता माना जाता हैं ! शाश्त्रो के अनुसार ब्रह्मा जी को स्वयंभू (स्वयं जन्म लेने वाला) और चार वेदों का निर्माता भी बताया गया है ! सनातन धर्म के अनुसार चारो वेद ब्रह्मा जी के मुँह से निकले थे !
-: अन्य चालीसा संग्रह :-
भगवान आदिनाथ चालीसा
श्री झुलेलाल चालीसा
खेतरपाल जी चालीसा
विश्वकर्मा जी चालीसा
श्री गोरक्ष नाथ चालीसा
***********************
श्री ब्रह्मा चालीसा
II दोहा II
जय ब्रह्मा जय स्वयम्भू,
चतुरानन सुखमूल I
करहु कृपा निज दास पे,
रहहु सदा अनुकूल II (१)
तुम सृजक ब्रह्माण्ड के,
अज विधि घाता नाम I
विश्वविधाता किजिये,
जन पे कृपा ललाम II (२)
II चौपाई II
जय जय कमला सान जगमूला I
रहहू सदा जन पे अनुकूला II (1)
रुप चतुर्भुज परम सुहावन I
तुम्हें अहैं चतुर्दिक आनन II (2)
रक्तवर्ण तव सुभग शरीरा I
मस्तक जटाजुट गंभीरा II (3)
ताके ऊपर मुकुट विराजै
दाढ़ी श्वेत महाछवि छाजै II (4)
श्वेतवस्त्र धारे तुम सुन्दर I
है यज्ञोपवीत अति मनहर II (5)
कानन कुण्डल सुभग विराजहिं I
गल मोतिन की माला राजहिं II (6)
चारिहु वेद तुम्हीं प्रगटाये I
दिव्य ज्ञान त्रिभुवनहिं सिखाये II (7)
ब्रह्मलोक शुभ धाम तुम्हारा I
अखिल भुवन महँ यश विस्तारा II (8)
अर्द्धागिनि तव है सावित्री I
अपर नाम हिये गायत्री II (9)
सरस्वती तब सुता मनोहर I
वीणा वादिनि सब विधि मुन्दर II (10)
कमलासन पर रहे विराजे I
तुम हरि भक्ति साज सब साजे II (11)
क्षीर सिन्धु सोवत सुर भूपा I
नाभि कमल भो प्रगट अनूपा II (12)
तेहि पर तुम आसीन कृपाला I
सदा करहु सन्तन प्रतिपाला II (13)
एक बार की कथा प्रचारी I
तुम कहँ मोह भयेउ मन भारी II (14)
कमलासन लखि कीन्ह बिचारा I
और न कोउ अहे संसारा II (15)
तब तुम कमल नाल गहि लीन्हा I
अन्त विलोकन कर प्रण कीन्हा II (16)
कोटिक वर्ष गये यहि भांती I
भ्रमत भ्रमत बीते दिन राती II (17)
पे तुम ताकर अन्त न पाये I
ह्वै निराश अतिशय दुःखियाये II (18)
पुनि बिचार मन महँ यह कीन्हा I
महापघ यह अति प्राचीन II (19)
याको जन्म भयो को कारन I
तबहीं मोहि करयो यह धारन II (20)
अखिल भुवन महँ कहँ कोई नाहीं I
सब कुछ अहै निहित मो माहीं II (21)
यह निश्चय करि गरब बढ़ायो I
निज कहँ ब्रह्म मानि सुखपाये II (22)
गगन गिरा तब भई गंभीरा I
ब्रह्मा वचन सुनहु धरि धीरा II (23)
सकल सृष्टि कर स्वामी जोई I
ब्रह्म अनादि अलख है सोई II (24)
निज इच्छा इन सब निरमाये I
ब्रह्मा विष्णु महेश बनाये II (25)
सृष्टि लागि प्रगटे त्रयदेवा I
सब जग इनकी करिह सेवा II (26)
महापघ जो तुम्हरो आसन I
ता पे अहे विष्णु को शासन II (27)
विष्णु नाभितें प्रगट्यो आई I
तुम कहँ सत्य दीन्ह समुझाई II (28)
भैतहू जाई विष्णु हितमानी I
यह कहि बन्द भई नभवानी II (29)
ताहि श्रवण कहि अचरज माना I
पुनि चतुरानन कीन्ह पयाना II (30)
कमल नाल धरि नीचे आवा I
तहां विष्णु के दर्शन पावा II (31)
शयन करत देखे सुरभूपा I
श्यायम वर्ण तनु परम अनूपा II (32)
सोहत चतुर्भुजा अतिसुन्दर I
क्रीट मुकट राजत मस्तक पर II (33)
गल बैजन्ती माल विराजै I
कोटि सूर्य की शोभा लाजै II (34)
शंख चक्र अरु गदा मनोहर I
पघ नाग शय्या अति मनोहर II (35)
दिव्यरुप लखि कीन्ह प्रणामू I
हर्षित भे श्रीपति सुख धामू II (36)
बहु विधि विनय कीन्ह चतुरानन I
तब लक्ष्मी पति कहेउ मुदित मन II (37)
ब्रह्मा दूरि करहु अभिमाना I
ब्रह्मारुप हम दोउ समाना II (38)
तीजे श्री शिवशंकर आहीं I
ब्रह्मरुप सब त्रिभुवन मांही II (39)
तुम सों होई सृष्टि विस्तारा I
हम पालन करिह संसारा II (40)
शिव संहार करहिं सब केरा I
हम तीनहुं कहँ काज घनेरा II (41)
अगुण रुप श्री ब्रह्मा बखानहु I
निराकार तिनकहँ तुम जानहु II (42)
हम साकार रुप त्रयदेवा I
करिह सदा ब्रह्म की सेवा II (43)
यह सुनि ब्रह्मा परम सिहाये I
परब्रह्म के यश अति गाये II (44)
सो सब विदित वेद के नामा I
मुक्ति रुप सो परम ललामा II (45)
यहि विधि प्रभु भो जनम तुम्हारा I
पुनि तुम प्रगट कीन्ह संसारा II (46)
नाम पितामह सुन्दर पायेउ I
जड़ चेतन सब कहँ निरमायेउ II (47)
लीन्ह अनेक बार अवतारा I
सुन्दर सुयश जगत विस्तारा II (48)
देव दनुज सब तुम कहँ ध्यावहिं I
मनवांछित तुम सन सब पावहिं II (49)
जो कोउ ध्यान धरै नर नारी I
ताकी आस पुजा वहु सारी II (50)
पुष्कर तीर्थ परम सुखदाई I
तहँ तुम बसहु सदा सुरराई II (51)
कुण्ड नहाइ करहि जो पूजन I
ता कर दूर होई सब दूषण II (52)
II इति श्री ब्रह्मा चालीसा सम्पूर्ण II
Related
1 Comment
[…] श्री ब्रह्मा जी का चालीसा […]