आज नवरात्रि का छठा दिन हैं ! देवी का छठा स्वरूप माँ कात्यायनी पार्वती के नौ रूपों में से छठवें रूप में जानी जाती हैं ! संस्कृत शब्दकोश में देवी को उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हेमावती व अन्य नामो से भे जाना जाता हैं !
नवरात्रो की षष्ठी तिथी को माता की पूजा की जाती है ! साधना करने वाले साधक के लिए आज का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है !
अब हम जानते हैं की , देवी का छठा स्वरूप माँ कात्यायनी का नाम कैसे पड़ा ! इस के पीछे एक कथा बताई जाती है की एक समय कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि हुवे थे ! उनके पुत्र का नाम ऋषि कात्य था !
इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन पैदा हुए थे ! इन्होंने माता जगदम्बा की बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन उपासना व तपस्या की थी !
महर्षि कात्यायन की इच्छा थी माँ जगदम्बा उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें ! उनकी भक्ति व तपस्या से प्रसन्न होकर माता ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली ! कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार व पाप पृथ्वी पर बहुत ज्यादा बढ़ गया !
तब महर्षि कात्यायन ने महिषासुर के विनाश के लिए देवी की पूजा की ! माता ने कात्यायन ऋषि की पूजा स्वीकार कर दशमी को सिंह पर आरूढ़ होकर देवी ने महिषासुर का वध किया ! इस तरह देवी के इस स्वरूप का नाम कात्यायनी पड़ा !
देवी-भागवत पुराण, और मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण के, देवी महात्म्य में भी उल्लेख किया गया है ! जिसे लगभग 450 से 500 ईसा में लिखा गया था ! बौद्ध, जैन और कई तांत्रिक ग्रंथों में भी देवी का उल्लेख मिलता है !
विशेष रूप से कालिका-पुराण (10 वीं शदी ) में भी देवी कात्यायनी का उल्लेख है ! उड़ीसा में देवी कात्यायनी और भगवान जगन्नाथ का स्थान बताया गया है ! माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है ! देवी माँ के इस स्वरूप में इनकी चार भुजाएँ हैं ! माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है !
बाये ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है ! देवी का छठा स्वरूप माँ कात्यायनी के इस स्वरूप का वाहन सिंह है !
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हे माँ ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति-रूपिणी आपको मेरा बार-बार प्रणाम है ! मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ ! इस दिन साधक का मन ” आज्ञा चक्र ” में स्थित होता है ! योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है !
इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्य न्योचवर कर देता है ! अपना सर्वस्य न्योचवर करने वाले ऐसे साधक भक्तों की माँ सदा रक्षा करती हैं ! साधक को माँ के दर्शन सुलभ प्राप्त हो जाते है !
जो साधक देवी को जो सच्चे मन से याद करता है, उसके रोग, शोक,भय, संताप आदि सदा के लिये नष्ट हो जाते हैं ! साधक को अपने जन्म-जन्मांतर के पापों को नष्ट करने के लिए माँ की शरण में जाकर उनकी साधना अवश्य करनी चाहिए !
नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है ! इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है, व माँ अपने भक्तों को दुश्मनों का संहार करने में सक्षम बनाती हैं ! इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है !
माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है ! उपासना करने वाला अलौकिक तेज और प्रभाव युक्त हो जाता है !
सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तीन दिन देवी कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं ! देवी ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं ! क्योकि भगवान कृष्ण को अपने पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इनकी पूजा कालिन्दी यमुना के तट पर की थी !
‘या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ॥
माता कात्यायनी के इस मंत्र का कम से कम 21 बार जाप अवश्य करें ! साथ ही आपका ” आज्ञा चक्र ” तो जाग्रत होगा ही, आपके धन-धान्य, ऐश्वर्य और सौभाग्य में वृद्धि भी होगी ! और आपको आरोग्य, ऐश्वर्या, मान-सम्मान तथा मोक्ष की प्राप्ति भी होगी !
पूजा समाप्ति के बाद आपको माता रानी की आरती अवश्य करनी चाहिए ! घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें ! महादेवी, महाशक्ति, महामाया, माँ कात्यायनी को मेरा बारम्बार प्रणाम है ! इस प्रकार की स्तुति एवं प्रार्थना करने से देवी का सदेव आशीर्वाद मिलता है !
इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो ! उन्हें इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना व इस का मंत्र का जाप अवश्य करनी चाहिए ! जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है !
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि ।
नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम: ॥
छठे दिन की पूजा का विधान भी लगभग उसी प्रकार है जो पांचवे दिन की पूजा का है ! देवी की प्रतिमा को शुद्ध जल से स्नान कराएं ! देवी को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें व शहद का भोग अवश्य लगाएं !
मां को रोली कुमकुम लगाकर पांच प्रकार के फल और मिष्ठान भी अर्पित करे ! इस दिन भी आप कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता, तीर्थों, योगिनियों, नवग्रहों, दशदिक्पालों एवं नगर देवता की पूजा अराधना करें !
फिर माता के परिवार के देवता, गणेश , लक्ष्मी , विजया, कार्तिकेय, देवी सरस्वती, एवं जया नामक योगिनी की पूजा करें ! उस के बाद देवी कात्यायनी की पूजा अर्चना शुरु करें ! इस दिन मां कात्यायनी का अधिक से अधिक ध्यान व साधना करें !
जय-जय अम्बे जय कात्यायनी, जय जगमाता जग की महारानी ।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा, वहा वरदाती नाम पुकारा ॥
कई नाम है कई धाम है, यह स्थान भी तो सुखधाम है ।
हर मंदिर में ज्योत तुम्हारी, कही योगेश्वरी महिमा न्यारी ॥
हर जगह उत्सव होते रहते, हर मंदिर में भगत हैं कहते ।
कत्यानी रक्षक काया की, ग्रंथि काटे मोह माया की ॥
झूठे मोह से छुडाने वाली, अपना नाम जपाने वाली ।
बृहस्पतिवार को पूजा करिए, ध्यान कात्यायनी का धरिए ॥
हर संकट को दूर करेगी, भंडारे भरपूर करेगी ।
जो भी मां को ‘चमन’ पुकारे, कात्यायनी सब कष्ट निवारे ॥
आपने माता कात्यायनी की समस्त जानकारी यहां तक पढ़ी ! माता रानी आपकी सभी मनोकामना पूरी करें ! इन नवरात्रों में आपका वैभव, ऐश्वर्या व धन-धान से माता रानी भंडार भरे ! ऐसी मनोकामना हम मां कात्यायनी से करते हैं !
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