मां की पूजा में ज्योति जगाने (जलाने) का सम्बन्ध देवी के ज्योति-अवतार से हैं ! देवताओं के अहंकार का नाश करने के लिए देवी ने ज्योति-अवतार धारण किया ! कहते हैं की यही ज्योति-अवतार मां ज्वाला माता के रूप में आज भी प्रगट हैं ! और क्या कारण हैं की नवरात्रों में देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जाती हैं ! आगे हम ज्योति-अवतार के बारे में आगे हम विस्तार से जानेंगे !
देवी के वचन सुनकर देवताओं को अपनी गलती का एहसास हुआ ! और वे अहंकार रूपी असुर से ग्रस्त होने से बच गये ! उन्होंने महाशक्ति जगदंबा से क्षमा मांगकर देवी को प्रसन्न किया ! और कहा कि माते: आप ऐसी कृपा करो कि हमें कभी अहंकार न आए !
देवी त्था:स्तु कहकर वहां से अंतर्ध्यान हो गई ! और देवताओं ने मां “ज्योति-अवतार” स्वरूप ज्योति की आराधना की ! तब से देवी की पूजा,नवरात्रो व जागरण आदि में माता के ज्योति-अवतार के रूप में ज्योति या अखण्ड ज्योति जगायी जाती है !
नवरात्र में प्रतिदिन देवी की ज्योति जगाकर उसमें लोंग का जोड़ा, बताशा, नारियल की गिरी, घी, हलुआ-पूरी आदि का भोग लगाया जाता है !
‘सृष्टि के आदिकाल में एक देवी ही थी ! जिसने ब्रह्माण्ड उत्पन्न किया ! उससे ही ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र पैदा हुए ! अन्य सब उससे ही उत्पन्न हुआ, वह देवी ऐसी महामाया महाशक्ति हैं !
सारा संसार अनादिकाल से शक्ति की उपासना में लगा हुआ हैं ! महाशक्ति ही इस ब्रह्मांड में सर्वोपरि हैं ! ब्रह्म भी शक्ति के साथ ही पूजे जाते हैं ! जैसे पुष्प से सुगंध अलग नहीं हो सकती ! उसी प्रकार इस ब्रह्मांड से महाशक्ति भी अलग नहीं हो सकती !
सुगंध ही चारों ओर वातावरण में फैल कर पुष्प का परिचय करा देती हैं ! उसी तरह शक्ति भी ब्रह्म का ज्ञान कराती हैं ! क्योंकि शक्तिहीन वस्तु इस ब्रह्मांड में कोई अस्तित्व नहीं !
एक समय देवताओं और दैत्यों में भयंकर युद्ध छिड़ गया था ! इस युद्ध में देवता विजयी हुए ! विजयी होने के बाद देवताओं के मन में अहंकार हो गया ! सभी देवता अपने-अपने मन में सोच रहे थे कि यह विजय मेरे कारण हुई हैं ! यदि मैं न होता तो विजय नहीं हो सकती थी !
उनके मन में “मैं” का अहंकार आ गया ! मां जगदम्बा बड़ी दयालु हैं ! वे देवताओं के अहंकार को समझ गयीं ! यह अहंकार देवताओं को ‘देवता’ नहीं रहने देगा ! अहंकार के कारण ही दैत्य ‘दैत्य’ ही कहलाते हैं ! देवताओं के अहंकार को तोड़ने के लिए मां भगवती ने ज्योति-अवतार लिया ! देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जाती हैं !
देवताओं के अहंकार के नाश के लिए देवी एक ज्योति-अवतार के रूप में उनके सामने प्रकट हो गयीं ! ऐसा अवतार आज तक किसी ने भी नहीं देखा था ! उस ज्योति-अवतार को देखकर सभी देवता अचंभित रह गये ! और आपस में पूछने लगे कि यह क्या हैं ? देवताओं को आश्चर्यचकित करने वाली यह माया क्या हैं ?
देवराज इन्द्र ने वायुदेव को उस ज्योति-अवतार के बारे में पता लगाने के लिए भेजा ! अहंकार से भरे हुए वायुदेव ने उस ज्योति-अवतार के पास गए ! ज्योति-अवतार ने पूछा :- तुम कौन हो ?
पवनदेव ने कहा, मैं वायु हूँ ! मेरे द्वारा ही सम्पूर्ण जगत का संचालन होता हैं ! ज्योति-अवतार ने पवनदेव के सामने एक तिनका रखकर कहा ! यदि तुम सब कुछ संचालन कर सकते हो तो इस तिनके को हिला कर दिखाओ ! पवनदेव ने अपनी सारी ताकत लगा दी ! पर तिनका रत्ती भर भी हिला न सके !
पवनदेव हारमान कर देवराज इन्द्र के पास लौट आए ! और कहने लगे कि यह कोई अद्भुत शक्ति है ! उसके सामने तो मैं एक तिनका भी नहीं हिला सका !देवराज इन्द्र ने फिर अग्निदेव को बुलाकर कहा ! ‘अग्निदेव आप वहां जाकर यह मालूम कीजिए कि ये ज्योति-अवतार है कौन ? ‘
इन्द्र के कहने पर अग्निदेव ज्योति-अवतार के पास गए ! ज्योति-अवतार ने अग्निदेव से पूछा -‘तुम कौन हो ? तुममें कौन-सा पराक्रम है ! मुझे बतलाओ ? अग्निदेव ने कहा—‘ मैं अग्नि हूँ ! सारे संसार को पल भर में राख करने की क्षमता है मुझमें !
ज्योति-अवतार ने अग्निदेव से उस तिनके को जलाने के लिए कहा ! अग्निदेव ने अपनी सारी शक्ति लगा दी पर वे उस तिनके को जला न सके ! और मुंह हारकर देवराज इन्द्र के पास लौट गये !
तब सभी देवता बोले :- झूठा गर्व और अभिमान करने वाले हम लोग इस ज्योति-अवतार को जानने में असमर्थ है ! यह कोई अलौकिक शक्ति ही है देवराज इन्द्रदेव ! आप हम सब के स्वामी हैं ! अत: आप ही इस बारे में पता लगाइए !
तब सहस्त्र नेत्रों वाले देवराज इन्द्र स्वयं उस ज्योति-अवतार के पास पहुंचे ! देवराज इन्द्र के पहुंचते ही ज्योति-अवतार अंतर्ध्यान हो गई ! यह देखकर देवराज इन्द्र बहुत लज्जित हुए ! ज्योति-अवतार उनसे बात तक नहीं की ! देवराज इन्द्र का सारा अहंकार नष्ट हो गया !
तभी आकाशवाणी हुई कि…..देवराज इन्द्र ! तुम महाशक्ति का ध्यान करो ! और उन्हीं की शरण में जाओ ! देवराज इन्द्र महाशक्ति की शरण में जा बीज मंत्र का जाप करते हुए ध्यान करने लगे ! तब
मां जगदंबा ने अपना स्वरूप चैत्रमास की नवमी तिथि को प्रकट किया ! वे अत्यन्त सुन्दर, स्वर्ण आभूषणों से सुशोभित, लाल रंग की साड़ी पहने उनके सामने प्रकट हुई ! उस ज्योति-अवतार के सामने करोड़ों चन्द्रमाओं कि चमक भी फिकी थी ! उन्होंने चमेली की माला व लाल चंदन का लेप धारण किये प्रकट हुई !
देवी बोलीं :- मैं ही परब्रह्म हूँ, मैं ही परम ज्योति हूँ, मैं ही महाशक्ति जगदंबा हूँ ! मेरी ही कृपा और शक्ति से तुम लोगों ने दैत्यों पर विजय प्राप्त की ! मेरी ही शक्ति से पवनदेव का वेग चलता हैं ! और मेरी ही शक्ति से अग्निदेव की अग्नि ! तुम सभी देवता लोग अपने अहंकार को छोड़ सत्य को जानो !
आपको यह जानकारी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताना ! आपको इसी प्रकार की धार्मिक जानकारी आपको समय-समय पर इस ब्लॉग पर मिलती रहेगी ! नवरात्रों में हम मां दुर्गा के प्रत्येक दिन के स्वरूप की एक वेब सीरीज ला रहे हैं ! उसे तुरंत पाने के लिए ब्लॉग को सब्सक्राइब जरूर करें ! जिससे आपको मां दुर्गा की नवरात्र में पूरी जानकारी मिल सके !
12 Comments
[…] देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जात… […]
[…] देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जात… […]
[…] देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जात… […]
[…] देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जात… […]
[…] देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जात… […]
[…] देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जात… […]
[…] देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जात… […]
[…] देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जात… […]
[…] देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जात… […]
[…] देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जात… […]
[…] देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जात… […]
[…] देवी की पूजा में ज्योत क्यों जगायी जात… […]