भगवान आदिनाथ चालीसा हिंदी में
Adinath Chalisa in Hindi
भगवान आदिनाथ चालीसा : ऋषभदेव जी को आदिनाथ भी कहा जाता है। जैन धर्म पुराणों के मतानुसार अन्तिम कुलकर राजा नाभिराज के पुत्र के रूप में ऋषभदेव जी का जन्म हुआ था।
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भगवान आदिनाथ चालीसा
II दोहा II
शीश नवा अरिहंत को,
सिद्धन करूं प्रणाम I
उपाध्याय आचार्य का,
ले सुखकारी नाम II (१)
सर्व साधु और सरस्वती,
जिन मन्दिर सुखकार I
आदिनाथ भगवान को,
मन मन्दिर में धार II (२)
II चौपाई II
जय जय आदिनाथ जिन के स्वामी I
तीनकाल तिहूं जग में नामी II (1)
वेष दिगम्बर धार रहे हो I
पाप कर्मों को मार रहे हो II (2)
हो सर्वज्ञ बात सब जानो I
सारी दुनिया को तुम पहचानो II (3)
नगर अयोध्या जो कहलाये I
राजा नभिराज बतलाये II (4)
मरूदेवी माता के उदर से I
चैतबदी नवमी को जन्मे II (5)
तुमने जग को ज्ञान सिखाया I
कर्मभूमी का बीज उपजाया II (6)
कल्पवृक्ष जब लगे बिछरने I
जनता आई दु:खडा कहने II (7)
सब का संशय तभी भगाया I
सूर्य चन्द्र का ज्ञान कराया II (8)
खेती करना भी सिखलाया I
न्याय दण्ड आदिक समझाया II (9)
तुमने राज किया नीती का I
सबक आपसे जग ने सीखा II (10)
पुत्र आपका भरत बतलाया I
चक्रवर्ती वो जग में कहलाया II (11)
बाहुबली जो पुत्र तुम्हारे I
भरत से पहले मोक्ष सिधारे II (12)
सुता आपकी दो बतलाई I
ब्राह्मी और सुन्दरी कहलाई II (13)
उनको भी विध्या सिखलाई I
अक्षर और गिनती बतलाई II (14)
इक दिन राज सभा के अंदर I
एक अप्सरा नाच रही थी II (15)
आयु बहुत बहुत अल्प थी I
इसलिय आगे नही नाच सकी थी II (16)
विलय हो गया उसका सत्वर I
झट आया वैराग्य उमड़ कर II (17)
बेटों को झट पास बुलाया I
राज पाट सब में बटवाया II (18)
छोड़ सभी झंझट संसारी I
वन जाने की करी तैयारी II (19)
राजा हजारो साथ सिधाए I
राजपाट तज वन को धाये II (20)
लेकिन जब तुमने तप कीना I
सबने अपना रस्ता लीना II (21)
वेष दिगम्बर तज कर सबने I
छाल आदि के कपडे पहने II (22)
भूख प्यास जब भी सताये I
फल आदिक खा भूख मिटाये II (23)
तीन सौ त्रेसठ धर्म फैलाये I
जो जब दुनिया में दिखलाये II (24)
छः महिने तक ध्यान लगाये I
फिर भोजन करने को धाये II (25)
भोजन विधि जाने न कोय I
कैसे प्रभु का भोजन होय II (26)
इसी तरह चलते चलते I
छः महिने भोजन को बीते II (27)
नगर हस्तिनापुर में आये I
राजा सोम श्रेयांस बताये II (28)
याद तभी पिछला भव आया I
तुमको फौरन ही पडगाया II (29)
रस गन्ने का तुमने पाया I
दुनिया को उपदेश सुनाया II (30)
तप कर केवल ज्ञान पाया I
मोक्ष गए सब जग हर्षाया II (31)
अतिशय युक्त तुम्हारा मन्दिर I
चांद खेड़ी भंवरे के अंदर II (32)
उसको यह अतिशय बतलाया I
कष्ट क्लेश का होय सफाया II (33)
मानतुंग पर दया दिखाई I
जंजिरे सब काट गिराई II (34)
राज सभा में मान बढाया I
जैन धर्म जग में फैलाया II (35)
मुझ पर भी महिमा दिखलाओ I
कष्ट भक्त का दूर भगाओ II (36)
पाठ करे चालीस दिन I
नित चालीस ही बार II (37)
चांद खेड़ी में आयके I
खेवे धूप अपार II (38)
जन्म दरिद्री होय जो I
होय कुबेर समान II (39)
नाम वंश जग में चले I
जिसके नही संतान II (40)
II इति श्री आदिनाथ चालीसा समाप्त II
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