श्री भगवान धन्वंतरि जी की आरती हिंदी में
धन्वंतरि जी की आरती : समुद्र के मंथन से उत्पन्न विष का भगवान शंकर जी ने विषपान किया था ! और श्री धन्वंतरि जी ने समुद्र के मंथन से अमृत प्रदान किया ! इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज कर आयुर्वेद की रचना की थी !
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भगवान श्री धन्वंतरि जी की आरती
ॐ जय धन्वंतरि देवा,
स्वामी जय धन्वन्तर देवा I
जरा-रोग से पीड़ित,
जन-जन सुख देवा II
ॐ जय धन्वंतरि देवा.. (1)
तुम समुद्र से निकले,
अमृत कलश लिए I
देवासुर के संकट,
आकर दूर किए II
ॐ जय धन्वंतरि देवा..(2)
आयुर्वेद बनाया,
जग में फैलाया।
सदा स्वस्थ रहने का,
साधन बतलाया।।
ॐ जय धन्वंतरि देवा..(3)
भुजा चार अति सुंदर,
शंख सुधा धारी I
आयुर्वेद वनस्पति से,
शोभा अति भारी II
ॐ जय धन्वंतरि देवा.. (4)
तुम को जो नित ध्यावे,
रोग नहीं आवे I
असाध्य रोग भी उसका,
निश्चय मिट जावे II
ॐ जय धन्वंतरि देवा.. (5)
हाथ जोड़कर प्रभुजी,
दास खड़ा तेरा I
वैद्य-समाज तुम्हारे,
चरणों का घेरा II
ॐ जय धन्वंतरि देवा.. (6)
धन्वंतरिजी की आरती,
जो कोई नर गावे I
रोग-शोक न आए,
सुख-समृद्धि पावे II
ॐ जय धन्वंतरि देवा.. (7)
ॐ जय धन्वंतरि देवा,
स्वामी जय धन्वंतरि देवा I
जरा-रोग से पीड़ित,
जन-जन सुख देवा II
ॐ जय धन्वंतरि जी देवा.. (8)
II इति श्री भगवान धन्वंतरि जी की आरती सम्पूर्ण II
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे ! इसलिए दीपावली से पूर्व इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है ! जैन धर्म में धनतेरस को ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ भी कहते हैं।
भगवान श्री धन्वंतरी की साधना के लिये मंत्र
ॐ धन्वंतरये नमः
ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतरये
अमृतकलशहस्ताय सर्वभयविनाशाय सर्वरोगनिवारणाय,
त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णुस्वरूपाय,
श्रीधन्वंतरीस्वरूपाय श्रीश्रीश्री औषधचक्राय नारायणाय नमः
ॐ नमो भगवते धन्वन्तरये अमृतकलशहस्ताय सर्व आमय,
विनाशनाय त्रिलोकनाथाय श्रीमहाविष्णुवे नम:
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