आज माता का पावन द्वितीय नवरात्रा है ! आज के दिन नवरात्रों में द्वितीय पुजा मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है ! आपको व आपके परिवार को आज के पावन पर्व की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं ! यहां ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी से हैं !
मां ने भगवान शंकर को अपने पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी ! घोर तपस्या करने के कारण मां का नाम तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से भी विख्यात हैं !
माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं ! देवी मां ने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की कठोर तपस्या की थीं ! जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया !
जिसके फलस्वरूप देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी ! जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं उन्हें इस देवी की पूजा से सहज यह सब प्राप्त हो जाता हैं !
देवी का दूसरा स्वरूप योग साधक को साधना के केन्द्र के उस सूक्ष्मतम अंश से साक्षात्कार करा देता हैं ! जिसके पश्चात व्यक्ति ऐन्द्रियां को अपने नियंत्रण में कर सकता हैं ! और द्वितीय पुजा मां ब्रह्मचारिणी की करने से साधक अपनी साधना से मोक्ष को प्राप्त कर लेता हैं ।
माँ ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा की पंचोपचार सहित पूजा करके जो साधक स्वाधिष्ठान चक्र को मन को स्थापित करता हैं ! उसकी साधना सफल हो जाती हैं ! और उस साधक की कुण्डलनी शक्ति जागृत हो जाती हैं !
जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से मॉ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं ! उस साधक को सुख, आरोग्य की प्राप्ति होती हैं ! और प्रसन्न रहता हैं, तथा उसे किसी प्रकार का भय नहीं सताता !
ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय हैं ! मां दुर्गा की नौ शक्तियों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी का हैं। ! ब्रह्म का अर्थ हैं, तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली ! अर्थात तप का आचरण करने वाली मां ब्रह्मचारिणी !
यह देवी शांत और निमग्न होकर तप में लीन रहती हैं ! मुख पर कठोर तपस्या के कारण अद्भुत तेज और कांति का ऐसा अनूठा संगम हैं ! द्वितीय पुजा मां ब्रह्मचारिणी की जो तीनों लोको को उजागर करता हैं !
इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली देवी ! आदिशक्ति मां भगवती ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला हैं , और बायें हाथ में कमण्डल ! देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का ही स्वरूप हैं !
तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा आदी ! इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में स्थित रहता हैं ! इस चक्र में अवस्थित साधक मां ब्रह्मचारिणी की कृपा और भक्ति को प्राप्त करता हैं ! इसलिए नवरात्रों में द्वितीय पुजा मां ब्रह्मचारिणी की होती हैं !
देवी दुर्गा का यह रूप भक्तों एवं साधको को अनंत फल देने वाला हैं ! नवरात्रों में द्वितीय पुजा मां ब्रह्मचारिणी की पूजा और अर्चना की जाती हैं ! जो दोनो कर-कमलो मे अक्षमाला एवं कमंडल धारण करती हैं !
इस दिन साधक अपना ध्यान माँ के चरणों में लगाते हैं ! देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती हैं ! माँ ब्रह्मचारिणी के आशीर्वाद से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती हैं !
तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता हैं ! माँ मुझसे पर अति प्रसन्न हों, साधक को ऐसी कामना करनी चाहिए ! आदिशक्ति माँ ब्रह्मचारिणी सदैव अपने भक्तो पर कृपादृष्टि रखती हैं ! एवं सम्पूर्ण कष्ट दूर करके मंगल कामनाओ की पूर्ति करती हैं !
माँ ब्रहमचारिणी की पूजा में आप मटमैले रंग के वस्त्रों का प्रयोग कर सकते हैं ! “राहु शांति पूजा के लिए” यह दिन सर्वोत्तम हैं ! द्वितीय नवरात्र के दिन माँ ब्रह्मचारिणी को शक्कर का भोग लगाएँ, इससे आयु में वृद्धि होती हैं !
इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं ! जिससे उनका जीवन सफल हो सके ! और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें !
आपने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को आमत्रित किया हैं ! उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें ! उन्हें पंचामृत से स्नान करायें ! देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं, उसमें से इन्हें भी अर्पण करें !
प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें ! कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह आदी देवता की पूजा करें ! इनकी पूजा के पश्चात मॉ ब्रह्मचारिणी की पूजा करें !
देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें ! इसके पश्चात् देवी को पंचामृत स्नान करायें ! फिर फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर, अर्पित करें ! देवी को अरूहूल का फूल (लाल रंग का एकविशेष फूल) काफी पसंद हैं, उनकी माला पहनायें !
प्रसाद और आचमन के पश्चात् पान, सुपारी भेंट करें ! नवरात्री में दुर्गा सप्तशती पाठ किया जाता हैं !
माता ब्रह्मचारिणी के मंत्रो का कम से कम 21 बार जाप अवश्य करें ! साथ ही आपका स्वाधिष्ठान चक्र तो जाग्रत होगा ही, आपके धन-धान्य, ऐश्वर्य और सौभाग्य में वृद्धि भी होगी !
और आपको आरोग्य, ऐश्वर्या, मान-सम्मान तथा मोक्ष की प्राप्ति भी होगी ! पूजा समाप्ति के बाद आपको माता रानी की आरती अवश्य करनी चाहिए ! और घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें !
माता ब्रह्मचारिणी की आरती
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता, जय चतुरानन प्रिय सुख दाता ।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो, ज्ञान सभी को सिखलाती हो ।।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।, जिसको जपे सकल संसारा ।
जय गायत्री वेद की माता।, जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता ।।
कमी कोई रहने न पाए।, कोई भी दुख सहने न पाए ।
उसकी विरति रहे ठिकाने।, जो तेरी महिमा को जाने ।।
रुद्राक्ष की माला ले कर।, जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर ।
आलस छोड़ करे गुणगाना।, मां तुम उसको सुख पहुंचाना ।।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।, पूर्ण करो सब मेरे काम ।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी। , रखना लाज मेरी महतारी ।।
अंत में क्षमा प्रार्थना करें
“आवाहनं न जानामि न जानामि वसर्जनं ।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरी ।।
आपने माता ब्रह्मचारिणी की समस्त जानकारी यहां तक पढ़ी ! माता रानी आपकी सभी मनोकामना पूरी करें ! इन नवरात्रों में आपका वैभव, ऐश्वर्या व धन-धान से माता रानी भंडार भरे ! ऐसी मनोकामना हम मां ब्रह्मचारिणी से करते हैं !
आपको यह जानकारी कैसी लगी कमेंट में जरूर बताना ! सनातन की इस जानकारी को अधिक से अधिक शेयर करना ! इस लेख में दी गई जानकारियां धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं !
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