आज हम यहाँ माता का आठवां स्वरूप महागौरी की उत्पत्ति, परिचय, देवी की साधना, महागौरी की उपासना, महादेवी की पूजा विधि, मंत्र एवं माँ की आरती के बारे में बारे में जानेगे ! पुराणों में भी महागौरी पर्वती की महिमा का व्याखान किया गया है !
माता का आठवां स्वरूप महागौरी की उत्पति की कथा इस प्रकार हैं ! एक बार भगवान शंकर ने पार्वती जी को देखकर कुछ कह देते हैं ! जिससे देवी के मन कोई आघात लगता है ! देवी नाराज होकर वहा से चली जाती है !
और पति-रूप में प्राप्त करने के लिए भगवान शंकर की कठोर तपस्या करनी शुरु कर देती है ! देवी पार्वती ने वर्षो तक एकांतवास में भगवन शंकर की कठोर तपस्या की ! भगवन शंकर को अपनी भूल का अहसास होता हैं ! और वो पर्वती की खोज करने निकल जाते हैं ! भगवान शंकर जब उनके पास पहुँचते हैं।
तो पार्वती के स्वरूप को देखकर अचंबित रह जाते हैं ! कठोर तपस्या के कारण पार्वती का रंग अत्यंत सूर्य के सामान ओज से भरपूर चांदनी के सामन बिलकुल धवल दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण को देखकर भगवन शंकर देवी पार्वती को गौर वर्ण का वरदान देते हैं। तभी से इनका नाम गौरी पड़ा !
महागौरी पर्वती से संबंधित अन्य कथा भी है की ऐक बार एक सिंह काफी भूखा था ! जहाँ देवी पर्वती भगवान शंकर की कठोर तपस्या कर रही थी, वह भोजन की तलाश में वहाँ पहुँचा ! देवी को भोजन के रूप देखकर सिंह की भूख और बढ़ गयी ! परन्तु वह देवी के तपस्या के तेज से वह देवी तक नहीं पंहुच प रहा था !
और देवी के वह से उठने का इंतजार करते हुए वहीं पर बैठ गया ! भोजन के इंतजार में वह काफी कमजोर हो गया ! देवी जब आपनी तपस्या से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आई !
और महागौरी पर्वती ने उसे अपना वाहव बनाया ! इसलिए देवी महागौरी पर्वती का वाहन बैल और सिंह दोनों हैं !
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माता का आठवां स्वरूप महागौरी में देवी पर्वती स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं ! देवी की आयु आठ वर्ष की मानी गई है “अष्टवर्षा भवेद् गौरी” ! इनका रंग पूर्णतः शंख, चंद्र और कुंद के फूल धवल है ! माता के समस्त वस्त भी चन्द्रमा के सामान बिलकुल चमकीले श्वेत हैं !
महागौरी के इस रूप की चार भुजाएँ हैं, देवी का वाहन वृषभ ( बैल ) है ! देवी माँ का ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा में तथा नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है ! इस स्वरूप में माता महागौरी पर्वती अत्यंत शांत मुद्रा है !
महागौरी पर्वती का ध्यान, स्मरण, पूजन व आराधना भक्तों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधना होती है ! हमें सदैव माँ पर्वती का ध्यान करना चाहिए ! माता की कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है !
मन के शुद्ध भाव से एकाग्रचित होकर सदैव माता के पादारविन्दों का साधक को ध्यान करना चाहिए ! महागौरी पर्वती आपने भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं ! और इनकी साधना से कोई भी कार्य असंभव नहीं रहता है ! अतः देवी की शरण में आने के लिये हमें सदैव कठिन साधना का प्रयत्न करना चाहिए !
माता का आठवां स्वरूप महागौरी के नाम से जाना जाता है ! नारात्रो में दुर्गा की पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है ! इनकी साधना से मिलने वाली शक्ति अमोघ और फलदायिनी है !
माता की उपासना से भक्तों को सभी दुःख, कष्ट, रोग और दरिद्रता का नास होता हैं ! माता की उपासना से भक्तों पूर्वजन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं ! उपासना करने वाला साधक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है। सुहागिन औरतों को सुहाग और श्रृंगार की सामग्री माता को अवश्य अर्पित करें !
नवरात्रों की अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए देवी को लाल रंग की चुनरी भेंट करती हैं ! अष्टमी तिथि को मां को नारियल का भोग लगाना फलदाई माना जाता है !
महागौरी पर्वती की पूजा का विधान भी उसी प्रकार है अर्थात जिस प्रकार एकम से लेकर अष्टमी के दिन तक आप ने पूजा की थी ! देवी की प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराएं ! देवी को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें व शहद का भोग अवश्य लगाएं !
मां को रोली कुमकुम लगाकर पांच प्रकार के फल और मिष्ठान भी अर्पित करे ! उस के बाद देवी महागौरी पर्वती की पूजा अर्चना करें ! इस दिन यदि आप कन्या पूजन करते हो तो कम से कम आठ कन्याओं की पूजा अवश्य करनी चाहिए आठ कन्याओ के चरण धोकर उनका पूजन करे !
आठो कन्याओ को भोजन कराकर उन को दक्षिणा अवश्य देवें ! कुछ लोग अपनी परंपराओं के अनुसार आज के दिन व्रत को खोल लेते हैं, लेकिन कुछ लोग नवमी के दिन भी नवरात्र को खोलते हैं ! आपके यहां जैसे परंपरा है, उसी के अनुसार आप नवरात्र के व्रत खोलें !
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
माता महागौरी के इस मंत्र का कम से कम 21 बार जाप अवश्य करें ! धन-धान्य, ऐश्वर्य और सौभाग्य में वृद्धि भी होगी ! और आपको आरोग्य, ऐश्वर्या, मान-सम्मान तथा मोक्ष की प्राप्ति भी होगी ! पूजा समाप्ति के बाद आपको माता रानी की आरती अवश्य करनी चाहिए !
घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें ! महादेवी, महाशक्ति, महामाया, माँ महागौरी पर्वती को मेरा बारम्बार प्रणाम है ! इस प्रकार की स्तुति एवं प्रार्थना करने से देवी का सदेव आशीर्वाद मिलता है !
देवी के इस रूप का जाप देव और ऋषिगण इस मंत्र से करते हैं- “सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके. शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।”
जय महागौरी जगत की माया। जया उमा भवानी जय महामाया ।
हरिद्वार कनखल के पासा। महागौरी तेरा वहां निवासा ।।
चंद्रकली और ममता अंबे। जय शक्ति जय जय मां जगदंबे ।
भीमा देवी विमला माता। कौशिकी देवी जग विख्याता ।।
हिमाचल के घर गौरी रूप तेरा। महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा ।
सती ‘सत’ हवन कुंड में था जलाया। उसी धुएं ने रूप काली बनाया ।।
बना धर्म सिंह जो सवारी में आया। तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया ।
तभी मां ने महागौरी नाम पाया। शरण आनेवाले का संकट मिटाया ।।
शनिवार को तेरी पूजा जो करता। मां बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता ।
भक्त बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो। महागौरी मां तेरी हरदम ही जय हो ।।
आपने माता महागौरी की समस्त जानकारी यहां तक पढ़ी ! माता रानी आपकी सभी मनोकामना पूरी करें ! इन नवरात्रों में आपका वैभव, ऐश्वर्या व धन-धान से माता रानी भंडार भरे ! ऐसी मनोकामना हम मां कात्यायनी से करते हैं !
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