रविवार की आरती कथा-विधि : रविवार के व्रत की विधि और रविवार व्रत कथा और आरती किस प्रकार से कैसे करें ! हमारे सनातन में हर वार की व्रत कथा और आरती का महत्त्व बताया गया है ! सप्तवार व्रत कथा के बारे में जानने के लिए हम एक सप्तवार व्रत कथा की सीरिज ला रहे है ! इसको पढ़ क्र आप इसके महत्त्व को जाने !
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यह व्रत सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला, मान-सम्मान में वृद्धि तथा शत्रुक्षय करने वाला हैं ! प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र धारण कर पवित्र स्थान को लीपकर सूर्यदेव भगवान की पूजा अर्चना करें !
शान्तचित्त होकर परमात्मा का ध्यान करें। इस व्रत में तेल व नमक युक्त भोजन में ग्रहण न करें ! आपको भोजन और फलाहार सूर्य अस्त होने से 2 घंटे पहले ही कर लेना चाहिए !
यदि भोजन करने से पूर्व सूर्य अस्त जाये, तो दूसरे दिन सूर्य के उदय हो जाने के बाद अर्घ्य देकर ही भोजन करें ! व्रत के अन्त में कथा अवश्य सुननी चाहिए !
एक बुढिया माई थी ! वह हर रविवार को सवेरे गोबर से घर लीपने के बाद स्नान आदि से निवर्त होकर भगवान की पूजा करती ! फिर भोजन तैयार कर भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन करती थी !
भगवान श्री हरि की कृपा से उसके घर में धन-धान्य का भंडार भरा रहता था ! किसी प्रकार का विघ्न या दुःख उसके जीवन में नहीं था ! हर प्रकार से घर में सुख शांति व आनन्द रहता था ! बुढिया माई अपने घर को लीपने के लिए पड़ोसन के घर से गाय का गोबर रोज लाया करती थी !
बुढिया माई की सम्पन्नता को देखकर उसकी पड़ोसन बुढिया माई से जलने लगी ! वह विचार करने लगी कि क्यों यह बुढिया रोज मेरी गौ-माता का गोबर ले जाती हैं ! कुछ तो बात होगी ! अगले दिन से वह अपनी गौ-माता को घर के भीतर बाँधने लगी ! जब रविवार का दिन आया तो बुढिया माई को आपनी पड़ोसन के घर से गौ-माता का गोबर लाने के लिए गई ! मगर गौ-माता का गोबर न मिलने के कारण अपना घर न लीप सकी !
तब बुढिया माई ने कहा- उसे घर लीपने के लिए गोबर नहीं मिला ! इस कारण वह न तो भोजन बना पाई और न ही आपको भोग न लगा सकी ! यह सुनकर भगवान ने कहा, ‘हे माई ! हम तुमको ऐसी दिव्य गौ-माता देगें, जो सभी मनोकामना पूर्ण करती हैं ! क्योंकि तुम हर रविवार को पूरा घर गौ-माता के गोबर से लीपने के बाद ही भोजन बनाकर मेरा भोग लगाती हो, और बाद में स्वयं भोजन करती हो ! इस बात से मैं बहुत प्रसन्न हूँ !
मैं उन निर्धन भक्तो को धन, बांझ स्त्रियों को पुत्र देकर उनके दःखों को दूर करता हूँ ! तथा जीवन के अन्त समय में मोक्ष प्रदान करता हूँ ! स्वप्न्न में ऐसा वरदान उस बुढिया माई को देकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गए !
प्रातः जब बुढिया माई की आँखें खुली तो, उसने देखा कि उसके आंगन में एक अति सुन्दर गौ-माता अपने बछड़े के साथ बँधी हुई हैं ! बुढिया माई गौ-माता और बछड़े को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुई ! और बुढिया माई ने गौ-माता और बछड़े को अपने घर के बाहर आँगन में बाँध दिया ! वहीं उन दोनों के खाने के लिए चारा भी डाल दिया !
जब बुढिया माई की पड़ोसन ने बुढिया माई के घर के बाहर एक अति सुन्दर गौ-माता और बछड़े को बंधा देखा तो द्वेष के कारण जल उठी ! जब उसने देखा कि बुढिया माई की गौ-माता ने सोने का गोबर किया है ! तो वह चोरी से उस गोबर उठाकर अपने घर ले आई ! और अपनी गौ का गोबर उस सोने के गोबर की जगह पर रख गई !
आप उस सोने को प्रजाहित के काम में ले सकते हो ! वह बुढिया माई इतने सोने का क्या करेगी ! उसकी बात सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को आदेश दिया की उस बुढिया माई के घर से वो गौ-माता खोलकर ले आओं ! जब सुबह भगवान को भोग लगाकर बुढिया माई भोजन ग्रहण करने जा ही रही थी, कि राजा के सिपाही गौ-माता और बछड़े खोलकर ले जाने लगे !
तो बुढिया माई उनके सामने बहुत रोई-चिल्लाई ! परन्तु राजा के सिपाहियों के सामने उसकी एक ना चली ! उस दिन गौ-माता और बछड़े के वियोग में बुढिया माई ने भोजन भी नहीं किया ! और रात भर रो-रोकर भगवान हरि से गौ-माता और बछड़े को पुनः पाने के लिए प्रार्थना करती रही !
रात को जब राजा सो गया तो भगवान हरि ने राजा को सपने में आकर कहा- की “हे राजन ! उस गौ-माता और बछड़े को वापस बुढिया माई को लौटा दो इसी में ही तुम्हारा भला हैं ! उस बुढिया माई के रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैंने यह गौ-माता उसे दी थी !
प्रातः होते ही राजा ने उस बुढिया माई को महल में बुलाकर बहुत से धन के साथ सम्मान सहित गौ-माता और बछड़े को वापस उसे लौटा दिया ! और अपने द्वारा किये गए अत्याचार के लिए उससे क्षमा-प्रार्थना की..
फिर राजा ने उस बुढिया माई की पड़ोसन को बुलाकर उचित दण्ड दिया ! इतना करने के बाद राजा के महल से गन्दगी दूर हो गई ! उसी दिन से राजा ने नगर निवासियों को आदेश दिया कि राज्य की समृद्धि तथा अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रविवार का व्रत अवश्य करें !
रविवार के व्रत करने से नगर के सभी लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगे ! अब कोई बीमारी तथा प्रकृति का प्रकोप उस नगर पर नहीं होता था। सारी प्रजा सुख से रहने लगी !
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