गुरुवार की आरती कथा-विधि : गुरुवार के व्रत की कथा और आरती किस प्रकार से कैसे करें ! हमारे सनातन में हर वार की व्रत कथा और आरती का महत्त्व बताया गया है ! सप्तवार व्रत कथा के बारे में जानने के लिए हम एक सप्तवार व्रत कथा की सीरिज ला रहे है ! इसको पढ़कर आप इसके महत्त्व को जाने !
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इस दिन भगवान विष्णु जी की पूजा की जाती हैं ! दिन में एक समय ही भोजन करें ! पीले वस्त्र धारण करें, पीले फलों का प्रयोग करें ! भोजन भी चने की दाल का होना चाहिए, नमक नहीं खाना चाहिए ! पीले रंग का फूल, चने की दाल, पीले कपड़े तथा पीले चन्दन से पूजन करनी चाहिए ! पूजन के पश्चात कथा सुननी चाहिए ! यह व्रत करने से बृहस्पति देवता अति प्रसन्न होते हैं ! तथा अन्न,धन और विद्या व रूपवान पत्नी का लाभ होता हैं ! स्त्रियों के लिए यह व्रत अति आवश्यक हैं ! इस व्रत में केले का पूजन किया जाता हैं !
एक नगर में एक बड़ा व्यापारी रहा करता था ! वह जहाज में माल लदवाकर दूसरे देशों को भेजा करता था ! और खुद भी जहाजों के साथ दूर-दूर के देशों में जाया भी करता था ! इस तरह वह दूसरे देशों से खूब धन कमाकर लाता था ! उसकी गहस्थी खूब मजे से चल रही थी ! वह दान-पुण्य भी खूब करता था !
परन्तु उसका इस तरह से दान देना उसकी पत्नी को बिल्कुल पसंद न था ! वह किसी को भी एक दमड़ी भी दान नहीं करती थी ! एक बार जब वह व्यापारी माल से जहाज को भरकर किसी दूसरे देश को गया हुआ था ! तो पीछे से बृहस्पति देवता साधु का रूप धारण कर उसकी कंजूस पत्नी के पास पहुंचे ! और भिक्षा की याचना की !
बृहस्पति देवता ने कहा-देवी तुम बड़ी विचित्र हो ? धन और सन्तान तो सभी चाहते हैं ! पुत्र और लक्ष्मी तो पापी के घर में भी होनी चाहिए ! यदि तुम्हारे पास बहुत धन हैं तो तुम दिल खोलकर पुण्य कार्य करो ! भूखों को भोजन खिलाओ, प्यासों को पानी पिलाओ, यात्रियों के लिए धर्मशालाएँ बनवाओ !
कितने ही निर्धनों की कुंवारी कन्याएँ धन के अभाव में अविवाहित बैठी हैं ! उनका विवाह सम्पन्न कराओ ! और भी अनेक पण्य कार्य हैं ! जिनको करके तुम्हारा लोक-परलोक सार्थक हो सकता हैं ! लेकिन व्यापारी की स्त्री बड़ी ढीठ स्वभाव की थी ! उसने कहा-महात्मा जी मैं इस विषय में आपकी कोई बात नहीं सुनना चाहती !
इतना कहकर बृहस्पतिदेव अन्तर्ध्यान हो गए ! उस औरत ने बृहस्पति देवता के कहे अनुसार सात बृहस्पतिवार वैसा ही करने का निश्चय किया ! केवल छः गुरुवार बीतने पर ही उस स्त्री का सम्पूर्ण धन नष्ट हो गया ! और वह स्वयं भी परलोक सिधार गई ! उधर माल से भरा उसके पति का जहाज समुद्र में डूब गया ! और उसने बड़ी मुश्किल से लकड़ी के तख्तों पर बैठकर अपनी जान बचाई !
वह रोता-धोता अपने नगर में वापस पहुँचा ! वहाँ आकर उसने देखा कि उसका सब कुछ नष्ट हो गया हैं ! उस व्यापारी ने अपनी पुत्री से सब समाचार पूछा ! लड़की ने पिता को उस साधु (बृहस्पति) वाली पूरी कहानी सुना दी ! उसने पुत्री को शान्त किया ! अब वह प्रतिदिन जंगल में जाकर वहाँ से लकड़ियाँ चुन कर लाता ! और उन्हें नगर में बेचकर अपनी जीविका चलाने लगा !
उस दिन गुरुवार का था। बृहस्पति देवता उसकी यह अवस्था देखकर साधु का रूप धारण कर उस व्यापारी के पास आ पहुँचे ! और कहने लगे लकड़हारे ! तू इस जंगल में किस चिन्ता में बैठा हैं ! व्यापारी ने उत्तर दिया-‘महाराज! आप सब कुछ जानने वाले हैं ! इतना कहकर उसने आद्रकंठ और भीगी आँखों से बृहस्पति देवता को अपनी आपबीती सुना दी !
बृहस्पति देवता ने कहा-भाई तुम्हारी पत्नी ने गुरुवार के दिन भगवान का अपमान के किया था ! इसी कारण तुम्हारा यह हाल हुआ हैं ! लेकिन अब तुम किसी प्रकार की चिंता मात करो। भगवान तुम्हें पहले से भी अधिक धनवान करेंगे ! तुम मेरे कहे अनुसार गुरुवार की आरती कथा-विधि गुरुवार के दिन बृहस्पति का पाठ किया करो !
साधु की बात सुनकर उस व्यापारी ने कहा-महाराज! मुझे लकड़ियों में से तो इतना भी लाभ नहीं कि दो पैसे की दही लाकर भी अपनी इकलौती कन्या को खिला सकू ! उसको मैं हर रोज झूठा आश्वासन देकर टालता आता हूँ ! बृहस्पति देवता ने कहा-‘भक्तराज! तुम चिंता मत करो ! आगामी गुरुवार के दिन तुम शहर में लकड़ियाँ बेचने के लिए जाना, तुमको उस दिन लकड़ियों के चार पैसे अधिक मिलेंगे !
जिसमें से तुम दो पैसे का दही लाकर अपनी पुत्री को खिलाना और दो पैसे की मुनक्का और चने लाकर गुरुवार देवता की कथा करना ! जल में जरा-सी शक्कर डालकर अमृत बनाना और कथा का प्रसाद सब में बांटना और खुद भी खाना, तो तुम्हारे सब काम सिद्ध हो जाएंगे ! इतना कहकर बृहस्पति देवता अन्तर्ध्यान हो गए !
परन्तु अगले गरुवार को वह बहस्पति देवता की कथा करना भूल गया ! शक्रवार को उस नगर के राजा ने आज्ञा दी कि कल मैंने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन करवाया हैं ! अत: कोई भी व्यक्ति अपने घर में अग्नि न जलाये, और समस्त जनता मेरे यहाँ आकर भोजन करे ! जो इस आदेश की अवहेलना करेगा उसे सूली पर लटकाया जायेगा !
राजा की आज्ञानुसार अगले दिन सब लोग राजा के महल में भोजन करने गये ! लेकिन वह व्यापारी और उसकी लड़की दोनों तनिक विलम्ब से पहुँचे ! अत: राजा ने उन दोनों को अपने महल के अन्दर ले जाकर भोजन करवाया ! जब वह पितापुत्री भोजन करके वापस आ गए तो महारानी की दृष्टि उस खूटी पर पड़ी जिस पर उसका नौलखा हार टँगा हुआ था !
उस खूटी पर अब हार नहीं था ! महारानी को विश्वास हो गया कि उसका हार लकड़हारा और उसकी लड़की ही ले गए हैं ! फौरन सिपाहियों को बुलाकर दोनों बाप-बेटी को जेल में डाल दिया ! कैदखाने में बाप-बेटी दोनों अत्यन्त दुखी हुए ! वहाँ इन्होंने बृहस्पति देवता का स्मरण किया ! बृहस्पति देवता वहीं प्रकट हो गए !
बहस्पति वार के दिन उस व्यापारी को जेल के मुख्य द्वार के पास दो पैसे पडे हए मिले ! बाहर सड़क पर एक स्त्री जा रही थी ! व्यापारी ने उसे बुलाकर कहा कि वह बाजार से उसे दो पैसे के चने और मुनक्का ला दे ताकि मैं बृहस्पति देवता की कथा कर सकू ! इस पर उस स्त्री ने कहा-‘मैं अपनी बहू के लिए कपड़े सिलवाने जा रही हूँ ! मैं बृहस्पति भगवान को क्या जानूं !
इतना कहकर वह औरत वहाँ से चली गई ! थोड़ी देर बाद वहाँ से एक और स्त्री निकली ! व्यापारी ने उस स्त्री को बुलाकर प्रार्थना की-बहन तुम मुझे बाजार से दो पैसे के चने और मुनक्का ला दो ! मुझे बृहस्पति देवता की कथा करनी है ! वह स्त्री बृहस्पति देवता का नाम सुनकर बोली-‘बलिहारी जाऊँ वीर भगवान के नाम पर मैं तुम्हें अभी मुनक्का और चने लाकर देती हूँ !
उस स्त्री ने उन लोगों से कहा-भाई मुझे अपने लाडले का मुख तो देख लेने दो ! लोगों ने अर्थी को जमीन पर रख दिया ! तब उस स्त्री ने अपने मृत पुत्र के मुख में प्रसाद और अमृत डाला ! प्रसाद और अमृत के मुख में पड़ने के साथ ही उसका पुत्र उठ खड़ा हुआ और अपनी माता को गले से लगाकर मिला !
दूसरी स्त्री जिसने बृहस्पति देवता का निरादर कर प्रसाद लाने से मना किया था ! जब अपने पुत्र के विवाह के लिए कपड़े लेकर वापस लौटी ! और उसका पुत्र घोड़ी पर बैठकर बारात में निकला तो घोड़ी ने ऐसी छलांग मारी कि वह जमीन पर आ गिरा तथा बुरी तरह से घायल हो गया ! और कुछ ही क्षण के पश्चात वह मर गया !
तब वह स्त्री रो-रोकर बृहस्पति देवता से कहने लगी- हे देव मेरा अपराध क्षमा करो ! मेरा अपराध क्षमा करो ! उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान बृहस्पति साधू का रूप धारण कर वहाँ आए और उस स्त्री से कहने लगे ! देवी ! अधिक विलाप करने की कोई आवश्यकता नहीं ! तुमने गुरुवार देवता का निरादर किया था ! जिसका परिणाम तुम्हें मिला हैं !
व्यापारी ने कहा- माता तू चिंता मत कर ! गुरुवार देवता सब कल्याण करेंगे ! तुम अगले गुरुवार को आकर बृहस्पति देवता की कथा सुनना तब तक अपने पुत्र के शव को फूल, इत्र, घी, आदि सुगन्धित पदार्थों में रख दो ! उस स्त्री ने ऐसा ही किया ! बृहस्पति का दिन भी आ पहुँचा ! वह दो पैसे के मुनक्का और चने लेकर तथा पवित्र जल का लोटा भरकर जेल के द्वार पर आई !
और श्रद्धा के साथ गुरुवार की आरती कथा-विधि सुनी ! जब कथा समाप्त हुई तो अमृत व प्रसाद लाकर अपने मृत पत्र के मुख में डाला ! अचानक उसको सांस आने लगी और वह उठकर खड़ा हो गया ! पुत्र को लेकर वह महिला खुशी से अपने घर को रवाना हुई और बृहस्पति देवता के गुण गाने लगी ! उसी दिन रात्रि में राजा को बृहस्पति देवता ने स्वप्न में दर्शन दिये !
राजा ने उस व्यापारी को जेल से रिहा कर अपने अपराध के लिए उससे क्षमा मांगी ! और उसको अपना आधा राज्य देकर तथा उसकी लड़की का उच्च कुल में विवाह कर दहेज में हीरे-जवाहरात दिये ! बृहस्पति देवता जिसकी जैसी मनोकामना होती है, वह अवश्य पूर्ण करते हैं !
इस व्रत के करने से व्यक्ति रोग-मुक्त व निर्धन से धनवान बनता हैं ! निपुत्र, पुत्रवान होता है, तथा यश व ऐश्वर्य में वृद्धि होती है ! जीवन सुखमय और मन की चिंतायें भी दूर होती हैं ! जो कोई श्रद्धा और प्रेम से बृहस्पति देवता की कथा पढ़ेगा, अथवा दूसरों को पढ़कर सुनाएगा, उसकी सब इच्छायें पूरी होंगी !
एक दिन इन्द्र अहंकारपूर्वक अपने सिंहासन पर बैठे थे ! और बहुत से देवता, ऋषि, गन्धर्व, किन्नर आदि इस सभा में उपस्थित थे ! जिस समय बृहस्पतिजी वहाँ आए तो सबके सब उनके सम्मान के लिए खड़े हो गए ! परन्तु इन्द्र देवता गर्व के कारण खड़े न हुये ! यद्यपि वह सदैव उनका आदर ही किया करते थे !
बृहस्पति जी इसे अपना अनादर समझकर वहाँ से उठकर चले गये ! तब इन्द्र को बड़ा दुःख हुआ कि देखो मैंने गुरुजी का अनादर कर दिया ! मुझसे बड़ी भारी भूल हो गयी ! गुरुजी के आशीर्वाद से ही मुझको यह वैभव मिला हैं ! उनके क्रोध से यह सब नष्ट हो जाएगा ! इसलिए मुझे उनके पास जाकर ही क्षमा माँगनी चाहिए !
जिससे उनका क्रोध शान्त हो जाए और मेरा कल्याण हो ! ऐसा विचार कर इन्द्र बृहस्पति जी के आश्रम पर गए ! बृहस्पति जी ने अपने योगबल से यह जान लिया कि इन्द्र क्षमा मांगने के लिये उनके आश्रम आ रहा हैं ! तब क्रोधवश उससे भेंट करना उचित न समझ वे अन्तर्ध्यान हो गए ! जब इन्द्र ने बृहस्पतिजी को आश्रम में न देखा तब वह निराश होकर लौट गया !
ब्रह्माजी ने कहा- तुमने बड़ा अपराध किया है जो गुरुदेव को क्रोधित कर दिया ! त्वष्टा ऋषि के पुत्र विश्वरूपा बड़े तपस्वी और ज्ञानी हैं ! उन्हें अपना पुरोहित बनाओ तभी तुम्हारा कल्याण हो सकता हैं ! यह वचन सुनते ही इन्द्र त्वष्टा ऋषि के पास गए, और विनीतभाव से कहने लगे कि आप हमारे पुरोहित बन जाएं ! जिससे हमारा कल्याण हो !
त्वष्टा ऋषि ने उत्तर दिया कि पुरोहित बनने से तपोबल घट जाता हैं ! परन्तु तुम बहुत विनती करते हो तो मेरा पुत्र विश्वरूपा पुरोहित बनकर तुम्हारी रक्षा करेगा ! विश्वरूपा ने पिता की आज्ञा से पुरोहित बनना स्वीकार किया ! ओर ऐसा यत्न किया कि हरिइच्छा से इन्द्र वृषवर्मा को युद्ध में जीतकर इन्द्रासन पर स्थित हुआ !
विश्वरूपा के तीन मुख थे ! एक मुख से वह सोमपल्ली लता का रस पीते, दूसरे मुख से मदिरा पीते और तीसरे मुख से अन्नादि भोजन करते ! इन्द्र ने कुछ दिन उपरान्त कहा कि मैं आपकी कृपा से यज्ञ करना चाहता हूँ ! विश्वरूपा की आज्ञानुसार यज्ञ प्रारम्भ हो गया ! एक दैत्य ने विश्वरूपा से आकर कहा कि तुम्हारी माता दैत्य की कन्या हैं !
विश्वरूपा के कटे हुए उन तीनो सिरों से जो, जो सिर मद्यपान करने वाला था उससे भंवरा, सोमपल्ली पीने वाले से कबूतर और अन्न खाने वाले से तीतर बन गया ! विश्वरूपा के मरते ही इन्द्र का स्वरूप ब्रह्महत्या के प्रभाव से बदल गया ! देवताओं द्वारा एक वर्ष तक पश्चाताप करने पर भी ब्रह्महत्या का वह पाप न छटा ! तो सब देवताओं के प्रार्थना करने पर ब्रह्मा जी बृहस्पति जी के सहित यहाँ आए !
उस ब्रह्महत्या के चार भाग किये ! उनमें से एक भाग पृथ्वी को दिया ! इसी कारण धरती कहीं ऊँची कहीं नीची और बीज बोने के लायक भी नहीं होती ! साथ ही ब्रह्माजी ने यह वरदान भी दिया कि पृथ्वी में जंहा गड्ढा होगा, कुछ समय पाकर स्वयं भर जाएगा ! दूसरा भाग वृक्षों को दिया जिसमें उनमें से गोंद बनकर बहता हैं ! इस कारण गूगल के अतिरिक्त सब गोंद अशुद्ध समझे जाते हैं !
जो मनुष्य इस गुरुवार की आरती कथा-विधि को पढ़ता या सुनता हैं ! उसके सब पाप बृहस्पति जी महाराज की कृपा से नष्ट हो जाते हैं !
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