श्री पार्श्वनाथ जी की आरती हिंदी में
Shri Parshvnath Ji Ki Aarti In Hindi
श्री पार्श्वनाथजी की आरती : भगवान तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी ब्रह्मचारी थें ! और उन्होंने मात्र तीस वर्ष की आयु में घर का त्याग कर जैनेश्वरी दीक्षा ले ली थी ! पार्श्वनाथ जी ने काशी में 83 दिन की कठोर तपस्या की ! और 84वें दिन उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ था !
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श्री पार्श्वनाथ जी की आरती
ॐ जय पारस देवा,
स्वामी जय पारस देवा,
सुर नर मुनिजन तुम I
चरणन की करते नित सेवा II
ॐ जय पारस देवा.. (१)
पौष वदी ग्यारस काशी में,
आनंद अतिभारी,
अश्वसेन वामा माता,
उर लीनों अवतारी II
ॐ जय पारस देवा.. (२)
श्यामवरण नवहस्त काय,
पग उरग लखन सोहैं,
सुरकृत अति अनुपम पा,
भूषण सबका मन मोहैं II
ॐ जय पारस देवा (३)
जलते देख नाग नागिन को,
मंत्र नवकार दिया,
हरा कमठ का मान,
ज्ञान का भानु प्रकाश किया II
ॐ जय पारस देवा.. (४)
मात पिता तुम स्वामी मेरे,
आस करूँ किसकी,
तुम बिन दाता और न कोई I
शरण गहूँ जिसकी II
ॐ जय पारस देवा..(५)
तुम परमातम तुम अध्यातम,
प्रभु तुम अंतर्यामी I
स्वर्ग-मोक्ष के दाता तुम हो,
त्रिभुवन के स्वामी II
ॐ जय पारस देवा..(६)
दीनबंधु दु:खहरण जिनेश्वर,
तुम ही हो नाथ मेरे I
दो शिवधाम को वास दास,
हम द्वार खड़े तेरे II
ॐ जय पारस देवा..(७)
विपद-विकार मिटाओ मन का,
अर्ज सुनो मेरे दाता I
सेवक द्वै-कर जोड़ प्रभु के,
चरणों चित लाता II
ॐ जय पारस देवा..(८)
II इति श्री पार्श्वनाथजी की आरती सम्पूर्ण II
जैन धर्म के ग्रंथों अनुसार तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के नौ पूर्व जन्मों का वर्णन मिलता हैं। जो इस प्रकार से हैं !
- पहले जन्म में ब्राह्मण
- दूसरे जन्म में हाथी
- तीसरे जन्म में स्वर्ग के देवता
- चौथे जन्म में राजा
- पाँचवें जन्म में देव
- छठवें जन्म में चक्रवर्ती सम्राट
- सातवें जन्म में देवता
- आठवें जन्म में राजा
- नौ वें जन्म में राजा इंद्र (स्वर्ग का रजा)
- और दसवें जन्म में उनको जैन धर्म में तीर्थंकर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ !
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