श्री पार्श्वनाथ चालीसा : भगवान श्री पार्श्वनाथ को जैन धर्म में तेइसवें (23वें) तीर्थंकर के रूप में जाना जाता हैं ! पार्श्वनाथ का अवतार लगभग 2 हजार 9 सौ वर्ष पूर्व वाराणसी में हुआ बताया जाता है !
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श्री पार्श्वनाथ चालीसा
II दोहा II
शीश नवा अरिहंत को,
सिद्धन करुं प्रणाम I
उपाध्याय आचार्य का,
ले सुखकारी नाम II (१)
सर्व साधु और सरस्वती,
जिन मन्दिर सुखकार I
अहिच्छत्र और पार्श्व को,
मन मन्दिर में धार II (२)
II चौपाई II
पार्श्वनाथ जगत हितकारी,
हो स्वामी तुम व्रत के धारी I
सुर नर असुर करें तुम सेवा,
तुम ही सब देवन के देवा II (१)
तुमसे करम शत्रु भी हारा,
तुम कीना जग का निस्तारा I
अश्वसैन के राजदुलारे,
वामा की आँखो के तारे II (२)
काशी जी के स्वामी कहाये,
सारी प्रजा मौज उड़ाये I
इक दिन सब मित्रों को लेके,
सैर करन को वन में पहुँचे II (३)
हाथी पर कसकर अम्बारी,
इक जगंल में गई सवारी |
एक तपस्वी देख वहां पर,
उससे बोले वचन सुनाकर II (४)
तपसी तुम क्यों पाप कमाते,
इस लक्कड़ में जीव जलाते I
तपसी तभी कुदाल उठाया,
उस लक्कड़ को चीर गिराया II (५)
निकले नाग-नागनी कारे,
मरने के थे निकट बिचारे I
रहम प्रभू के दिल में आया,
तभी मन्त्र नवकार सुनाया II (६)
भर कर वो पाताल सिधाये,
पद्मावति धरणेन्द्र कहाये I
तपसी मर कर देव कहाया,
नाम कमठ ग्रन्थों में गाया II (७)
एक समय श्रीपारस स्वामी,
राज छोड़ कर वन की ठानी I
तप करते थे ध्यान लगाये,
इकदिन कमठ वहां पर आये II (८)
फौरन ही प्रभु को पहिचाना,
बदला लेना दिल में ठाना I
बहुत अधिक बारिश बरसाई,
बादल गरजे बिजली गिराई II (९)
बहुत अधिक पत्थर बरसाये,
स्वामी तन को नहीं हिलाये I
पद्मावती धरणेन्द्र भी आए,
प्रभु की सेवा मे चित लाए II (१०)
धरणेन्द्र ने फन फैलाया,
प्रभु के सिर पर छत्र बनाया I
पद्मावति ने फन फैलाया,
उस पर स्वामी को बैठाया II (११)
कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया,
समोशरण देवेन्द्र रचाया I
यही जगह अहिच्छत्र कहाये,
पात्र केशरी जहां पर आये II (१२)
शिष्य पाँच सौ संग विद्वाना,
जिनको जाने सकल जहाना I
पार्श्वनाथ का दर्शन पाया,
सबने जैन धरम अपनाया II (१३)
अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी,
जहाँ सुखी थी प्रजा सगरी I
राजा श्री वसुपाल कहाये,
वो इक जिन मन्दिर बनवाये II (१४)
प्रतिमा पर पालिश करवाया,
फौरन इक मिस्त्री बुलवाया I
वह मिस्त्री मांस था खाता,
इससे पालिश था गिर जाता II (१५)
मुनि ने उसे उपाय बताया,
पारस दर्शन व्रत दिलवाया I
मिस्त्री ने व्रत पालन कीना,
फौरन ही रंग चढ़ा नवीना II (१६)
गदर सतावन का किस्सा है,
इक माली का यों लिख्या है I
वह माली प्रतिमा को लेकर,
झट छुप गया कुए के अन्दर II (१७)
उस पानी का अतिशय भारी,
दूर होय सारी बीमारी I
जो अहिच्छत्र ह्रदय से ध्वावे,
सो नर उत्तम पदवी वावे II (१८)
पुत्र संपदा की बढ़ती हो,
पापों की इक दम घटती हो I
है तहसील आंवला भारी,
स्टेशन पर मिले सवारी II (१९)
रामनगर इक ग्राम बराबर,
जिसको जाने सब नारी नर I
चालीसे को चन्द्र बनाये,
हाथ जोड़कर शीश नवाये II (२०)
II सोरठा II
नित चालीसहिं बार,
पाठ करे चालीस दिन I
खेय सुगन्ध अपार,
अहिच्छत्र में आय के II
होय कुबेर समान,
जन्म दरिद्री होय जो I
जिसके नहिं सन्तान,
नाम वंश जग में चले II
II इति श्री पार्श्वनाथ चालीसा सम्पूर्ण II
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