माँ जीवदानी चालीसा हिंदी में
माँ जीवदानी चालीसा जो नित्य प्रेम से पढ़ता हैं ! वह भवसागर से पार उतर जाता हैं ! महाराष्ट्र राज्य में ठाणे-ज़िले के विरार उपनगर में पहाड़ी पर माँ जीवदानी का मन्दिर स्थित हैं ! जीवदानी का शब्दिक अर्थ होता हैं, जीवन दान देनेवाली मैया ! माँ जीवदानी भक्तों के जीवन की रक्षा करनेवाली और बड़ी ममतामयी देवी हैं !
-: अन्य चालीसा संग्रह :-
माँ शाकंभरी चालिसा
श्री ब्रह्माणी चालीसा
कामाख्या चालीसा
श्री वैष्णो देवी चालीसा
माँ अन्नपूर्णा चालीसा
*********************
श्री माँ जीवदानी चालीसा
II दोहा II
माँ जीवदानी ध्यान धरउँ,
दीजे शुभ आशीष I
बरनो यश विनती करउँ,
रहे चरन में शीश II
चौदह भुवन की स्वामिनि,
बसि पर्वत की छोर I
जन दु:ख हरनि नास करहिं,
जीवन तम अति घोर II
II चोपाई II
जय जय जगदम्बे जीवदानी I
जयती जगत जीव कल्यानी II (१)
कोटि सूर्य सम छवि आनन की I
शरण छाँव जस घन कानन की II (२)
आदि शक्ति जन मंगल करनी।
पाप ताप दुर्गुन दु:ख हरनी II (३)
आयुध नाहिं मातु करमूला I
दायँ बगल सोहे त्रिशूला II (४)
आशिर्वाद वरद कर बरसे I
जन जन पावहिं खातिर तरसे II (५)
बसी भवानी भवन विशाला I
सदा रखहिं भक्तन के ख्याला II (६)
जहँ गिरि शिखर विराजे जननी I
तहँ की शुचिता जाय न बरनी II (७)
जनश्रुति तथ्यहि अजब कहानी I
को विधि जन बोलहिं जीवदानी II (८)
करई एक कृषक चरवाही I
चक पर्वत के तलहट माहीं II (९)
चरहिं खेत महँ धेनु अनेका I
प्रतिदिन आवे सुरभि एका II (१०)
कृषिकार गौ थाह न पावै I
यह इक सुरभि कहाँ से आवै II (११)
लेबहुँ रकम आजु में गिन गिन I
अस विचार करि चला एक दिन II (१२)
चली गाय पूरब गिरि ऊपर I
ठाड भइ समतल ठाऊँ पर II (१३)
प्रगट भइ एक अदभुत नारी I
कर्षि विचारइ गाय तुम्हारी II (१४)
त्रिय स्वीकार करि कंठ हिलाई I
तब किसान कुल व्यथा सुनाई II (1५)
तब गइया मैं नित्य चराऊँ I
पर चरवाहि रकम नहिं पाऊँ II (१६)
जब धन दीन्ह लागि सुरदारा I
दुइ पग पीछे हट्यो कृषिकारा II (१७)
हूँ अछूत मैं स्वयँ कह कोसे I
को विधि ग्रहन कररो धन तोसे II (१८)
देवि सुनत भइ अन्तर्धाना I
गौ दे दीन्हि जीवनदाना II (१९)
आजहु गाय गोंठ पर्वत पर I
बोलो जय जीवदानी जोरि कर II (२०)
एहि विधि जग जननी को माने I
जनलीला जननी ही जाने II (२१)
माँ मन में अछूत कोइ नाहीं I
भक्तन वास करहिं उर माहीं II (२२)
जो कोइ मंदिर आवे मन से I
शीतल हृदय होय दर्शन से II (२३)
प्रथमहि गनपति के करि दर्शन I
चौदह सौ सीढ़ी चढ़ें भक्तन II (२४)
मुख से जय जीवदानी उचारैं I
देवि दरश करि भाग्य सँवारैं II (२५)
भैरव नाथहि शीश नवावैं I
माँ काली के दर्शन पावैं II (२६)
जीवनदान करे जीवदानी I
महिमा वेद पुरान बखानी II (२७)
मूक बली ना देहिं सयाने I
प्रबल भक्ति करि सत को जाने II (२८)
माला फूल अगर औ लाली I
सह श्रीफल पूजन के थाली II (२९)
मातु समर्पन कीजै तन से I
अहंकार बलि दीजै मन से II (३०)
हियँ श्रद्धा रखि निश्छल भक्ती I
व्रत उपवास यथा मन शक्ती II (३१)
जो जीवदानी शरन में आवे I
आधि व्याधि संकट मिट जावे II (३२)
भूत प्रेत भयभीत न करहीं I
जा के नाम सुनत सब डरहीं II (३३)
माँ जीवदानी सकल गुनरासी I
रिद्धि सिद्धि चरनन के दासी II (३४)
जो जन करे निर्मल मन भक्ति I
मइया देत महासुख शक्ति II (३५)
शरनागत भक्तन कल्यानी I
हे विरार पर्वत की रानी II (३६)
सुमिरौं भक्ति भाव से तोहें I
यहु वरदान देहु माँ मोहें II (३७)
तब छवि सदा रहे मन माहीं I
जग से कबहु प्रीति हो नाहीं II (३८)
जो जीवदानी चलीसा गावै I
कुमति छाड़ि सुन्दर मति पावै II (३९)
भक्तन शीश नवावै तोहे I
देहु भक्ति जग जननी मोहे II (४०)
II दोहा II
चहुँ फलदाइ यश तुम्हरौ,
जस गंगा की धार।
जो नित पढ़इ प्रेम सहित,
सो उतरइ भव पार II
II इति श्री माँ जीवदानी चलीसा सम्पूर्ण II
Related