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माँ महागौरी की आरती I - - कालरात्रि माता की आरती I - कात्यायनी माता की आरती I - माँ स्कंदमाता की आरती I - माँ चंद्रघंटा की आरती I - माँ ब्रह्मचारिणी की आरती I - माँ शैलपुत्री की आरती I - कौवे के बारे में 30 रोचक तथ्य I Amazing 30 Facts About Crow - कुत्ते के बारे में 70 रोचक तथ्य I
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नवरात्रा के चोथे दिन मां कूष्माण्डा की पुजा

 

नवरात्रा के चोथे दिन मां कूष्माण्डा की पुजा होती जाती है ! संस्कृत भाषा में “कूष्माण्ड” कूम्हडे को कहा जाता है ! माता को कूम्हडे की बलि अप्रिय है, इस कारण से भी इन्हें कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है ! जब सृष्टि रचना नहीं हुई थी, और चारों ओर अंधकार ही अंधकार था ! तब इन्होंने संपूर्ण ब्रह्माण्ड की रचना की थी ! यह देवी सृष्टि की आदिस्वरूपा और आदिशक्ति भी है ! इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर के लोक में है ! सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है ! कुष्मांडा देवी के शरीर की चमक भी सूर्य के समान ही है ! कोई और देवी देवता इनके तेज और प्रभाव की बराबरी नहीं कर सकतें ! मां कूष्माण्डा तेज की देवी है, इन्ही के तेज और प्रभाव से दसों दिशाओं को प्रकाश मिलता है ! सारे ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में जो तेज है, वो देवी कूष्माण्डा की देन है !

:- कौन थी मां कूष्माण्डा :-

नवरात्रा के चोथे दिन मां कूष्माण्डा की पुजा करते हैं, वो देवी कौन हैं ! शिव महापुराण की मान्यता के अनुसार भगवान शंकर की पत्नी सती के मायके में उनके पिता राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था ! इसमें राजा दक्ष की और से सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया गया था। मगर भगवान शंकर को नहीं बुलाया गया ! इस बात से सती रुष्ट होकर भगवान शंकर की मर्जी के खिलाफ उस यज्ञ में शामिल  होने ने चली गईं ! राजा दक्ष ने माता सती को भगवान शंकर के बारे में भला-बुरा कहा ! जिससे क्रोधित होकर माता सती ने यज्ञ में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी ! माता सती के नौ अंश अलग-अलग स्थानों पर गिरे थे ! कहा जाता है कि सती का चौथा अंश कानपुर शहर से लगभग 60-65 किमी दूर घाटमपुर में गिरा था ! तब से ही यहां माता कूष्माण्डा विराजमान हैं 1

:- मां कूष्माण्डा का परिचय :-

नवरात्रा के चोथे दिन मां कूष्माण्डा की पुजा क्यों होती हैं ! इनकी आठ भुजायें हैं इसीलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है ! इनके सात हाथों में :- कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है ! आठवें हाथ में सभी सिध्दियों और निधियों को देने वाली जपमाला है ! कूष्माण्डा देवी अल्पसेवा और अल्पभक्ति से ही प्रसन्न हो जाती हैं ! यदि साधक सच्चे मन से इनकी शरण में चलें जाये तो उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो जाती है ! देवी कूष्माण्डा का वाहन सिंह है !

:- माता कूष्माण्डा कि साधना :-

 साधक को कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी कि साधना विधिवत रूप से करनी चाहिए ! इस दिन साधक का मन ” अनाहत चक्र ” में स्थित होता है ! अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप का ध्यान करना चाहिए ! समर्पित भाव से चौथे दिन माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए ! फिर मन को ” अनाहत ” में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए ! और निडर होकर साधना में बैठना चाहिए ! इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें देवी कूष्माण्डा सफलता का वरदान देती हैं ! जिससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है !

ये लेख भी अवश्य पढ़ें :-

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क्यों जरुरी है मां कुष्माण्डा की पूजा ?

 इनकी आराधना-पूजा से मनुष्य अनेक जन्मों के पाप कर्मों से मुक्त हो जाता है ! श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं ! माँ कुष्माण्डा की पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं ! इस दिन पवित्र मन से माँ के स्वरूप को ध्यान में रखकर विधिवत सच्चे मन से पूजा करने पर घर में सुख शांति, मान-सम्मान एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है ! माँ देवी कुष्माण्डा सदैव अपने भक्तों पर अथाह कृपा दृष्टि बनाये रखती है !

:- देवी कुष्माण्डा की पूजा विधि :-

दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा का विधान उसी प्रकार है ! जिस प्रकार मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी और मां चन्द्रघंटा की पूजा की जाती है ! इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी देवता की पूजा करें ! फिर माता के परिवार में शामिल देवी देवता की पूजा करें ! जो देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विरजामन हैं ! इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्माण्डा की पूजा करे ! पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें -: सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।

 देवी कूष्मांडा के मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कूष्‍मांडा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

 माता कूष्माण्डा के मंत्रो का कम से कम 21 बार जाप अवश्य करें ! साथ ही आपका अनाहत चक्र तो जाग्रत होगा ही, आपके धन-धान्य, ऐश्वर्य और सौभाग्य में वृद्धि भी होगी ! और आपको आरोग्य, ऐश्वर्या, मान-सम्मान तथा मोक्ष की प्राप्ति भी होगी ! पूजा समाप्ति के बाद आपको माता रानी की आरती अवश्य करनी चाहिए !

देवी कुष्माण्डा की आरती :-

आद्य शक्ति कहते जिन्हें, अष्टभुजी है रूप ।
इस शक्ति के तेज से कहीं छांव कहीं धूप ॥

कुम्हड़े की बलि करती है तांत्रिक से स्वीकार ।
पेठे से भी रीझती सात्विक करें विचार ॥

क्रोधित जब हो जाए यह उल्टा करे व्यवहार ।
उसको रखती दूर मां, पीड़ा देती अपार ॥

सूर्य चंद्र की रोशनी यह जग में फैलाए ।
शरणागत की मैं आया तू ही राह दिखाए ॥

अपने भक्तों पर मां तुम कृपा दृष्टि रखना । 
जय जय मां कूष्माण्डा जय जय मां कृपा करना  ॥

आपने माता कूष्माण्डा की समस्त जानकारी यहां तक पढ़ी ! माता रानी आपकी सभी मनोकामना पूरी करें ! इन नवरात्रों में आपका वैभव, ऐश्वर्या व धन-धान से माता रानी भंडार भरे ! ऐसी मनोकामना हम मां कूष्माण्डा से करते हैं !

आपको यह जानकारी कैसी लगी कमेंट में जरूर बताना सनातन की इस जानकारी को अधिक से अधिक शेयर करना ! इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं !

नवरात्रों में हम मां दुर्गा के प्रत्येक दिन के स्वरूप की एक वेब सीरीज ला रहे हैं ! उसे तुरंत पाने के लिए ब्लॉग को सब्सक्राइब जरूर करें ! जिससे आपको मां दुर्गा की नवरात्र में पूरी जानकारी मिल सके !

“जय माता दी”

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1 Comment

  1. पाँचवाँ नवरात्रों में पुजा मां स्कंदमाता की / धर्म-कर्म/blogalien » BlogAlien says:
    April 17, 2021 at 9:47 am

    […] नवरात्रा के चोथे दिन मां कूष्माण्डा क… […]

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