मंगलवार की आरती कथा-विधि : मंगलवार के व्रत की कथा और आरती किस प्रकार से कैसे करें ! हमारे सनातन में हर वार की व्रत कथा और आरती का महत्त्व बताया गया है ! सप्तवार व्रत कथा के बारे में जानने के लिए हम एक सप्तवार व्रत कथा की सीरिज ला रहे है ! इसको पढ़कर आप इसके महत्त्व को जाने !
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सर्वसुख, राज सम्मान तथा पुत्र प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत करना शुभ माना जाता है ! इस व्रत को २१ सप्ताह लगातार करना चाहिए ! लाल पुष्प, लाल चन्दन, लाल फल अथवा लाल मिष्ठान्न से हनुमान जी का पूजन करें ! लाल वस्त्र धारण करें ! कथा पढ़ने-सुनने के बाद, हनुमान चालीसा, हनुमानाष्टक तथा बजरंग बाण का पाठ करने से शीघ्र फल प्राप्त होता है !
एक ब्राह्मण दम्पत्ति के कोई सन्तान न थी ! जिस कारण पति-पत्नी दोनों दुःखी रहते थे ! एक समय वह ब्राह्मण हनुमान जी की पूजा हेतु वन में चला गया ! वहाँ वह पूजा के साथ महावीर जी से एक पुत्र की कामना किया करता था ! घर पर उसकी पत्नी भी पुत्र प्राप्ति के लिए मंगलवार का व्रत किया करती थी !
मंगल के दिन व्रत के अन्त में भोजन बनाकर हनमान जी को भोग लगाने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करती थी ! एक बार कोई दुसर व्रत बीच आ गया ! जिसके कारण ब्राह्मणी भोजन न बना सकी ! जिस कारण हनुमान जी का भोग भी नहीं लगा ! वह अपने मन में ऐसा प्रण करके सो गई कि अब अगले मंगलवार को हनुमान जी को भोग लगाकर ही अन्न ग्रहण करूँगी !
वह भूखी-प्यासी छः दिन पड़ी रही ! मंगलवार के दिन उसे मूर्छा आ गई ! हनुमान जी उसकी लगन और निष्ठा को देखकर प्रसन्न हो गए ! उन्होंने उसे दर्शन दिए और कहा- मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ ! मैं तुम्हें एक सुन्दर बालक का वरदान देता हूँ ! जो तेरी बहुत सेवा किया करेगा !
एक बुढ़िया माई थी ! वह मंगल देवता को अपना इष्ट देवता मानकर सदैव मंगल का व्रत रखती और मंगलदेव का पूजन किया करती थी ! उसका एक पुत्र था जो मंगलवार को उत्पन्न हआ था ! इस कारण वह उसको मंगलिया के नाम से पुकारा करती थी ! मंगलवार के दिन न तो घर को लीपती और न ही पृथ्वी खोदा करती !
एक दिन मंगल देवता उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने के लिए साधु का रूप धारण कर आए ! और उसके द्वार पर आकर आवाज दी ! बढ़िया माई घर से बाहर आई और साधू को खड़ा देख हाथ जोड़कर बोली ‘महाराज क्या आज्ञा है ! साधू ने कहा-‘मुझे बहुत भूख लगी है ! भोजन बनाना है ! इसके लिए तू थोड़ी-सी पृथ्वी लीप दे ! तो तेरा पुण्य होगा !
जो कुछ भी मैं कहूँगा सब तुमको करना होगा ! बुढ़िया कहने लगी-महाराज पृथ्वी लीपने के अलावा जो भी आप आज्ञा करेंगे उसका मैं अवश्य पालन करूँगी ! बुढ़िया माई ने ऐसा वचन तीन बार दिया ! तब साधु ने कहा-‘तू अपने लड़के को बुलाकर औंधा लिटा दे ! मैं उसकी पीठ पर भोजन बनाऊँगा !
साधू की बात सुनकर बुढ़िया चुप रह गई ! तब साधू ने कहा- बुला लड़के को, अब सोच-विचार क्या करती है ! बुढ़िया माई मंगलिया, मंगलिया कहकर अपने पत्र को पुकारने लगी ! थोड़ी देर बाद उसका लड़का आ गया ! बुढ़िया ने कहा- जा बेटे तुझको बाबाजी बुलाते हैं !
लड़के ने बाबाजी से जाकर पूछा- क्या आज्ञा है महाराज? बाबाजी ने कहा कि जाओ अपनी माताजी को बुला लाओ ! जब माता आ गई तो साधु ने कहा कि तू ही इसको लिटा दे ! बुढ़िया ने मंगल देवता का स्मरण करते हुए लड़के को औंधा लिटा दिया ! और उसकी पीठ पर अंगीठी रख दी !
बढ़िया कहने लगी कि यह कितने आश्चर्य की बात कि उसकी पीठ पर आपने आग जलाई और उसी को प्रसाद के लिए बुलाते हो ! क्या यह सम्भव है, कि अब भी आप उसको जीवित समझते हैं ! आप कृपा कर उसका स्मरण भी मुझको न कराइए और भोग लगाकर जहाँ जाना हो जाइये !
साधू द्वारा आग्रह करने पर बुढ़िया ने ज्योंही मंगलिया कहकर अपने पुत्र को आवाज लगाई ! त्योंही वह एक ओर से दौड़ता हुआ आ गया ! साधू ने लड़के को प्रसाद दिया और कहा-माई तेरा व्रत सफल हो गया ! तेरे हृदय में दया है ! और अपने इष्टदेव में अटल श्रद्धा है ! इसके कारण तुझको कभी कोई कष्ट नहीं पहुँचेगा !
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