शुक्रवार की आरती कथा-विधि : शुक्रवार के व्रत की कथा और आरती किस प्रकार से कैसे करें ! हमारे सनातन में हर वार की व्रत कथा और आरती का महत्त्व बताया गया है ! सप्तवार व्रत कथा के बारे में जानने के लिए हम एक सप्तवार व्रत कथा की सीरिज ला रहे है ! इसको पढ़कर आप इसके महत्त्व को जाने !
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इस व्रत को करने वाला कथा के पूर्व कलश को जल से पूर्ण भरे ! उसके ऊपर गुड़ व चने से भरी कटोरी रखे ! कथा कहते व सुनते समय हाथ में गुड़ और भुने चने रखे ! सुनने वाले सन्तोषी माता की जय, संतोषी माता की जय इस प्रकार जय-जयकार से बोलते जाएँ ! कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़ और चना गौ माता को खिलाएँ !
कलश में रखा हुआ गुड़ व चना सबको प्रसाद के रूप में बांट दें ! कथा समाप्त होने और आरती के बाद कलश के जल को घर में सब जगह पर छिड़कें, बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में डालें ! माता भावना की भूखी होती है, कम या ज्यादा का कोई विचार नहीं करना चाहिए !
इस दिन घर में कोई खटाई न खाएं ! और जिनको आप प्रसाद दे उनको खटाई ना खाने दें ! इस दिन 8 लड़कों को भोजन कराएं ! देवर, जेठ, घर के ही लड़के हों तो दूसरों को बुलाना नहीं ! अगर कुटुम्ब में न मिलें तो ब्राह्मणों के, रिश्तेदारों के या पड़ोसियों के लड़के बुलाएं ! उन्हें खटाई की कोई वस्तु न दें तथा भोजन करा यथा शक्ति दक्षिणा दें।
शुक्रवार व्रत कथा :-
एक समय की बात है कि एक नगर में कायस्थ, ब्राह्मण और वैश्य जाति के तीनों लड़कों में परस्पर गहरी मित्रता थी ! उन तीनों का विवाह हो गया था ! ब्राह्मण और कायस्थ के लड़कों का गौना भी हो गया था ! परन्तु वैश्य के लड़के का गौना नहीं हुआ था !
एक दिन कायस्थ के लड़के ने कहा- हे मित्र ! तुम मुकलावा करके अपनी स्त्री को घर क्यों नहीं लाते ? स्त्री के बिना घर कैसा बरा लगता है ! यह बात वैश्य के लड़के को जंच गई ! वह कहने लगा कि मैं अभी जाकर मुकलावा लेकर आता हूँ ! ब्राह्मण के लड़के ने कहा-अभी मत जाओ क्योंकि शुक्र अस्त हो रहा है, जब उदय हो जाए तब जाकर ले आना !
वैश्य पुत्र कहने लगा कि मैं पत्नी को विदा कराने के लिए आया हूँ ! ससुराल वालों ने भी उसे बहुत समझाया कि इन दिनों शुक्र अस्त है, उदय होने पर ले जाना ! परन्तु उसने एक न सुनी और अपनी पत्नी को ले जाने का आग्रह करता रहा ! जब वह किसी भी प्रकार न माना तो उन्होंने लाचार होकर अपनी पुत्री को विदा कर दिया !
वैश्य पुत्र पत्नी को एक रथ में बैठाकर अपने घर की ओर चल पड़ा ! थोड़ी दूर जाने के बाद मार्ग में उसके रथ का पहिया टूटकर गिर गया ! और बैल का पैर टूट गया ! उसकी पत्नी भी गिर पड़ी और घायल हो गई ! जब आगे चले तो रास्ते में डाकू मिले ! उसके पास जो धन, वस्त्र तथा आभूषण थे वह सब उन्होंने छीन लिये !
इस प्रकार अनेक कष्टों का सामना कर जब पति-पत्नि अपने घर पहुँचे ! तोआते ही वैश्य के लड़के को सर्प ने काट लिया ! वह मूछित होकर गिर पड़ा ! तब उसकी स्त्री अत्यन्त विलाप कर रोने लगी ! वैश्य ने अपने पुत्र को वैद्यों को दिखलाया तो वैद्य कहने लगे-यह तीन दिन में मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा !
यदि यह दोनों ससुराल वापिस चले जाएँ और शुक्र के उदय होने पर पुनः आवें तो निश्चय ही विघ्न टल सकता है ! सेठ ने अपने पुत्र और उसकी पत्नी को शीघ्र ही उसकी ससुराल वापिस पहुंचा दिया ! वहाँ पहुँचते ही वैश्य पुत्र की मूर्छा दूर हो गई ! और साधारण उपचार से ही वह सर्प-विष से मुक्त हो गया !
अपने दामाद को स्वस्थ देखकर ससुराल वाले अत्यन्त प्रसन्न हुए ! वैश्य पुत्र अपनी ससुराल में ही स्वास्थ्य लाभ करता रहा ! और जब शुक्र का उदय हुआ तब हर्षपूर्वक उसकी ससुराल वालों ने उसको अपनी पुत्री सहित विदा किया ! इसके पश्चात् पति-पत्नी दोनों घर आकर आनन्द से रहने लगे। इस व्रत के करने से अनेक विघ्न दूर होते हैं !
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