मां दुर्गा के अनेक स्वरूपों में एक स्वरूप पहाड़ी माता का मन्दिर PAHADI MATA KA MANDIR2 के नाम प्रसिद्ध हैं ! यहां पर आपको बताएंगे कहां पर स्थित है मां का यह दरबार ! कब लगता हैं मां का मेला और क्या रहता हैं मेले में आकर्षण ! क्या है माता के इस मंदिर की विशेषता ! कौन-कौन सी जातियां मानती है माता को कुलदेवी ! और क्या है माता की प्रचलित कथा ! सब बातों की जानकारी हम यहां पर करेंगे !
साल में दो बार नवरात्रों में पहाड़ी माता का मन्दिर PAHADI MATA KA MANDIR2 मेले लगते हैं । इस अवसर पर प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में देशभर से दर्शन करने के लिए पहुंच जाते हैं ! भारी संख्या में बच्चें एवं महिलाएं और काफी सख्यां में श्रद्धालु दूर-दराज के क्षेत्रों से आते हैं। कुलदेवी के मन्दिर में मत्था टेकने के लिए प्रत्येक वर्ष नवरात्रों के मेले में पैदल यात्री पहुंचते हैं ! यहां साल के 12 महीने भंडारे चलते रहते हैं तथा 12 महीने अखंड ज्योत जलती रहती है। यहां चैत्र व अश्विनी महीने की सप्तमी,अष्ठमी तथा नवमी को मेला लगता हैं। मेले में कुश्ती, दंगल व ऊंट दौड़ का मजेदार आयोजन होता है ! नवरात्रों में आयोजित होने वाले सात दिवसीय कार्यक्रम बड़ा महत्व हैंं। इस में पूजा पाठ, मेंहदी महोत्सव, डांडिया नृत्य, चुनरी महोत्सव, भजन and संगीत सहित अनेक कार्यक्रम किए जाते हैं।
because मंदिर में दर्शनार्थियों को चढ़ने इतने में उतरने में धक्का-मुक्की ना हो ! इसके लिए सीढी़यो की चौड़ाई भी अच्छी बनाई गई है ! बुजुर्गों और बच्चों को ध्यान में रखते हुए सीढी़यो की ऊंचाई कम रखी गई हैं ! जिससे चढ़ाई में किसी भी प्रकार की परेशानी ना हो ! so पहाड़ों की इतनी ऊंचाई होने के बावजूद भी मंदिर परिसर में पानी की पूरी व्यवस्था खयाल रखा गया हैं ! मंदिर परिसर में मंदिर की ओर से सफाई व्यवस्था का भी पूरा ख्याल रखा हैंं, अगर आपने पहले कभी इस मंदिर के दर्शन नहीं किए हैं ! तो एक बार आपको इस मंदिर के दर्शन जरूर करने चाहिए !
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राजस्थान का काजडिया वंश माता को अपनी कुल देवी मानते है ! काजड़िया परिवार ने माता के यहां भक्तों के ठहरने के लिए अनेक भवन and धर्मशालाएं बनवाई है। यहां आने वाले भक्त माता के दर्शनों के साथ अपने नवजात शिशुओं का मुंडन संस्कार भी यहीं करते है। बच्चों के मुंडन संस्कार में सवामणी का भोग भी माता रानी को लगाया जाता हैं! बच्चों के मुंडन संस्कार करने वाले भक्तजन माता के यहां पर रातीजोगा भी देते हैं and माता रानी के गीत भी रात को गाए जाते हैं। सुबह स्नान वगैरह करके माता रानी के दर्शन करने के पश्चात वहां से रवाना होते हैं।
माता रानी को कुलदेवी के रूप में सर्वजातीय लोग मानने हैंं। श्योराण खाप से जुड़े सभी जातियों व गोत्रों के लोगों तो मानते ही हैं ! इनके अलावा काजडिय़ा, माधो गढिय़ा, छपारिया, नकीपुरिया, राजपूत व अन्य जातियां भी शामिल है ! नवरात्रों के मेले में काजरिया परिवार कुलदेवी के मन्दिर में पहुंचने वाले लोगों की सेवा करते हैं। दिल्ली के तोमर वंश के राजा व राजपरिवार भी माता का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए यंहा आते थे !
एक प्रचलित कथा के अनुसार एक बार डाकुओं का गिरोह मंदिर में पहुंचा ! तो मंदिर में माता की प्रतिमा पर स्वर्ण आभूषण देखकर उनके मन में लालच आ गया ! उन्होंने इस मंदिर को लूटने की योजना बनाई ! इस उद्देश्य से उन्होंने माता की प्रतिमा को खंडित कर दिया ! वे स्वर्ण आभूषण उठाकर चले ही थे but वे सफल नहीं हो पाए ! माता रानी ने अंधा कर दिया । परिणामस्वरूप वे पहाड़ी से उतरते समय वहीं पर गिर गए ! ओर उनकी वहीं पर मृत्यु हो गई । जहां डाकू गिरकर मरे थे वहां अब नकीपुर गांव बसा है।
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जय मां पहाड़ो वाली मया की
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