परम वीर हनुमान जी के बारे में अलोकिक व दिव्य जानकारी
आज हम यहाँ वीर हनुमान जी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी बताने की कोशिस करेगें ! वीर हनुमान जी के परिवार व उनकी शादी के बारे में, उनकी असीम शक्तियों के बारे में, हनुमान जी की भगवान श्री राम और माता जानकी की सेवा भक्ति के बारे में I
जो बाते हनुमान जी के बारें में आपको मालूम हैं या नहीं, मुझे नहीं पता ! मगर आपको वीर हनुमान जी बारे में बहुत सारी बातें बताने का प्रयास जरुर करेगें !
वीर हनुमान जी कौन हैं ?
परम वीर हनुमान जी भगवान शिव का 11वां रूद्र अवतार और प्रभु श्री राम के परम भक्त हैं ! हनुमान जी को रामजी ने कहा था की – तुम मम प्रिय भरत सम भाई I और हनुमान जी जैसा राम भक्त इस ब्रहमांड में आज तक न पैदा हुआ हैं, और ना ही भविष्य में पैदा होगा !
वीर हनुमान जी का जन्म कब हुआ था !
अंजनी माता के गर्भ से चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था !
वीर हनुमान जी के माता-पिता का क्या नाम हैं !
वीर हनुमान जी की माता का नाम अंजनी तथा उनके पिता का नाम केसरी हैं ! जो कपिक्षेत्र के राजा थें !
माता अंजनी किसकी पुत्री थी !
ब्रह्मांड पुराण के अनुसार माता अंजनी कुंजर की पुत्री थी !
वीर हनुमान जी के कितने भाई थे ?
ब्रह्मांड पुराण में वानर राज केसरी व उनके वंशजो का वर्णन मिलता हैं I जिसमे हनुमान जी सहित उनके 6 सगे भाई थे। अपने सभी भाइयों में हनुमान जी सबसे बड़े थे I हनुमान जी के भाइयों के नाम ब्रह्मांड पुराण में इस प्रकार से बताये हैं !
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मति मान
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श्रुति मान
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केतु मान
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गतिमान
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धृतिमान
महावीर बजरंगी का नाम हनुमान कैसे और क्यों पड़ा ?
एक बार बचपन में उगते हुवे सूर्य को एक फल समझ कर उन्हे खाने के लिए हनुमान उड़ने लगे I यह देखकर इंद्र ने उन्हें रोकने के लिए उन पर अपने वज्र से प्रहार कर किया।
इंद्र के वज्र के प्रहार से हनुमत एक पर्वत पर गिर गए ! और उनकी ठुड्डी टूट गई थी। ठुड्डी को संस्कृत में हनु कहते हैं ! इस कारण से उनका हनुमत से हनुमान नाम पड़ा !
वीर हनुमान जी महाराज के गुरु कौन थें ?
सूर्य देव हनुमान जी के गुरु थें I भगवान सूर्य देव के पास 9 परम दिव्य विद्याएं थीं ! उन परम दिव्य विद्याओ का ज्ञान हनुमान जी प्राप्त करना चाहते थे।उन परम दिव्य विद्याओ की शिक्षा लेने के लिए हनुमान जी ने सूर्यदेव को अपना गुरु बनाया था !
हनुमान जी ने वानरो के साथ मिलकर जो पुल बनाया था, उस पुल की लम्बाई चोड़ाई क्या थी ?
लंका पर चढ़ाई करने के लिए हनुमान जी ने वानरों के साथ मिलकर एक पुल बनाया था ! उस पुल का नाम था राम सेतु ! रामायण में भी लंका पर आक्रमण करने के लिए वानरों द्वारा निर्मित सेतु का निर्माण करने का उल्लेख मिलता हैं I उस पुल की लम्बाई 52 किलोमीटर तथा चोड़ाई 3 किलोमीटर बताई जाती हैं ! जिसको आज भी दुनिया रामसेतु के नाम से जानती हैं !
भरत ने ऐसा कौन सा बाण चलाया था जिससे वीर हनुमान जी भी मूर्छित हो गए थे ?
अस्त्र शस्त्रों में एक भी ऐसा अस्त्र-शस्त्र नहीं है I जो प्राण घातक ना हो ! मगर भरत जी के पास एक ऐसा अलौकिक बिना फल का बाण था ! जिसके प्रहार से किसी की भी मृत्यु नहीं होती थी !
यह बिना फल का बाण ही भरत जी ने हनुमान जी पर चलाया था ! जिससे हनुमान जी मूर्छित होकर गिर गए थे ! ऐसा अलौकिक और दिव्य बाण केवल भरत जी के पास ही था !
हनुमान जी में कितना बल था ?
हनुमान जी के बल का अनुमान लगाना असंभव हैं ! मगर फिर भी हम हमारी चेतनानुसार कुछ गणना इस प्रकार कर सकते हैं !
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10 हजार हाथियों का बल एक ऐरावत हाथी में होता हैं।
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10 हजार ऐरावत हाथियों का बल एक देवराज इन्द्र में होता हैं।
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और 10 हजार देवराज इन्द्र का बल हनुमान के एक रोम में होता हैं।
अब बताओ, हम तुच्छ प्राणी उनके विशालकाय शरीर से उनके रोम की गणना कैसे करें ?
वीर हनुमान जी की गद्दा का नाम क्या हैं ?
वीर हनुमान जी की गद्दा का नाम वामहस्त हैं ! हनुमान जी की गद्दा के बारे में अग्नि पुराण में विस्तार से बताया हैं !
वीर हनुमान जी को गद्दा किस देवता ने भेंट की थी ?
हनुमान जी को गद्दा कुबेर जी महाराज ने भेंट की थी ! जो रावण के सौतेले भाई और अलका पुरी के राजा थें I यह गद्दा अद्वितीय मारक क्षमता से सम्पन्न और दिव्य गुणों से भरपुर थी ! इस गद्दा को कोई भी अस्त्र-शस्त्र से पराजित नहीं कर सकता !
क्या हनुमान जी ने विवाह किया था ?
दक्षिण भारत में प्रचालित पाराशर संहिता के मतानुसार हनुमान जी ने सूर्य देव के पास जो 9 दिव्य विद्याये थी I केवल उन विद्याओ को सिखने के लिए विवाह किया था ! जिनमें से 5 विद्याओं का ज्ञान तो सूर्य देव ने हनुमान जी को दे दिया था I
मगर बाकि 4 विद्याओं के लिए विवाहित होना आवश्यक था ! उन बाकि 4 विद्याओं के लिए हनुमान जी को विवाह करना पड़ा ! परन्तु विवाह उपरांत भी हनुमान जी को बाल-ब्रहमचारी ही माना जाता हैं !
वीर हनुमान जी की पत्नी का क्या नाम था ?
वीर हनुमान जी की पत्नी का नाम देवी सुवर्चला था I जो सूर्य देव की पुत्री थी I हनुमान जी ने सूर्य देव से विद्या सिखने के लिए ही विवाह किया था I मगर विवाह के उपरांत भी अनंतकाल से हनुमान जी बाल ब्रहमचारी ही हैं !
हनुमान जी को केवल विद्या अर्जन के उदेश्य से ही विवाह करना पड़ा था ! और आपको बता दे की विवाह के बाद भी इस ब्रहमांड में केवल हनुमान जी ही बाल ब्रहमचारी हैं !
हनुमान जी के पुत्र का क्या नाम है !
हनुमान जी के पुत्र का नाम मकरध्वज हैं ! अब आप सोचते होगें की जब हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी थे, तो उनके पुत्र कैसे पैदा हुआ ! तो इसके पीछे एक कथा है I जो इस प्रकार से हैं !
एक बार जब हनुमान जी पातालपुरी पहुंचे ! तो उन्हें रास्ते में एक वानर जाती का बालक पहरेदार के रूप में खड़ा मिला ! पास जाकर जब हनुमान जी ने उस बालक से उसका परिचय पूछा तो उस बालक ने बताया कि वह महाबली हनुमान जी का पुत्र हैं ! यह सुनकर हनुमान जी हैरान रह गए ! और सोचा की ये कोई मायारूपी हैं ! फिर उन्होंने कहा की हनुमान तो बाल ब्रह्मचारी हैं !
तब उस बालक ने बताया कि जब मेरे पिता हनुमान जी सीताजी का पता लगाने लंका गए ! और माता सीता का पता लगाकर समुंद्र के ऊपर से जब वापस आ रहे थे I तब उनके पसीने की कुछ बूंदें समुन्द्र में गिरी I उस पसीने की एक बूंद को मेरी माता (मादा मगरमच्छ) ने निगल लिया था !
पातालपुरी के लोग जब शिकार कर रहे थे I तब उनकी पकड़ में मेरी माँ (मगरमच्छ) भी आ गई थी I जब मेरी माँ को काटा गया तो उसके गर्भ से एक वानर बालक निकाला ! और उन्होंने उस बालक का नाम रखा “मकरध्वज” ! और वहा बालक मैं ही हूँ !
वीर हनुमान जी का उनकी पत्नी के साथ मंदिर कहाँ हैं !
हनुमान जी का उनकी पत्नी सुवर्चला के साथ भारत के आंध्र प्रदेश के खम्मम जिले में मंदिर हैं। इस अलोकिक मंदिर में हनुमान जी अपनी धर्मपत्नी सुवर्चला के साथ विराजमान है ! यह मंदिर इस बात का एक मात्र सबूत है I जिससे यह जानकारी मिलती हैं कि वीर हनुमान जी ने भी विवाह किया था !
भगवान श्री राम की हनुमान जी से पहली मुलाकात कहाँ हुई ?
हनुमान जी की पहली मुलाकात भगवान श्री राम जी से किष्किंधा वन में हुई थी ! हनुमान जी की इस पहली मुलाकात का तुलसीदास जी ने रामचरित मानस के किष्किंधा काण्ड में भी विस्तार बताया हैं !
वीर हनुमान जी को अष्ट सिद्धि, नौ निधि का वरदान किसने दिया ?
हनुमान चालीसा की इस चौपाई में साफ बताया गया हैं की – अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन्ह जानकी माता I हनुमान जी को अष्ट सिद्धि और नौ निधियो का वरदान मां जानकी ने दिया था ! I
क्योकी इनको संभालने की शक्ति और बल केवल महाबली हनुमान जी में ही था ! ये अष्ट सिद्धियां और नौ निधिया दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त हैं ! जिनको प्राप्त कर लेने के बाद प्राप्त करने वाला सर्व-शक्तिमान हो जाता हैं !
अष्ट सिद्धि, नव निधियो के नाम क्या हैं ?
ये अष्ट सिद्धिया और नौ निधियों पा लेना ही बड़ी बात नहीं होती, इन्हें अपने पास सुरक्षित रखना भी बड़ा बहुत कठिन होता है ! बिना जरूरत के इनका उपयोग करने पर ये नष्ट भी हो जाती हैं ! इन अष्ट सिद्धि नौ निधियो के नाम इस प्रकार से हैं !
अष्ट सिद्धियो के नाम :-
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अणिमा
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लघिम
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गरिमा
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प्राप्ति
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प्राकाम्य
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महिमा
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ईशित्व
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वशित्व
नौ निधियो के नाम :-
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रत्न किरीट
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केयूर
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नुपूर
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चक्र
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रथ
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मणि
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भार्या
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गज
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पद्म
वीर हनुमान जी की आराधना के लिए कौन से तेल का दीपक जलाना चाहिए ?
सुंदरकांड, हनुमान चलीसा, हनुमान जी की आरती व उपासना के लिए हमेशा चमेली के तेल का दीपक जलाना चाहियें। चमेली के तेल से हनुमान जी अत्ती प्रसन्न होते हैं !
हनुमान के भक्तों को अपने माथे पर किस प्रकार का तिलक करना चाहिए ?
हनुमान जी के भक्तो को सिंदूर का तिलक दाहिने भौंह और नाक के बीच में लगाना चाहिए !
स्त्रियों को हनुमान जी की मूर्ति को क्यों नहीं छूना चाहिए?
वीर हनुमान जी का विवाह होने के उपरांत भी वे बाल ब्रह्मचारी हैं ! और ब्रह्मचारी स्त्रियों से दूर रहते हैं ! इसका मुख्य कारण उनके रजस्वला को बताया गया है ! सनातन धर्म में रजस्वला स्त्रियों को विशेष कर हनुमान जी पूजा आराधना करने की सख्त मनाही है।
स्त्रियों के संपर्क में आने से ब्रह्मचारी तपस्वीयो की साधना भंग हो जाती है ! इसलिए कभी भी स्त्रियों को हनुमान जी की मूर्ति को हाथ नहीं लगाना चाहियें ! अगर ऐसा वो करती हैं, तो खुद ही दोष की भागी बनती हैं !
वीर हनुमान जी के उड़ने की गति कितनी हैं ?
हनुमान जी में 11 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से उड़ने की शक्ति हैं ! श्री हनुमान चालीसा के एक दोहे में बताया गया है की जुग सहस्त्र जोजन पर भानु, लील्यो ताहि मधुर फल जानू ! जो विज्ञान के प्रमाणीत तरीके से इस प्रकार हैं !
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12000 वर्ष का होता हैं = एक युग
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1000 वर्ष का होता हैं = एक सहस्त्र
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8 मील की होती हैं = एक योजन
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एक युग x एक सहस्त्र x एक योजन = पर सूर्य स्थित हैं !
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12,000 x 1,000 x 8 मील = 9,60,00,000 मील पर सूर्य स्थित हैं !
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एक मील = 1.60 कि.मी.
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14.98 करोड़ कि. मी.
श्री रामचरित मानस के अनुसार पृथ्वी से सूर्य की यही दूरी वैज्ञानिकों ने भी अपनी गणनाओ के अनुसार बताई है !
वीर हनुमान जी की पूंछ में कितना बल था ?
श्री हनुमान जी को मामूली सा वानर समझने वाले लोग महामूर्ख होते हैं ! शास्त्रों मे हनुमान जी की पूंछ का बल 40 लाख टन बताया गया है। एक बार महाभारत काल के सबसे बलवान भीम का भी घमंड हनुमान जी ने ही तोड़ा था ! हनुमान जी ने इसी पूंछ के बल से सारी लंका को खाक कर दिया था ! क्योकि हनुमान जी कालो के काल महाकाल का ही 11वां रूद्र अवतार है !
हनुमान जी ने जो पर्वत उठाया था उसका क्या नाम हैं ?
हनुमान जी ने जो पर्वत उठाया था उसका नाम था द्रोणागिरी पर्वत ! जब लक्ष्मण जी के प्राण बचाने के लिए सुषेण वैद्य ने राम जी को सूर्योदय से पहले संजीवनी बूटी लाने को कहा ! तो राम जी ने यह जिम्मेदारी हनुमान जी को दी !
मगर हनुमान जी को संजीवनी बूटी कैसी दिखती है यह नहीं पता था ! इसीलिए हनुमान जी पूरे द्रोणागिरी पर्वत को ही उठा लाये ! जिससे सुषेण वैद्य उस पहाड़ से उचित बूटी चुनकर लक्ष्मण जी के प्राण बचा सके !
वीर हनुमान जी को उनके बल भूलने का श्राप किसने दिया था ?
रामायण के अनुसार अंगिरा और भृगुवंश मुनियों ने हनुमान जी को उनके बल और तेज को सदा के लिए भूल जाने का श्राप दिया ! क्योंकी बाल्यावस्था में वे ऋषियों की हवन समिधा की लकड़ियो को उठा कर आकाश में उड़ जाते थे ! इससे तंग आकर उन्होंने हनुमान जी को श्राप दे दिया I
जब हनुमान जी को इस बात का अहसास हुआ तो उन्होंने अंगिरा और भृगुवंश मुनियों से माफ़ी मांगी ! तब मुनियों ने कहा की आपकी शक्तियाँ तभी ही जागृत होंगी, जब कोई उत्साहपूर्वक आपको आपकी शक्तियो का स्मरण कराएगा ! तब आप उसका उपयोग कर सकेगें !
इंद्रजीत (मेघनाद) ने कौन सा अस्त्र चला कर वीर हनुमान जी को बंदी बनाया था ?
जब हनुमान जी ने लंका की सारी अशोक वाटिका को उजाड़ दी Iऔर रावण के सैनिकों को मार मार के गिरा दिया I तब रावण ने मेघनाथ को आदेश दिया की हनुमान जी को जिंदा पकड़ कर उनके सामने पेश किया जाये I
तब इंद्रजीत ने हनुमान जी को जिंदा पकड़ने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया । ब्रह्मास्त्र को अपनी और आते देखकर हनुमान जी ने ब्रह्माजी का मान रखने के लिए उसमें बंध जाना स्वीकार कर लिया I
वीर हनुमान जी महाराज के कितने नाम हैं ?
हनुमान जी को १०८ चमत्कारी नामो से जाना जाता हैं ! उनके १०८ नामो का क्या अर्थ हैं ! जाने
- आंजनेया : अंजनी माता का पुत्र
- महावीर : बहादुर और पराक्रमी
- हनूमत : जिसके गाल फुले हु हो
- रुद्रवीर्य समुद्भवा : भगवान शिव का रूद्र अवतार
- महाकाय : विशालकाय रूप वाले
- मारुतात्मज : पवन देव के लिए रत्न जैसा प्रिय पुत्र
- तत्वज्ञानप्रद : बुद्धिदाता
- सीतादेविमुद्राप्रदायक : सीतामाता को भगवान राम की मुंदरी देने वाला
- अशोकवनकाच्छेत्रे : अशोक बाग का विधवंस करने वाले
- सर्वमायाविभंजन : छल कपट के विनाशक
- सर्वबन्धविमोक्त्रे : मोह मय को दूर करने वाले
- रक्षोविध्वंसकारक : दुष्टओ का वध करने वाले
- परविद्या परिहार : दुष्ट शक्तियों का पतन करने वाले
- परशौर्य विनाशन : शत्रु के अभिमान को खंडित करने वाले
- परमन्त्र निराकर्त्रे : प्रभु श्री राम का जाप करने वाले
- परयन्त्र प्रभेदक : दुश्मनों के नापाक उद्देश्य को नष्ट करने वाले
- सर्वग्रह विनाशी : बुरे ग्रहों के प्रभावों को खत्म करने वाले
- भीमसेन सहायकृथे : भीम के सहायक
- सर्वदुखः हरा : सभी प्रकार के दु:खों को दूर करने वाले
- सर्वलोकचारिणे : सभी लोको में वास करने वाले
- मनोजवाय : जिसकी पवन जैसी गति वाले
- पारिजात द्रुमूलस्थ : प्राजक्ता नामक पेड़ के नीचे वास करने वाले
- सर्वमन्त्र स्वरूपवते : सभी प्रकार के मंत्रों के स्वामी
- सर्वतन्त्र स्वरूपिणे : सभी मंत्रों तंत्रों के स्वरूप
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सर्वयन्त्रात्मक : सभी प्रकार के यंत्रों में वास करने वाले
- कपीश्वर : वानरों के मुख्य देवता
- चिरंजीविने : अमर रहने वाले
- सर्वरोगहरा : रोग और बीमारियों को दूर करने वाले
- प्रभवे : सबसे प्रिय
- बल सिद्धिकर : अतिबलवान
- सर्वविद्या सम्पत्तिप्रदायक : ज्ञान और बुद्धि प्रदान करने वाले
- कपिसेनानायक : वानर सेना के प्रमुख शिरोमणि
- कुमार ब्रह्मचारी : बाल ब्रह्मचारी
- रत्नकुण्डल दीप्तिमते : कानो में मणियुक्त कुंडल धारण करने वाले
- चंचलद्वाल सन्नद्धलम्बमान शिखोज्वला : जिसकी विशालकाय पूंछ उनके सर से भी ऊंची है
- गन्धर्व विद्यातत्वज्ञ, : ब्रहमांड की विद्या के ज्ञाता
- महाबल पराक्रम : महा पराक्रमी शक्ति के स्वामी
- काराग्रह विमोक्त्रे : कैद से आजाद करने वाले
- शृन्खला बन्धमोचक: चिंता को दूर भागने वाले
- सागरोत्तारक : सागर को एक छलांग में पार करने वाले
- प्राज्ञाय : प्रभुद विद्वान
- रामदूत : भगवान राम के दूत
- वानर : बंदरप्रतापवते : वीरता के लिए जाने वाले
- सुचये : पवित्र
- सीताशोक निवारक : सीता के दु:खो का नाश करने वाले
- अन्जनागर्भसम्भूता : माता अंजनी के गर्भ से उत्पन्न
- बालार्कसद्रशानन : सूरज की तरह तेज
- विभीषण प्रियकर : विभीषण के प्रिय
- कबलीकृत मार्ताण्डमण्डलाय : सूर्य को निगलने वाले
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लक्ष्मणप्राणदात्रे : लक्ष्मण को जीवनदान देने वाले
- वज्रकाय : पत्थर की तरह मजबूत शरीर
- महाद्युत : सबसे तेज
- महात्मा : भक्ति में लींन रहने वाले
- रामभक्त : भगवान श्री राम के भक्त
- दैत्यकार्य विघातक : राक्षसों को नष्ट करने वाले
- अक्षहन्त्रे : रावण के पुत्र अक्षय का वध करने वाले
- कांचनाभ : सुनहरे रंग के शरीर वाले
- पंचवक्त्र : पंचमुखी
- महातपसी : महान तपस्वी
- लन्किनी भंजन : लंकिनी को मरने वाले
- श्रीमते : प्रतिष्ठित
- सिंहिकाप्राण भंजन : सिंहिका के प्राण हरने वाले
- सीताराम पादसेवा : श्री राम और माता सीता की सेवा में रहने वाले
- रामचूडामणिप्रदायक : राम को सीता का चूड़ामणि देने वाले
- दशग्रीव कुलान्तक : रावण के वंश का सर्नावश करने वाले
- योगी : परममहात्मा
- गन्धमादन शैलस्थ : गंधमादन नमक पर्वत पर निवास करने वाले
- लंकापुर विदायक : लंका को आग के हवाले करने वाले
- सुग्रीव सचिव : महाराज सुग्रीव के मंत्री
- धीर : वीर शेरोमणि
- शूर : पराक्रमी
- दैत्यकुलान्तक : राक्षसों का सर्वना करने वाले
- सुरार्चित : देवताओं में पूजनीय
- महातेजस : दीरामसुग्रीव सन्धात्रे : राम और सुग्रीव के बीच मित्रता करवाने वालेप्तिमान
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पिंगलाक्ष : गुलाबी नेत्रों वाले
- महारावण मर्धन : महारावण का वध करने वाले
- हरिमर्कट मर्कटा : वानरों में प्रमुख
- कामरूपिणे : अनेक रूप धारने वाले
- दान्त : शांतप्रिय
- विजितेन्द्रिय : इंद्रियों पर विजय पाने वाले
- भविष्यथ्चतुराननाय : भविष्य में होने वाली की घटनाओं के ज्ञाता
- केसरीसुत : वानर राज केसरी के पुत्र
- वार्धिमैनाक पूजित : मैनाक पर्वत द्वारा पूजनीय
- स्फटिकाभा : पारदर्शी
- वागधीश : प्रवक्ताओं के भगवान
- नवव्याकृतपण्डित : विद्याओं में निपुण
- चतुर्बाहवे : चार भुजाओं वाले
- दीनबन्धुरा : दु:खियों के रखवाले
- भक्तवत्सल : अपने भक्तों की सदा रक्षा करने वाले
- संजीवन नगाहर्त्रे : संजीवनी बंटी लाने वाले
- वाग्मिने : राम नाम का समरण करने वाले
- दृढव्रता : कठिन तपस्या करने वाले
- कालनेमि प्रमथन : कालनेमि को मरने वाले
- शान्त : रचनाकार
- प्रसन्नात्मने : हंसमुख रहने वाले
- शतकन्टमदापहते : शतकंट के अहंकार को मिटाने वाले
- मकथा लोलाय : श्री राम की कथा सुनने के लिए आतुर
- सीतान्वेषण पण्डित : सीता की खबर लाने वाले
- वज्रद्रनुष्ट : वज्रकाय शरीर से दुष्टओ का नाश करने वाले.
- वज्रनखा : वज्र जैसे मजबूत नाखून वाले
- इन्द्रजित्प्रहितामोघब्रह्मास्त्र विनिवारक : इंद्रजीत के ब्रह्मास्त्र के प्रभाव को नष्ट करने वाले
- पार्थ ध्वजाग्रसंवासिने : अर्जुन के रथ पार रहने वाले
- शरपंजर भेदक : तीरों के घोंसले को नष्ट करने वाले
- दशबाहवे : दसभुजाओं वाले महाबली
- लोकपूज्य : ब्रह्मांड में पूजनीय
- जाम्बवत्प्रीतिवर्धन : जाम्बवत के प्रिय
- राम दूत : भगवन श्री राम के सेवक
- महारुद्र : भगवान शंकर का रूद्र अवतार
आपको यह जानकारी कैसी लगी कमेंट में जरूर बताना ! सनातन की इस जानकारी को अधिक से अधिक लोगो को शेयर करना ! यह सारी जानकारी मैंने अपने निजी स्तर पर खोजबीन करके इकट्ठी की है ! इसमें त्रुटि हो सकती है ! उसके लिए मैं आपसे अग्रिम क्षमा याचना करता हूं ! इस लेख में दी गई सारी जानकारियां धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं !
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