अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। देवी महागौरी की पूजा और माँ महागौरी की आरती का विधान भी पूर्ववत है !
माता दुर्गा जी की आठवीं शक्ति महागौरी के नाम से जानी जाती है। देवी वर्ण पूर्णत: गौर है। इनकी गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कुन्द के फूल के सामान बताई गई है। देवी के समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं। माँ महागौरी बैल के पीठ पर विराजमान हैं।
————————————————
माँ महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। हमें सदैव माता का ध्यान करना चाहिए। माता राणी की कृपा से अलौकिक सिद्धियों आराधना करने वाले भक्तों को प्राप्ति होती है। मन से मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए।
श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेतांबर धरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा ॥
श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेतांबर धरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा ॥
वन्दे वांछित कामार्थेचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
सिंहारूढाचतुर्भुजामहागौरीयशस्वीनीम्घ्
पुणेन्दुनिभांगौरी सोमवक्त्रस्थितांअष्टम दुर्गा त्रिनेत्रम।
वराभीतिकरांत्रिशूल ढमरूधरांमहागौरींभजेम्घ्
पटाम्बरपरिधानामृदुहास्यानानालंकारभूषिताम्।
मंजीर, कार, केयूर, किंकिणिरत्न कुण्डल मण्डिताम्घ्
प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांत कपोलांचौवोक्यमोहनीम्।
कमनीयांलावण्यांमृणालांचंदन गन्ध लिप्ताम्घ् स्तोत्र
सर्वसंकट हंत्रीत्वंहिधन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदाचतुर्वेदमयी, महागौरीप्रणमाम्यहम्घ्
सुख शांति दात्री, धन धान्य प्रदायनीम्।
डमरूवाघप्रिया अघा महागौरीप्रणमाम्यहम्घ्
त्रैलोक्यमंगलात्वंहितापत्रयप्रणमाम्यहम्।
वरदाचौतन्यमयीमहागौरीप्रणमाम्यहम्घ् कवच
ओंकाररू पातुशीर्षोमां, हीं बीजंमां हृदयो।
क्लींबीजंसदापातुनभोगृहोचपादयोघ्
ललाट कर्णो, हूं, बीजंपात महागौरीमां नेत्र घ्राणों।