आज नरात्री का तृतीय दिवस है ! नवरात्रों में तृतीय पुजा मां चंद्रघंटा की साधना, उपासना, पूजन के बारे में जानेगें ! माँ दुर्गा की तृतीय शक्ति का नाम चंद्रघंटा है ! नवरात्रि विग्रह के तीसरे दिन इन का पूजन किया जाता है ! माता का यह स्वरूप भक्तों के लिए शांतिदायक और कल्याणकारी है !
इनके माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण माँ दुर्गा के इस स्वरूप को चंद्रघंटा कहा जाता है ! चन्द्रघंटा देवी का स्वरूप तपे हुए स्वर्ण के समान कांतिमय है ! चेहरा शांत एवं सौम्य और मुख पर सूर्यमंडल की आभा छिटक रही होती है !
माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र होने की वजह से देवी का नाम चन्द्रघंटा हो गया है । नवरात्रों में तृतीय पुजा मां चंद्रघंटा की होती है, इस स्वरूप में देवी के दस हाथ हैं ! दसों हाथों में खड्ग, बाण, चक्र, भाला, फरसा, गद्दा, त्रिशूल आदि शस्त्र सुशोभित हैं।
देवी का वाहन सिंह है ! इनकी मुद्रा युद्ध के लिए तत्पर रहने वाली है ! इनके घंटे की भयानक ध्वनि से दानव, अत्याचारी, दैत्य, राक्षस भय से कांपते हैं। ! नवरात्र की तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्त्व है ! सिंह वाहन पर सवार माता की उपासना करने वाला उपासक सिंह की तरह पराक्रमी और निर्भय हो जाता है !
घंटे की ध्वनि से देवी सदा अपने भक्तों की सदैव रक्षा करती है ! दुष्टों का दमन और विनाश करने के बाद भी माता का स्वरूप साधक के लिए अत्यंत सौम्यता व शीतल रहता है।
इस दिन साधक का मन मणिपुर चक्र में प्रविष्ट होता है ! साधक को मां चंद्रघंटा का अलौकिक दर्शनों का अनुभव होता हैं ! दिव्य सुगन्ध और विविध प्रकार की ध्वनियाँ सुनायी देती हैं ! साधक के लिए इस दिन अत्यंत सावधान व संयम से साधना करने का होता है !
माँ चन्द्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएँ विनष्ट हो जाती हैं ! इनकी अराधना सदैव फलदायी होती है ! अत: भक्तों के कष्ट का निवारण ये शीघ्र कर देती हैं !
देवी कि अराधना से साधक में वीरता-निर्भरता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होता है ! साधक के मुख, नेत्र तथा सम्पूर्ण शरिर में कान्ति-गुण की वृद्धि होती है ! स्वर में दिव्य, अलौकिक, माधुर्य का समावेश हो जाता है ! माँ चन्द्रघंटा के साधक और उपासक निर्भय होकर कहीं भी भ्रमण करते हैं !
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देवी कि उपासना से साधक समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त होकर सहज ही परमपद के अधिकारी बन ते हैं । हमें निरन्तर माता के पवित्र विग्रह को ध्यान में रखते हुए साधना की ओर ध्यान रखना चाहिए !
मां की कृपा दृष्टि हमारे इस लोक और परलोक दोनों के लिए परम कल्याणकारी है। माँ चंद्रघंटा की कृपा से साधक की समस्त बाधायें दूर हो जाती हैं। साधक के शरीर से दिव्य प्रकाशयुक्त परमाणुओं का अदृश्य विकिरण होता है !
यह दिव्य क्रिया साधारण नेत्रो से दिखलायी नहीं देती, किन्तु साधक और साधक के सम्पर्क में आने वाले लोग इसका अनुभव भलीभांति कर लेते हैं ! साधक को चाहिए कि अपने मन, वचन, कर्म एवं काया को शुद्ध एवं पवित्र करके उनकी उपासना-अराधना में तत्पर रहे ।
जो साधक योग साधना कर रहे हैं ! उनके लिए यह दिन बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है ! इस दिन साधक कुण्डलनी जागृत करने हेतु स्वाधिष्ठान चक्र से एक चक्र आगे बढ़कर मणिपूरक चक्र का अभ्यास करते हैं ! इस दिन साधक का मन मणिपूर चक्र में प्रविष्ट होता है !
देवी की पंचोपचार सहित पूजा करने के बाद उनका आशीर्वाद प्राप्त कर योग का अभ्यास करने से साधक को अपने प्रयास में आसानी से सफलता मिलती है !
तीसरे दिन की पूजा का विधान भी लगभग उसी प्रकार है जो दूसरे दिन की पूजा का है ! इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता, तीर्थों, योगिनियों, नवग्रहों, दशदिक्पालों एवं नगर देवता की पूजा अराधना करें !
फिर माता के परिवार के देवता, गणेश , लक्ष्मी , विजया, कार्तिकेय , देवी सरस्वती, एवं जया नामक योगिनी की पूजा करें ! फिर देवी चन्द्रघंटा की पूजा अर्चना करें !
देवी चन्द्रघंटा की भक्ति से आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्राप्त होती है ! जो व्यक्ति माँ चंद्रघंटा की श्रद्धा एवं भक्ति भाव सहित पूजा करता है ! उस पर मां की कृपा शीघ्र होती है ! जिससे वह संसार में यश, कीर्ति एवं सम्मान प्राप्त करता है !
साधक के शरीर से अदृश्य उर्जा का विकिरण होता रहता है ! जिससे वह जहां भी जाता हैं, वहां का वातावरण पवित्र और शुद्ध हो जाता है ! इनके घंटे की ध्वनि सदैव भक्तों की प्रेत-बाधा आदि से रक्षा करती है !
तथा उस स्थान से भूत, प्रेत एवं अन्य प्रकार की सभी बाधाएं दूर हो जाती है ! समस्त भक्तजनों को देवी चंद्रघंटा की वंदना करना चाहिए !
या देवी सर्वभूतेषु चन्द्रघंटा रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
मां चंद्रघंटा का बीज मंत्र है
ऐं श्रीं शक्तयै नम:
माता चन्द्रघंटा के मंत्रो का कम से कम 21 बार जाप अवश्य करें ! साथ ही आपका स्वाधिष्ठान चक्र तो जाग्रत होगा ही, आपके धन-धान्य, ऐश्वर्य और सौभाग्य में वृद्धि भी होगी !
और आपको आरोग्य, ऐश्वर्या, मान-सम्मान तथा मोक्ष की प्राप्ति भी होगी ! पूजा समाप्ति के बाद आपको माता रानी की आरती अवश्य करनी चाहिए ! और घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें !
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम, पूर्ण कीजो मेरे काम ।
चंद्र समान तू शीतल दाती, चंद्र तेज किरणों में समाती ।।
क्रोध को शांत बनाने वाली, मीठे बोल सिखाने वाली ।
मन की मालक मन भाती हो, चंद्र घंटा तुम वरदाती हो ।।
सुंदर भाव को लाने वाली, हर संकट मे बचाने वाली ।
हर बुधवार जो तुझे ध्याये, श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय ।।
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं, सन्मुख घी की ज्योत जलाएं ।
शीश झुका कहे मन की बाता, पूर्ण आस करो जगदाता ।।
कांची पुर स्थान तुम्हारा, करनाटिका में मान तुम्हारा ।
नाम तेरा रटू महारानी, ‘भक्त’ की रक्षा करो भवानी ।।
महादेवी, महाशक्ति चन्द्रघंटा को मेरा बारम्बार प्रणाम है. इस प्रकार की स्तुति एवं प्रार्थना करने से देवी चन्द्रघंटा की प्रसन्नता प्राप्त होती है !
आपने माता चंद्रघंटा की समस्त जानकारी यहां तक पढ़ी ! माता रानी आपकी सभी मनोकामना पूरी करें ! इन नवरात्रों में आपका वैभव, ऐश्वर्या व धन-धान से माता रानी भंडार भरे ! ऐसी मनोकामना हम मां ब्रह्मचारिणी से करते हैं !
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