शनिवार की आरती कथा-विधि : शनिवार के व्रत की कथा और आरती किस प्रकार से कैसे करें ! हमारे सनातन में हर वार की व्रत कथा और आरती का महत्त्व बताया गया है ! सप्तवार व्रत कथा के बारे में जानने के लिए हम एक सप्तवार व्रत कथा की सीरिज ला रहे है ! इसको पढ़कर आप इसके महत्त्व को जाने !
गुरुवार की आरती कथा-विधि
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इस दिन शनिदेव की पूजा होती है ! काला तिल, काला वस्त्र, तेल, उड़द शनिदेव को अति प्रिय हैं ! इसलिए इनके द्वारा शनिदेव की पूजा की जाती है ! शनि की दशा को दूर करने के लिए यह व्रत किया जाता है ! शनि स्तोत्र का पाठ भी विशेष लाभदायक सिद्ध होता है !
एक समय सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु इन ग्रहों में आपस में विवाद हो गया कि हममें सबसे बड़ा कौन हैं ? सब अपने आपको बड़ा कहते थे ! जब आपस में कोई निश्चय न हो सका तो सब आपस में झगड़ते हुए देवराज इन्द्र के पास गए !
और कहने लगे कि आप सब देवताओं के राजा हैं ! इसलिए आप हमारा न्याय करके बतलाएं कि हम नवों ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह कौन हैं ? देवराज इन्द्र देवताओं का प्रश्न सुनकर घबरा गए ! और कहने लगे कि मुझमें यह सामर्थ्य नहीं है कि मैं किसी को बड़ा या छोटा बतला सकूँ ! मैं अपने मुख से कुछ नहीं कह सकता ! हाँ एक उपाय हो सकता हैं !
इस समय पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य दूसरों के दुःखों का निवारण करने वाले हैं ! इसलिए आप सब मिलकर उन्हीं के पास जाएँ ! और वही आपके विवाद का निवारण करेंगे ! सभी ग्रह देवता देवलोक से चलकर भू-लोक में जाकर राजा विक्रमादित्य की सभा में उपस्थित हुए ! और अपना प्रश्न राजा के सामने रखा !
सब आसनों को क्रम से जैसे सोना सबसे पहले और लोहा सबसे पीछे बिछाया गया ! इसके पश्चात राजा ने सब ग्रहों से कहा कि आप सब अपनाअपना आसन ग्रहण करें, जिसका आसन सबसे आगे वह सबसे बड़ा और जिसका आसन सबसे पीछे वह सबसे छोटा जानिए ! क्योंकि लोहा सबसे पीछे था ! और वह शनिदेव का आसन था !
इसलिए शनिदेव ने समझ लिया कि राजा ने मुझको सबसे छोटा बना दिया हैं ! इस निर्णय पर शनिदेव को बहुत क्रोध आया ! और उन्होंने कहा कि राजा तू मेरे पराक्रम को नहीं जानता ! सूर्य एक राशि पर एक महीना, चन्द्रमा सवा दो महीना दो दिन, मंगल डेढ महीना, बृहस्पति तेरह महीने, बुध और शुक्र एक-एक महीने विचरण करते हैं !
परन्तु मैं एक राशि पर ढाई वर्ष से लेकर साढ़े सात वर्ष तक रहता हूँ ! बड़े-बड़े देवताओं को भी मैंने भीषण दुःख दिया हैं ! तो सुनो राजन ! श्रीरामन्द्रजी को साढ़े साती आई और उन्हें वनवास हो गया ! रावण पर आई तो राम ने बानरों की सेना लेकर लंका पर चढ़ाई कर दी ! और रावण के कुल का नाश हो गया ! हे राजन ! अब तुम सावधान रहना !
कुछ समय व्यतीत होने पर जब राजा विक्रमादित्य को साढ़े साती की दशा आई ! तो शनिदेव घोड़ों का सौदागर बनकर अनेक सुन्दर घोड़ों के सहित राजा विक्रमादित्य की राजधानी में आए ! जब राजा ने घोड़ों के सौदागर के आने की खबर सुनी तो अपने अश्वपाल को अच्छे-अच्छे घोड़े खरीदने की आज्ञा दी !
अश्वपाल ऐसी अच्छी नसल के घोड़े देखकर और उनका मूल्य सुनकर चकित हो गया ! और तुरन्त ही राजा को खबर दी ! राजा विक्रमादित्य उन घोड़ों को देखकर और एक अच्छा-सा घोड़ा चुनकर सवारी के लिए उस पर चढ़े !
राजा के पीठ पर चढ़ते ही घोड़ा तेजी से भागा ! घोड़ा बहुत दूर एक घने जंगल में जाकर राजा को छोड़कर अन्तर्ध्यान हो गया ! इसके बाद राजा विक्रमादित्य अकेला जंगल में भटकता फिरता रहा ! भूख-प्यास से दुःखी राजा ने भटकते-भटकते एक ग्वाले को देखा ! ग्वाले ने राजा को प्यास से व्याकुल देखकर पानी पिलाया !
सेठ ने उसको एक कुलीन मनुष्य समझकर जल आदि पिलाया ! भाग्यवश उस दिन सेठ की दुकान पर बहुत अधिक बिक्री हुई ! तब सेठ उसको भाग्यवान पुरुष समझकर भोजन कराने के लिए अपने साथ अपने घर ले गया ! भोजन करते समय राजा विक्रमादित्य ने एक आश्चर्यजनक घटना देखी !
जिस खूटी पर हार लटक रहा था वह खूटी उस हार को निगल रही थी ! भोजन के पश्चात जब सेठ कमरे में आया तो उसे कमरे में हार नहीं मिला ! उसने यही निश्चय किया कि सिवाय वीका के और कोई इस कमरे में नहीं आया ! अत: अवश्य ही उसी ने हार चोरी किया हैं !
वीका से हर के बारे में पूछने पर उसने हार लेने से इन्कार कर दिया ! इस पर पाँच सात आदमी उसको पकड़कर नगर फौजदार के पास ले गए ! फौजदार ने उसको राजा के सामने उपस्थित कर दिया ! और कहा कि यह आदमी भला प्रतीत होता हैं, चोर मालूम नहीं होता ! परन्तु सेठ का कहना हैं कि इसके सिवाय और कोई घर में आया ही नहीं, इसलिए अवश्य ही इसी ने चोरी की हैं !
वर्षा ऋतु के समय वह मल्हार राग गाने लगा ! यह राग सुनकर उस शहर के राजा की कन्या मनभावनी उस राग पर मोहित हो गई ! राजकन्या ने राग गाने वाले की खबर लाने के लिए अपनी दासी को भेजा ! दासी सारे शहर में घूमती रही ! जब वह तेली के घर के निकट से निकली तब क्या देखती हैं कि तेली के घर में चौरंगिया राग गा रहा हैं !
दासी ने लौटकर राजकुमारी को सब वृत्तान्त सुना दिया ! बस उसी क्षण राजकुमारी मनभावनी ने अपने मन में यह प्रण कर लिया चाहे कुछ भी हो मुझे इस चौरंगिया के साथ ही विवाह करना हैं ! प्रातःकाल होते ही जब दासी ने राजकुमारी मनभावनी को जगाना चाहा तो राजकुमारी अनशन व्रत लेकर पड़ी रही ! दासी ने रानी के पास जाकर राजकुमारी के न उठने का वृत्तांत कहा !
रानी ने वहाँ आकर राजकुमारी को जगाया और उसके दुःख का कारण पूछा ! राजकुमारी ने कहा कि माताजी मैंने यह प्रण कर लिया हैं, कि तेली के घर में जो चौरंगिया हैं, मैं उसी के साथ विवाह करूंगी ! माता ने कहा पगली, तू यह क्या कह रही है? तुझे किसी देश के राजा के साथ परिणाया जाएगा !
परन्तु राजकुमारी ने कहा पिताजी मैं अपने प्राण त्याग दूंगी परन्तु किसी दूसरे से विवाह नहीं करूँगी ! यह सुनकर राजा ने क्रोध से कहा यदि तेरे भाग्य में ऐसा ही लिखा हैं, तो जैसी तेरी इच्छा, वैसा ही कर ! राजा ने तेली को बुलाकर कहा कि तेरे घर में जो चौरंगिया हैं उसके साथ मैं अपनी कन्या का विवाह करना चाहता हूँ !
तेली ने कहा महाराज यह कैसे हो सकता हैं ? कहाँ आप हमारे राजा और कहाँ मैं एक नीच तेली ? राजा ने कहा कि भाग्य के लिखे को कोई टाल नहीं सकता ! अपने घर जाकर विवाह की तैयारी करो !
राजा ने भी सारी तैयारी कर तोरण और वन्दनवार लगवाकर राजकुमारी का विवाह चौरंगिया के साथ कर दिया ! रात्रि को जब विक्रमादित्य और राजकुमारी महल में सो रहे थे ! तो आधी रात के समय शनिदेव ने विक्रमादित्य को स्वप्न दिया ! और कहा कि राजा बतावो, मझको छोटा बतलाकर तुमने कितना दुःख उठाया ?
राजा ने कहा- जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करें ! सेठ ने अपने घर जाकर अनेक प्रकार के सुन्दर व्यंजन बनवाए ! और राजा विक्रमादित्य को प्रीतिभोज के लिए आमंत्रित किया ! जिस समय राजा भोजन कर रहे थे, एक अत्यन्त आश्चर्यजनक घटना सबको दिखाई दी !
जो खूटी पहले हार निगल गई थी, वह अब हार उगल रही थी ! जब भोजन समाप्त हो गया तो सेठ ने हाथ जोड़कर बहुत-सी मोहरें राजा को भेंट की ! और कहा-‘मेरी श्रीकंवरी नामक एक कन्या हैं ! उसका आप पाणिग्रहण करें ! राजा विक्रमादित्य ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली !
जब वे शहर के निकट पहुंचे और पुरवासियों ने राजा के आने का सम्वाद सुना तो उज्जैन की समस्त प्रजा अगवानी के लिए आई ! प्रसन्नता से राजा अपने महल में पधारे ! सारे नगर में भारी उत्सव मनाया गया ! और रात्रि को दीपमाला की गई ! दूसरे दिन राजा ने अपने पूरे राज्य में यह घोषणा करवाई कि शनि देवता सब ग्रहों में सर्वोपरि हैं !
मैंने इनको छोटा बतलाया इसी से मुझको यह दुःख प्राप्त हुआ ! इस प्रकार सारे राज्य में सदा शनिदेव की पूजा और कथा होने लगी ! राजा और प्रजा अनेक प्रकार के सुख भोगती रही ! जो कोई शनिदेव की शनिवार की आरती कथा-विधि को पढ़ता या सुनता हैं ! शनिदेव की कृपा से उसके सब दुःख दूर हो जाते हैं ! व्रत के दिन शनिदेव की कथा को अवश्य पढ़ना चाहिए !
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