माता का सातवां स्वरूप कालरात्रि के नाम से देवी जाना जाती हैं ! शास्त्रों में सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है ! देवी का वाहन गर्दभ (गदहा) है ! दाहिने हाथ की वरमुद्रा से देवी माँ सभी को आश्रीवाद प्रदान करती हैं !
बाईं हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (तलवार) है ! एवंम दाहिनी तरफ का नीचे वाला माता का हाथ अभयमुद्रा में है ! इस दिन माता का रूप भयंकार विकराल मुद्रा में होता हैं ! जिसे देखकर शत्रुओं के प्राण निकल जाते हैं !
माता के इस भयंकर रूप का ब्रह्मांड में कोई भी सामना करने में सक्षम नहीं है !
सातवां स्वरूप कालरात्रि को देवी काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी एवंम दुर्गा इन कई विनाशकारी स्वरूपों में एक स्वरूप कालरात्रि के नाम से भी जाना माना जाता है ! रौद्री व धुमोरना देवी माता के अन्य स्वरूप हैं !
देवी के इस रूप से राक्षस, भूत, प्रेत, पिसाच और सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जाओं का विनाश होता है ! ये सभी माता के आगमन से दूर भाग जाते हैं ! माँ के शरीर का रंग अंधकार की तरह बिल्कुल काला है !
माता कालात्रि के गले में जो माला है, वो तेज बिजली की तरह चमकने वाली हैं ! सिर के बाल बिखरे हुए हैं ! कालात्रि माँ के तीन नेत्र है, जो ब्रह्मांड के आकर जैसे गोल हैं ! माँ के नाक से निकलने वाली साँस अग्नि की ज्वाला की तरह भयंकर हैं !
माता का सातवां स्वरूप कालरात्रि देखने में अत्यंत भयानक व डरावना है ! अतः भक्तों को किसी प्रकार से भयभीत या डरने की आवश्यकता नहीं है ! क्योंकि माता अपने भक्तों व साधक को सदैव शुभ फल का आश्रीवाद देने वाली हैं !
माता की साधना के लिए मन, वचन, काया की पवित्रता का पालन करना अत्यंत आवश्य है ! साधक को ब्रह्मचार्य के नियमों का संयम पूर्ण पालन करना चाहिए ! सातवे दिन साधक का मन “सहस्रार चक्र” में स्थित रहता है !
सहस्रार चक्र में स्थित साधक का मन पूरी तरह से माँ की साधना लीन रहता है ! इस दिन साधक को ब्रह्मांड की समस्त सिद्धिया मिलने का समय होता है ! साधक की साधना से प्रसन्न होकर देवी माँ साधक को सिद्धियो व नव-निधियों का वरदान देती है !
देवी साधक के समस्त पापों का नाश कर उसे शुभ व पुण्य-लोकों की प्राप्ति का वरदान देती है ! इसी कारण माता का एक नाम ” शुभकारी ” भी है !
नवरात्रि की सप्तमी को माँ कालरात्रि की पूजा-आराधना का विधान शास्त्रों में बताया गया है ! माँ के इस स्वरूप-विग्रह को साधक अपने हृदय में अवस्थित होकर एकाग्रचित मन से उपासना करनी चाहिए !
दुष्टों का विनाश करने वाली कालरात्रि का स्मरण करने मात्र से ही राक्षस, भूत, प्रेत, दैत्य, दानव, डरकर भाग जाते हैं ! ये बुरे ग्रह-बाधाओं को भी दूर भगाने वाली देवी हैं ! माता के उपासकों को अग्नि, जल, जीव, जंतु, शत्रु का भय कभी नहीं सताता !
देवी की कृपा से साधक भय-मुक्त हो जाता है ! माता की पूजा-आराधना करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती, एवम् दुश्मनों का नाश होता है, साधक का तेज व मनोबल बढ़ता है !
प्रत्येक साधक को आराधना के लिये श्लोक, मंत्र, दुर्गा सप्त्सती के पाठ का सातवें दिन जाप अवश्य करना चाहिए ! माता का निरंतर स्मरण, ध्यान और पूजा करनी चाहिए !
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देवी माँ कालरात्रि की पूजा अर्चना करने से सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है ! माता के आश्रीवाद से बुरी शक्तियों का प्रभाव समाप्त हो जाता है ! माता की पूजा-अर्चना करने से तनाव दूर हो जाता है !
सातवें दिन की पूजा का विधान भी लगभग उसी प्रकार है, जो छठे दिन की पूजा का है ! देवी की प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराएं ! मां को लाल रंग पसंद है, इसलियें मां को लाल रंग के वस्त्र,पुष्प अर्पित करें व शहद का भोग अवश्य लगाएं !
मां को रोली कुमकुम लगाकर, मिष्ठान, पंच मेवा, फल अर्पित करे ! इस दिन भी आप कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता, तीर्थों, योगिनियों, नवग्रहों, दशदिक्पालों एवं नगर देवता की पूजा अराधना करें ! उस के बाद देवी कालरात्रि की पूजा अर्चना शुरु करें ! इस दिन मां कालरात्रि का अधिक से अधिक ध्यान व साधना करें !
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।
ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै ऊं कालरात्रि दैव्ये नम:
कालरात्रि जय जय महाकाली, काल के मुंह से बचाने वाली ।
दुष्ट संहारिणी नाम तुम्हारा, महा चंडी तेरा अवतारा ।।
पृथ्वी और आकाश पर सारा, महाकाली है तेरा पसारा ।
खंडा खप्पर रखने वाली, दुष्टों का लहू चखने वाली ।।
कलकत्ता माँ स्थान तुम्हारा, सब जगह देखूं तेरा नजारा ।
सभी देवता सब नर नारी, गावे स्तुति सभी तुम्हारी ।।
रक्तदंता और अन्नपूर्णा, कृपा करे तो कोई भी ना दु:खयारी ।
ना कोई चिंता रहे ना रहे बीमारी, ना कोई गम ना संकट कोई भारी ।।
उस पर कभी कष्ट ना आवे, महाकाली मां जिसको बचावे ।
सभी ‘भक्त’ प्रेम से कहे, कालरात्रि मां तेरी जय ।।
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